MY SECRET NEWS

A decision that shook the roots of democracy! Was the Election Commission under pressure from the Modi government? The opposition made a big revelation

Election Commission under Modi government जब लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रहरी, चुनाव आयोग, की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होने लगें, तब यह केवल एक संस्थान की विफलता नहीं होती, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे की जड़ें हिलती हैं। बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के संदर्भ में जो कुछ हुआ, वह इस बात का उदाहरण है कि अगर विपक्ष सजग न होता, तो एक बड़ा फर्जीवाड़ा बिना किसी शोर के अंजाम दिया जा सकता था।

विपक्ष ने जब इस मुद्दे पर आवाज़ उठाई, तब उसकी नीयत पर संदेह किया गया, आरोपों का मज़ाक उड़ाया गया। लेकिन गनीमत है कि विपक्ष झुका नहीं, डटा रहा और आखिरकार चुनाव आयोग को अपना फैसला बदलना पड़ा। छह दिन के भीतर आयोग ने स्पष्ट किया कि 60 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं को अब दस्तावेज़ देने की ज़रूरत नहीं होगी। यह ‘यू-टर्न’ कई सवाल खड़े करता है।

सवाल यह नहीं है कि आयोग ने फैसला क्यों बदला, बल्कि यह है कि उसने पहला फैसला किस दबाव में लिया था? विपक्ष का दावा है कि यह पूरा मामला मोदी सरकार के इशारे पर खेला जा रहा था — यह संदेह यूं ही नहीं उठता। यदि तीन करोड़ से अधिक मतदाताओं की जांच का काम जारी रहेगा, तो यह भी तय है कि यह जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए, वरना लोकतंत्र की यह बुनियादी प्रक्रिया ही संदेह के घेरे में आ जाएगी।

Read more: दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म स्टूडियो कहां है? | World’s Largest Film Studio in Hindi

यहाँ एक और चिंता की बात यह है कि बीजेपी जैसी पार्टी, जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देती है, उसे यह लोकतांत्रिक असंतुलन क्यों नहीं दिखा? क्या यह संभव है कि नई वोटर लिस्ट के जरिए विपक्ष समर्थित मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा था? यदि नहीं, तो फिर इतनी जल्दबाजी और दबाव में फैसला क्यों लिया गया?

चुनाव आयोग संविधान के प्रति जवाबदेह है, न कि किसी सरकार के प्रति। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार उसकी निष्पक्षता पर बार-बार सवाल उठे हैं, वह एक बड़े खतरे का संकेत है। यह केवल बिहार का मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश की लोकतांत्रिक नींव पर सवाल है। Election Commission under Modi government

विपक्ष का सजग रहना, सवाल पूछना और निर्णयों की समीक्षा कराना अब केवल उसका हक नहीं, बल्कि उसकी ज़िम्मेदारी बन चुकी है। यह एक बार फिर सिद्ध हुआ कि यदि सवाल नहीं पूछे जाते, तो जवाबदेही भी नहीं होती।

अब समय है कि चुनाव आयोग पारदर्शिता से आगे बढ़े, इस पूरी प्रक्रिया को सार्वजनिक करे और यह स्पष्ट करे कि उसके निर्णय स्वतंत्र थे या किसी दबाव का परिणाम। लोकतंत्र का मूल्य तभी है जब हर मतदाता को पूरा विश्वास हो कि उसका वोट गिना जाएगा — न कि जांच की आड़ में गुम कर दिया जाएगा।

यूजफुल टूल्स
QR Code Generator

QR Code Generator

Age Calculator

Age Calculator

Word & Character Counter

Characters: 0

Words: 0

Paragraphs: 0