भले ही कानून महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए बने हैं, लेकिन मर्द ही हमेशा गलत नहीं होता:  इलाहाबाद हाई कोर्ट

भले ही कानून महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए बने हैं, लेकिन मर्द ही हमेशा गलत नहीं होता: इलाहाबाद हाई कोर्ट

नई दिल्ली  
यौन उत्पीड़न के एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि भले ही कानून महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए बने हैं, लेकिन मर्द ही हमेशा गलत नहीं होता। कोर्ट ने शादी के झूठा वादा करके यौन उत्पीड़न करने के आरोपों की सुनवाई करते हुए यह बात कही। सारे तथ्यों के सामने आने के बाद अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में केस को साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों पर होती है। जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस नंद प्रभा शुक्ला ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यौन उत्पीड़न से जुड़े कानून महिला केंद्रित हैं।

इनका उद्देश्य महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा करना है। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि हमेशा मर्द ही गलत नहीं होते। अदालत ने आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ दायर अर्जी पर यह बात कही। आरोपी पर एससी-एसटी ऐक्ट के तहत भी केस दर्ज हुआ था। पीड़िता ने 2019 में केस दर्ज कराया था और कहा था कि आरोपी उसके साथ यौन संबंध बनाता रहा और वादा किया था कि शादी करेगा। लेकिन बाद में उसने शादी करने से इनकार कर दिया। यही नहीं महिला ने आरोप लगाया था कि उस शख्स ने जातिसूचक शब्द कहे थे।

आरोपी शख्स के खिलाफ 2020 में चार्जशीट दाखिल की गई थी। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने 2023 में आरोपी शख्स को रेप केस से बरी कर दिया था। अदालत में आरोपी का कहना था कि दोनों के बीच सहमति से संबंध बने थे। उसने महिला से शादी करने से तब इनकार कर दिया था, जब उसे पता चला कि वह 'यादव' बिरादरी से नहीं है, जैसा कि उसने दावा किया था। यही नहीं पूरे मामले की पड़ताल के बाद अदालत ने पाया कि आरोप लगाने वाली महिला की पहले भी 2010 में किसी शख्स से शादी हुई थी, लेकिन दो साल बाद ही वह अलग रहने लगी थी।

आरोप लगाने वाली महिला ने खुद छिपाई थी पहली शादी
केस की जांच हुई तो पता चला कि आरोप लगाने वाली महिला ने अपनी पहली शादी की बात भी छिपाई थी। इसके अलावा जाति भी गलत बताई थी। इस पर अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने फैसला ठीक दिया था। हाई कोर्ट ने आरोपी पर एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज करने पर कहा कि समाज में किसी भी रिश्ते के शादी में तब्दील होने के लिए आज भी जाति मायने रखती है। बेंच ने कहा कि शिकायतकर्ता यह साबित करने में नाकाम रही कि आखिर उसने जाति को लेकर झूठ क्यों बोला और उसकी जरूरत क्या थी।

 

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