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नई दिल्ली

राजधानी के रोहिणी में दिल्ली सरकार के शेल्टर होम 'आशा किरण' में रहने वाले मानसिक रूप से बीमार 14 लोगों की मौतें होने की बात सामने आई है। इस मामले की जानकारी मिलने के बाद दिल्ली की मंत्री आतिशी ने पूरे मामले की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश देते हुए 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी है।

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के रोहिणी स्थित सरकारी शेल्टर होम 'आशा किरण' में जनवरी 2024 से अब तक हुई 14 मौतों से संबंधित मामले में दिल्ली की मंत्री आतिशी ने एसीएस राजस्व को तत्काल पूरे मामले की मजिस्ट्रेट जांच शुरू करने और 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं।

मंत्री ने उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश करने का भी निर्देश दिया है, जिनकी लापरवाही के कारण ये मौतें हुई हैं और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए सुझावात्मक उपाय सुझाने के भी निर्देश दिए हैं।

अधिकांश मृतकों की उम्र 20 से 30 साल के बीच

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक सरकारी अधिकारी ने बताया, "जनवरी में तीन, फरवरी में दो, मार्च में एक, अप्रैल में तीन और मई में शून्य मौतें हुई थीं। हालांकि, जून और जुलाई में संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई।"

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, मरने वाले अधिकांश लोगों की उम्र 20 से 30 साल के बीच थी और मौत का कारण फेफड़ों में इन्फेक्शन, टीबी और निमोनिया सहित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं बताया गया है। सूत्रों ने बताया कि रोहिणी में दिल्ली सरकार द्वारा संचालित बाबा साहेब अंबेडकर अस्पताल में दो शवों का पोस्टमॉर्टम होना बाकी है। एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि ऐसे मामले भी थे, जिनमें लोगों में कुपोषण के लक्षण दिखे। फूड पॉइजनिंग की संभावना को खारिज करने के लिए फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (FSL) की रिपोर्ट का भी इंतजार किया जा रहा है।

पहले भी विवादों में घिरा रहा आशा किरण, पहले भी 6 साल 196 की मौत

दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित 350 लोगों के रहने की क्षमता वाले इस शेल्टर होम की स्थापना 1989 में रोहिणी सेक्टर-1 में की गई थी। उस समय, यह पूरे उत्तर भारत में मानसिक रूप से कमजोर लोगों के लिए एकमात्र सरकारी आवासीय सुविधा थी। हालांकि, आशा किरण पिछले कुछ वर्षों में बंदियों की मौत के कारण विवादों में घिरा रहा है।

रिकॉर्ड के अनुसार, 2011 से 2017 के बीच आशा किरण में 123 पुरुष और 73 महिला बंदियों की मौत हुई। 2008-09 में नवंबर और दिसंबर में 16 मौतें हुईं। दिसंबर और जनवरी 2009-10 के बीच कुल 23 बंदियों की मौत हुई; अगस्त और सितंबर 2012-13 के बीच नौ; अक्टूबर और नवंबर 2013-14 में 13; अप्रैल-मई 2014-15 में 11 और नवंबर-दिसंबर 2015-16 में 13 वहीं वर्ष 2017-18 में नवंबर-दिसंबर की अवधि में सात मौतें हुईं। प्रत्येक मौत की सूचना मिलने के बाद स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को रिपोर्ट भेजनी होती है। 

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