ग्राउंड रिपोर्ट: अरुण यादव के गृह क्षेत्र में भाजपा के गजेंद्र, कांग्रेस के पोरलाल में कड़ी टक्कर

ग्राउंड रिपोर्ट: अरुण यादव के गृह क्षेत्र में भाजपा के गजेंद्र, कांग्रेस के पोरलाल में कड़ी टक्कर

  • लोकसभा सीट- खरगौन: प्रत्याशी- गजेंद्र सिंह पटेल भाजपा, पोरलाल खरते कांग्रेस
  • भाजपा की खरगोन में कब्जा बरकरार रखने की कोशिश
  • कांग्रेस ने आदिवासियों के बीच सक्रिय युवा को दिया मौका

भोपाल। परिसीमन से पहले खरगौन लोकसभा सीट सामान्य थी, तब कभी भाजपा जीतती थी, कभी कांग्रेस। 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हुई, तब से यहां भाजपा काबिज है। 2009 से पहले लोकसभा सीट के लिए हुए उप चुनाव में कांग्रेस के अरुण यादव ने भाजपा के कृष्ण मुरारी मोघे को 1 लाख 18 हजार से ज्यादा मतों के अंतर हराकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद सीट आरक्षित हो गई। तब से यहां कांग्रेस नहीं जीती। 2019 में भाजपा के गजेंद्र पटेल ने कांग्रेस के डॉ गोविंद मुजाल्दे को 2 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। भाजपा की ओर से गजेंद्र फिर मैदान में हैं। वे पार्टी नेतृत्व के नजदीक हैं।

कोरोना कॉल में सक्रिय रहकर उन्होंने अच्छी लोकप्रियता हासिल की थी। कांग्रेस ने पिछली बार की तरह इस बार भी नया चेहरा मैदान में उतारा है। पिछली बार क्षेत्र में लोकप्रिय एक डाक्टर को मौका दिया गया था जबकि इस बार 20 साल से आदिवासियों के बीच काम करने वाले युवा पोरलाल खरते पर दांव लगाया गया है। खरते आदिवासी युवा संगठन जयस से भी जुड़े हैं।लोगों से बातचीत करने पर जो तस्वीर उभरती है, उसके अनुसार देश की तरह खरगौन में भी माहौल भाजपा के पक्ष में है। क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और अयोध्या में राम मंदिर लहर का असर है।

खरगौन में हिंदू- मुस्लिम के बीच ध्रुवीकरण भी होता है। यह भाजपा के पक्ष में जाता है। भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र पटेल के खिलाफ कोई एंटी इंकम्बैंसी देखने को नहीं मिलती। इसका मतलब यह कतई नहीं कि कांग्रेस मुकाबले में ही नहीं है। कांग्रेस के पोरलाल आदिवासी युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं। भाजपा प्रत्याशी पटेल भिलाला आदिवासी हैं और कांग्रेस के खरते बरेला। क्षेत्र में भिलाला 4 लाख के आसपास हैं और बरेला इनसे 2 लाख ज्यादा लगभग 6 लाख। क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद भी 2 लाख के आसपास है। यह कांग्रेस के पक्का वोट बैंक है। विधानसभा क्षेत्रों में भी कांग्रेस को बढ़त है। क्षेत्र में भाजपा का संगठन मजबूत है जबकि कांग्रेस बिखरी हुई। कांग्रेस के विधायक वैसा काम नहीं कर रहे जैसा करना चाहिए। अरुण यादव और उनके भाई सचिन यादव खरगौन के साथ अन्य क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं।

खरगौन लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की तादाद काफी है। यहां सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली घटनाएं भी हो चुकी हैं। इसलिए लोकसभा के इस चुनाव में अयोध्या में राम मंदिर और हिंदू- मुस्लिम राजनीति को मुद्दे के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रिय हैं ही, उनके नेतृत्व में भारत विश्व की ताकत बन रहा है, यह बात लोगों तक पहुंचाई जा रही है। भाजपा की केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कराए गए काम गिनाए जा रहे हैं। कश्मीर में धारा 370 का प्रचार कर यह बताया जा रहा है कि भारत अब पाक में घुसकर मार करने लगा है। दूसरी तरफ कांग्रेस केंद्र सरकार की नाकामियां गिना रही है। धर्म और हिंदू-मुस्लिम की राजनीति कर लोगों को बांटने का आरोप भाजपा पर लगाया जा रहा है। महंगाई रोकने और बेराजगारी दूर करने में केंद्र को असफल बताया जा रहा है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल 5 न्याय और 24 गारंटियां बताई जा रही हैं। लोकसभा क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर हुए काम और समस्याएं भी चुनाव का मुद्दा हैं।

खरगौन ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां विधानसभा में ताकत के लिहाज से कांग्रेस को भाजपा पर बढ़त हासिल है। क्षेत्र की 8 लोकसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस का कब्जा है जबकि भाजपा के पास सिर्फ 3 विधानसभा सीटें हैं। चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 5 सीटों में 31 हजार 578 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी जबकि भाजपा का 3 सीटों में जीत का अंतर 33 हजार 126 वोट का था। इस लिहाज से भाजपा को कांग्रेेस पर लगभग 2 हजार वोटों की बढ़त हासिल है। यह अंतर लोकसभा चुनाव में कोई मायने नहीं रखता। भाजपा के गजेंद्र पटेल और पोरलाल खरते के बीच मुकाबले को देखकर भी लगता है कि विधानसभा की तरह कांटे की टक्कर हो सकती है। ध्यान देने की बात यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। विधानसभा की 6 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं और 2 सीटें निर्दलियों के खाते में गई थीं। लेकिन चार माह बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के गजेंद्र पटेल 2 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत गए थे। वजह साफ है विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मुद्दों में फर्क होता है और मतदाताओं के रुख में भी।

रनिमाड़ अंचल की खरगौन लोकसभा सीट का भौगोलिक क्षेत्र दो जिलों में फैला है। इसके तहत खरगौन और बड़वानी जिले की 4-4 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें खरगौन जिले की चार विधानसभा सीटें महेश्वर, कसरावद, खरगौन और भगवानपुरा हैं और बड़वानी जिले की सेंधवा, पानसेमल, बड़वानी और राजपुर। खरगौन जिले की 2 सीटों कसरावद और भगवानपुरा में कांग्रेस का कब्जा है और दो सीटों महेश्वर और खरगौन में भाजपा का। बड़वानी जिले की तीन विधानसभा सीटें सेंधवा, बड़वानी और राजपुर कांग्रेस के पास हैं जबकि भाजपा के पास सिर्फ एक पानसेमल। जहां तक खरगौन लोकसभा सीट के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो 1991 से अब तक हुए 9 चुनावों में कांग्रेस सिर्फ 2 बार जीती है जबकि 7 बार भाजपा ने जीत का पताका फहराया है। इससे पता चलता है कि यहां के मतदाता विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अलग-अलग मतदान करते हैं। विधानसभा में वह कांग्रेस को ज्यादा सीटें देता है तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिता देता है।

खरगौन लोकसभा क्षेत्र के जातीय और सामाजिक समीकरणों के लिहाज से भी भाजपा और कांग्रेस में बराबरी का मुकाबला है। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट में सर्वाधिक मतदाता भिलाला और बारेला हैं। भाजपा के दिलीप पटेल भिलाला और कांग्रेस के पोरलाल बारेला समाज से हैं। क्षेत्र में भिलाला लगभग 4 लाख और बारेला लगभग 6 लाख मतदाता हैं। इस लिहाज से कांग्रेस के पोरलाल भाजपा पर भारी हैं। क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता 2 लाख के आसपास बताए जाते हैं। ये भी कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं। इनके अलावा क्षेत्र में पाटीदार, गूजर, दलित, यादव और सवर्ण मतदाता हैं। पाटीदार, गूजर और सामान्य वर्ग भाजपा के पक्ष में ज्यादा जाता दिखाई पड़ता है और अरुण यादव के कारण इस समाज के मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर रहता है। हालांकि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के कारण इन मतदाताओं में इस बार बंटवारा हो सकता है। दलित मतदाताओं का झुकाव काग्रेस की ओर ज्यादा रहता है लेकिन बड़ा हिस्सा भाजपा को भी मिलता है। साफ है कि जातीय समीकरणों में भी दोनों दलों के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है।

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