जैसलमेर
भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों और केंद्र सरकार के सख्त निर्देशों के बावजूद सेना जैसे कपड़े आम लोगों को बेचे जा रहे हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस पर तत्काल रोक और सख्त निगरानी नहीं की गई तो राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा हो सकता है।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में सेना की वर्दी पहनकर किए गए आतंकी हमले ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गहरी चिंता खड़ी कर दी है। इस भयावह घटना के बाद पूरे देश में सुरक्षा मानकों को लेकर बहस छिड़ी हुई है। वहीं, दूसरी ओर राजस्थान के संवेदनशील सीमा जिले जैसलमेर में बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर आज भी सेना और अर्द्धसैनिक बलों जैसी वर्दियों की खुलेआम बिक्री जारी है। यह लापरवाही न केवल सेना की गरिमा को चोट पहुंचा रही है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा भी बन सकती है।
सेना जैसी वर्दी पहनकर हमला, सुरक्षा में बड़ी सेंध
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम इलाके में आतंकियों ने सेना की वर्दी में आकर सुरक्षाबलों पर हमला कर दिया था। आतंकियों ने सेना की वर्दी का सहारा लेकर पहले खुद को सुरक्षाबलों के बीच मिला लिया और फिर अचानक हमला कर दिया। इस हमले ने यह साफ कर दिया कि यदि किसी असामाजिक तत्व को सेना या पुलिस जैसी वर्दी आसानी से उपलब्ध हो जाए तो वह कितनी बड़ी चुनौती बन सकता है। इस घटना के बाद देशभर में इस बात पर गंभीर चिंता जताई जा रही है कि सेना और सुरक्षा बलों की वर्दी जैसी पोशाकें बाजारों में कैसे बिक रही हैं।
जैसलमेर में बाजारों में मिल रही वर्दियां
जैसलमेर जैसे संवेदनशील सरहदी जिले, जहां से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा कुछ ही किलोमीटर दूर है, वहां भी बाजारों में सेना, बीएसएफ, और पुलिस जैसी वर्दियां बिना रोक-टोक बिक रही हैं। कई दुकानों पर कॉम्बैट प्रिंट के कपड़े, जैकेट, टी-शर्ट और टोपी खुलेआम बेची जा रही हैं। हालांकि दुकानदार दावा करते हैं कि वे पहचान और सत्यापन के बाद ही सामान बेचते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि कोई भी व्यक्ति आसानी से ये वर्दी जैसे कपड़े खरीद सकता है।
दोषी पाए जाने पर 500 रुपये जुर्माना
भारतीय दंड संहिता की धारा 140 और 171 के तहत सेना, नौसेना और वायुसेना की वर्दी या उसके जैसी दिखने वाली यूनिफॉर्म को अनाधिकृत रूप से पहनना या बेचना अपराध की श्रेणी में आता है। दोषी पाए जाने पर 500 रुपये जुर्माना और अधिकतम तीन महीने तक की सजा हो सकती है। सेना जैसी वर्दी का उत्पादन केवल कुछ अधिकृत मिलों को ही करने की अनुमति है, जिनमें पंजाब के फगवाड़ा और महाराष्ट्र की दो मिलें प्रमुख हैं। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को आदेश दिया था कि कॉम्बैट प्रिंट कपड़े बनाने, बेचने और पहनने पर सख्त निगरानी रखी जाए, खासकर संवेदनशील इलाकों में।
सेना के पुराने आदेश भी हवा में
पठानकोट हमले के बाद सेना ने खासतौर पर निर्देश दिया था कि आम जनता को सेना जैसे कपड़े न बेचे जाएं और निजी सुरक्षा एजेंसियों को भी कॉम्बैट पैटर्न की यूनिफॉर्म इस्तेमाल न करने को कहा गया था। इसके बावजूद आज जैसलमेर जैसे सीमावर्ती जिले में आधा दर्जन से ज्यादा दुकानों पर यह कपड़ा आसानी से उपलब्ध है। न कोई सख्त निगरानी है न ही प्रशासन की ओर से कोई सघन अभियान चलाया जा रहा है।
जांच और निगरानी की सख्त जरूरत
जैसलमेर जैसे सीमावर्ती जिले की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रशासन और पुलिस को बाजारों में सेना की वर्दी जैसे कपड़ों की बिक्री पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है। साथ ही ऐसे कपड़े बेचने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार, यदि पहलगाम जैसी घटनाओं से सबक नहीं लिया गया तो सीमावर्ती जिलों में भी आतंकी तत्व सेना या सुरक्षा बलों की वर्दी का दुरुपयोग कर सकते हैं। ऐसे में समय रहते सख्ती नहीं बरती गई तो इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।

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