Rajasthani cumin is enhancing the taste of food in the country and the world, due to this farmers are facing loss.
राजस्थान के जीरे की महक देश विदेश के खानों से आती है. इसकी पूरी दुनिया में भारी डिमांड है. प्रदेश में प्रोसेसिंग यूनिट और बिकवाली नहीं होने से किसान को काफी परेशानी होती है.
पश्चिमी राजस्थान के खेतों में पैदा होने वाला जीरा देश और विदेश के खानों स्वाद और खुशबू बढ़ाता है. यहां के जीरे की अपनी एक अलग पहचान है. खाने का जायका बढ़ाने और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होने की वजह से इसकी खूब डिमांड है. यही वजह है कि हर साल किसान 6 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का व्यपार करते हैं.
जीरे की पैदावार प्रदेश के जोधपुर, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर और सांचौर में सबसे ज्यादा होती है. खास बात यह है कि प्रदेश में जीरे की पैदावार का 80 फीसदी इन्हीं जिलों में पैदा होता है. उसके बाद बिकने के लिए गुजरात जाता है. औसतन 5 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में इसकी बुवाई होती है.
जीरा किसानों को इस वजह से होता है नुकसान
कृषि भूमि के एक बड़े क्षेत्र में जीरे की अच्छी खासी पैदावार के बावजूद प्रदेश में इसके लिए प्रोसेसिंग यूनिट और बिकवाली को कोई उचित जरिया नहीं है. इसकी वजह से किसानों जीरे की प्रोसेसिंग और बिकवाली के लिए गुजरात की उंझा मंडी पहुंचते हैं. जिससे किसानों का अतिरिक्त व्यय होने से उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है.
गुजरात के उंझा मंडी में एग्रीकल्चर नेटवर्क बना हुआ है. स्थानीय स्तर पर 60 से 70 फीसदी किसान जीरे की फसल बेचने के लिए उंझा मंडी पहुंचते हैं. वहां उनकी उपज का हाथों-हाथ दाम भी मिल जाता है. प्रदेश में अभी इतने ट्रेडर्स तैयार नहीं हुए हैं. जोधपुर में प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित नहीं हुई है. स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित हो तो किसानों को फायदा मिल सकता है.
सरकार को हो सकता है फायदा?
पश्चिमी राजस्थान के खेतों में सबसे अधिक जीरे की पैदावार बाड़मेर, जालौर, सांचौर, जोधपुर, पाली और जैसलमेर में होती है, यहां से लगभग पूरा जीरा गुजरात की उंझा मंडी जाता है. हर किसान को अपना जीरा बेचने के लिए लंबा सफर तक करना पड़ता है, जिसकी अतिरिक्त लागत आती है. अगर सरकार स्थानीय स्तर पर भी बड़ी मंडी के साथ प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित कर दे तो किसानों को मुनाफा होने के साथ प्रदेश को भी फायदा पहुंचेगा.
जीरे की इन जिलों होती है बंपर पैदावार
बाड़मेर जिले के एक बड़े क्षेत्र में जीरे की बुवाई और बंपर पैदावार होती है. बाड़मेर जिले में जीरे की कुल बुवाई का क्षेत्रफल 1 लाख 80 हजार से 2 लाख हेक्टेयर है. करीब 1 लाख 60 हजार किसान इस फसल के उत्पादन और व्यपार से जुड़े हुए हैं. यहां पर हर साल जीरे का कुल उत्पादन 68.40 लाख टन है.
जोधपुर जिले के किसानों ने जीरे के उत्पादन में बहुत कम समय में अपनी पहचान बनाई है. यहां करीब 1 लाख 50 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि पर जीरे की बुवाई होती है. यहां पर एक लाख से अधिक किसान जीरे की खेती से जुड़े हुए हैं.
जालौर सांचौर जिले में भी 1 लाख 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र से अधिक भू भाग पर जीरे की औसतन हर साल बुवाई होती है. यहां पर प्रतिवर्ष 7 हजार मीट्रिक टन जीरे का उत्पादन होता है.
जैसलमेर जिले में इस साल 76 हजार हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में किसानों ने जीरे की खेती की है. यहां पर करीब 80 से 85 हजार किसान जीरे की खेती करते हैं.
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