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Consumer rights: Complain and get compensation if the weight mentioned on the packet is less, know the rules 

कमलेश ✍️

भोपाल। रोजमर्रा की जिंदगी में हम कई तरह के उत्पाद खरीदते हैं। अगर वे खुले में बिकने वाले हैं, जैसे सब्जियां, फल या अनाज आदि तो हम तौलकर खरीदते हैं। हालांकि, पैकेज्ड उत्पादों के साथ यह होता है कि ज्यादातर लोग पैकेज पर लिखे वजन या वॉल्यूम पर भरोसा कर लेते हैं। आज जानते हैं कि पैकेज्ड उत्पाद को लेकर उपभोक्ता कानून क्या कहते हैं।

क्या हैं उपभोक्ताओं के अधिकार?

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(9) में उपभोक्ता अधिकारों का वर्णन किया गया है। अन्य कई अधिकारों के अलावा उपभोक्ता को वस्तुओं या उत्पादों की मात्रा के बारे में जानने का अधिकार भी होता है, ताकि वह अनुचित व्यापार प्रैक्टिस से बच सके। इसके अलावा अगर उपरोक्त अधिकार का उल्लंघन होता है तो उपभोक्ता को संबंधित उपभोक्ता आयोग में जाने का भी अधिकार है।

वजन को लेकर क्या है कानून?

वजन और माप के मानकों को स्थापित करने के लिए संसद ने कानूनी माप विज्ञान अधिनियम, 2009 को अधिनियमित किया है। इसके तहत ही वजन, माप या संख्या के आधार पर वस्तुओं को बेचा या वितरित किया जाता है। इस कानून से पहले भारत में वजन और माप के लिए मानक अधिनियम, 1976 और वजन और माप के मानक (प्रवर्तन) अधिनियम, 1985 लागू थे। इन सभी कानूनों के तहत उत्पादों की प्रकृति के आधार पर उत्पादों की विभिन्न श्रेणियों के संबंध में नियम बनाए गए थे। कुछ उत्पादों के लेबल पर ‘पैक किए जाते समय’ (when packed) उत्पाद के वजन/मात्रा का उल्लेख करना आवश्यक होता है, क्योंकि कुछ स्टोरेज कंडिशन में वजन कम हो सकता है या बढ़ सकता है। वहीं कुछ उत्पादों पर केवल वजन का उल्लेख करना होता है और उतनी ही मात्रा उपभोक्ता को उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य होता है।

वजन कम पाए जाने पर

वजन की मात्रा कम निकलने पर उपभोक्ता अदालतों और आयोगों ने ऐसे मामलों को गंभीरता से लिया है। इस संबंध में केरल में जॉर्ज थैटिल के चर्चित मामले को लिया जा सकता है। उन्होंने जनवरी 2020 में 40-40 रुपए में बिस्किट के दो पैकेट खरीदे। प्रत्येक पैकेज पर वजन 300 ग्राम लिखा हुआ था। लेकिन उसे मापने पर उन्होंने उक्त पैकेजों में से एक का वजन केवल 268 ग्राम और दूसरे का 249 ग्राम पाया। उन्होंने कानूनी माप विज्ञान अधिनियम, 2009 के तहत संबंधित अधिकारी से शिकायत की, जिन्होंने वजन में कमी की पुष्टि की। चूंकि उपभोक्ताओं को कानूनी माप विज्ञान अधिनियम के तहत मुआवजा नहीं मिल सकता है, इसलिए उन्होंने उस समय लागू उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत जिला उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। उपभोक्ता फोरम ने सबूतों पर विचार कर माना कि बिस्किट बनाने वाले निर्माता और बिस्किट के पैकेट बेचने वाले विक्रेता दोनों ने कानूनी माप विज्ञान अधिनियम की धारा 30 का उल्लंघन किया है और उपभोक्ता कानून के अनुसार यह सेवा में कमी का मामला बनता है। फोरम ने कहा, ‘गलती करने वाले निर्माता या व्यापारी की ओर से ऐसा भ्रामक कार्य उपभोक्ता की गरिमा के खिलाफ है और धोखे या किसी भी तरह के अनुचित व्यापार व्यवहार से उसके मुक्त जीवन जीने के उसके अधिकार को खतरे में डालने के समान है।’ उपभोक्ता को हुई वित्तीय हानि और पीड़ा के लिए 50 हजार रुपए और मुकदमे की लागत के लिए 10 हजार रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया गया। साथ ही निर्माता और विक्रेता को तत्काल प्रभाव से उन उत्पादों को वापस लेने के आदेश दिए गए, जिनमें वजन निर्धारित मात्रा से कम था।

साबुन के मामले में विशिष्ट मामला 

साल 1993 में एक उपभोक्ता यह कहते हुए आंध्र प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग के पास गया था कि साबुन का वजन पैकेजिंग पर उल्लिखित वजन से कुछ ग्राम कम पाया गया। इस पर आयोग ने कहा, “पैकेज में उल्लिखित वजन उस समय का वजन है, जब इसे पैक किया गया था। चूंकि पर्यावरण और अन्य स्थितियों के कारण नमी में कमी हो सकती है और इस कारण वजन भी कम हो सकता है। आयोग ने माना कि उपभोक्ताओं को शायद यह पता नहीं है कि समय बीतने के साथ साबुन का वजन कम हो जाता है और तदनुसार उसने अधिकारियों को इस संबंध में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने का निर्देश दिया।

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