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Acquisition of tribal land is being done against the rules

सिंगरौली जिले में गोंड वृहद सिंचाई परियोजना के तहत बांध बनाने के लिए आदिवासी वर्ग की जमीन का अधिग्रहण किए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका में कहा गया कि नियम व कानून को ताक पर रखकर आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। याचिका पर सरकार की तरफ से पेश जवाब में कहा गया है कि नियमानुसार भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई किए बिना बांध निर्माण के संबंध में अधिसूचना जारी नहीं की जाएगी। सरकार के जवाब को रिकॉर्ड में लेते हुए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने याचिका का निराकरण कर दिया। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अगर, नियमों का उल्लंघन होता है तो याचिकाकर्ता उचित फोरम में जाने के लिए स्वतंत्र है।

सिंगरौली निवासी लोहार सिंह की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि सिंगरौली जिले में गोंड वृहद सिंचाई परियोजना की प्रशासकीय स्वीकृति सरकार द्वारा प्रदान कर दी गई है। योजना के तहत 34,500 हेक्टेयर में 1,097.67 करोड़ की लागत से बांध का निर्माण किया जाना है। याचिका में कहा गया था कि आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन के मामले में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए थे। जिसके अनुसार भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्विस्थापन के लिए उचित प्रतिकर दिया जाना आवश्यक है। इसके अलावा, बांध निर्माण की प्रशासकीय स्वीकृति के लिए पेसा कानून के तहत संबंधित ग्राम सभा से अनुमति प्राप्त करना भी आवश्यक है।

बांध निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश और पेसा कानून का उल्लंघन किया जा रहा है। आदिवासी परिवारों की जमीन नियमों और कानून को ताक पर रखकर अधिग्रहित की जा रही है। युगलपीठ ने सरकार की तरफ से पेश जवाब को रिकॉर्ड में लेते हुए कहा कि यदि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में नियम व कानून का पालन नहीं होता है, तो इसे उचित फोरम में चुनौती दी जा सकती है। इसी स्वतंत्रता के साथ याचिका का निराकरण कर दिया गया।
याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ने पैरवी की।

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