काहिरा
आज मुस्लिम बहुल आबादी वाले मिस्र की पहचान एक ऐसे देश के रूप में रही है जो हजारों साल पुराने प्राचीन धरोहरों का केंद्र रहा है। इस देश की प्राचीन धरोहरों ने पूरी दुनिया से पुरातत्वविदों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित किया है। पुरातत्वविद यहां खुदाई में दशकों लगा देते हैं, ताकि कोई नायाब चीज खोज सकें। ऐसी ही एक खुदाई में पुरातत्वविदों ने कर्नाक मंदिर परिसर में 2600 साल पुराना खजाना खोज निकाला है। इसमें सोने के गहनों का एक शानदार भंडार और पारिवारिक देवताओं के समूह की मूर्तियां मिली हैं।
प्राचीन मिस्र के बारे में नई जानकारी
यह ताजा खोज 26वें राजवंश के दौरान प्राचीन मिस्र की धार्मिक और कलात्मक प्रथाओं के बारे में एक आकर्षक जानकारी देती है। इसके साथ ही यह एक हजार साल ईसा पूर्व में कर्नाक मंदिर परिसर के इतिहास और विकास पर नई रोशनी डालती है। कलाकृतियों के चल रहे शोध और जीर्णोद्धार से प्राचीन मिस्रवासियों की परंपरा और प्रथाओं के बारे में और जानकारी मिलती है। हाल ही में मिली कलाकृतियों को पूरी तरह से जीर्णोद्धार किए जाने के बाद लक्सर म्यूजियम में दिखाया जाएगा। इससे मिस्र की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक इतिहास के बारे में अधिक जानकारी मिलेगी।
कर्नाक में प्राचीन मिस्र का महत्वपूर्ण मंदिर
कर्नाक मंदिर को मिस्र के सबसे महत्वपूर्ण और सबसे लंबे समय तक जीवंत रहने वाले धार्मिक परिसर के रूप में जाना जाता है। लक्सर के पास स्थित इस विशाल मंदिर परिसर का निर्माण लगभग 4000 साल पहले किया गया था और लगभग एक हजार साल तक इसका लगातार नवीनीकरण और संशोधन किया गया। यह परिसर सदियों से प्रमुख पुरातात्विक जांच का स्थल रहा है और इस दौरान सैकड़ों ऐतिहासिक खोजें हुई हैं।
देवताओं की सोने की मूर्तियां
नई खोजी गई वस्तुओं में सोने के बीज, ताबीज और मूर्तियां हैं। इन पर जटिल डिजाइन की कारीगरी की गई है। इन सभी चीजों को एक टूटे हुए बर्तन के अंदर पाया गया है, लेकिन संरक्षण विधि के चलते उनकी स्थिति हमेशा बरकरार रही। मिस्र के पर्यटन और पुरावशेष मंत्रालय ने बताया है कि पाए गए आभूषणों में सोने और धातु की अंगूठियां, साथ ही तीन-देवता की मूर्ति शामिल थीं।
खुदाई के दौरान मिली तीन मूर्तियों में प्राचीन मिस्र के तीन प्रमुख देवता शामिल हैं। थेब्स के शासक देवता अमुन, उनकी पत्नी और मातृदेवी मुट और उनके बेटे खोंसू यानी चंद्र देवता। शुरू में माना जाता था कि इन मूर्तियों को ताबीज के रूप में पहना जाता थास क्योंकि मान्यता थी कि उन्हें गले में बांधने से वे रक्षा करते हैं।

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