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उज्जैन
भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद प्रदोषकाल में होलिका का पूजन उपरांत दहन किया जाएगा। 14 मार्च को धुलेंडी पर तड़के 4 बजे भस्म आरती में पुजारी भगवान महाकाल के साथ हर्बल गुलाल से होली खेलेंगे। उत्सव को लेकर तैयारी शुरू हो गई है। ज्योतिर्लिंग की पूजन परंपरा में होली उत्सव का विशेष महत्व है। देशभर से सैकड़ों भक्त राजा की रंगरंगीली होली देखने मंदिर पहुंचते हैं। इस बार यह उत्सव 13 मार्च को पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।

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मंदिर परिसर में श्री ओंकरेश्वर मंदिर के सामने पुजारी, पुरोहित परिवार द्वारा होलिका का निर्माण किया जाएगा। शाम 7.30 बजे भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद पुजारी वैदिक मंत्रोच्चार के साथ होलिका का पूजन करेंगे। पश्चात होलिका का दहन होगा।

मंदिर समिति उपलब्ध कराएगी हर्बल गुलाल
परंपरा अनुसार 14 मार्च को होली उत्सव मनाया जाएगा। तड़के 4 बजे भस्म आरती में पुजारी भगवान महाकाल को हर्बल गुलाल अर्पित करेंगे। मंदिर समिति पुजारियों को प्राकृतिक उत्पादों से तैयार हर्बल गुलाल उपलब्ध कराएगी। बताया जाता है, मंदिर समिति होली उत्सव के लिए एक थाल भरकर गुलाल उपलब्ध कराती है। वैसे भी ज्योतिर्लिंग क्षरण मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने भगवान को समिति मात्रा में पूजन सामग्री अर्पित करने का सुझाव दिया है।

ज्योतिष का मत : 13 मार्च को होली मनाना शास्त्र सम्मत
ज्योतिष व धर्मशास्त्र के जानकार 13 मार्च को होली मनाना शास्त्र सम्मत बता रहे हैं। ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 20 मिनट तक चतुर्दशी तिथि रहेगी। इसके बाद पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र व सिंह राशि के चंद्रमा की साक्षी में पूर्णिमा तिथि लगेगी, जो प्रदोष काल में पूर्ण रूप से विद्यमान रहेगी। धर्मशास्त्र में होलिका का पूजन प्रदोषकाल में बताया गया है। इसलिए शुभयोग व नक्षत्र में 13 मार्च को प्रदोषकाल में होलिका का पूजन करना श्रेष्ठ है। इस दिन पाताल वासनी भद्रा भी रहेगी, इसलिए होलिका का दहन अवश्य रात 11.30 बजे के बाद करना चाहिए। सामान्यत: होलिका का दहन अगले दिन सुबह 5 बजे ब्रह्म मुहूर्त में किया जाता है। ऐसे में 13 व 14 मार्च की तारीख होली तथा धुलेंडी मनाने के लिए शास्त्र सम्मत है।

सिंहपुरी में पांच हजार कंडों से बनेगी हर्बल होली
पुराने शहर सिंहपुरी में गाय के गोबर से बनाए गए पांच हजार कंडों से होली बनाई जाएगी। आयोजन समिति का दावा है कि यह विश्व की सबसे बड़ी हर्बल होली है। इसमें सिर्फ गाय के गोबर से बने कंडों का उपयोग होता है। लकड़ी का उपयोग नहीं किया जाता है। होली के मध्य में डांडा के रूप में ध्वज लगाया जाता है। इस बार यह आयोजन 13 मार्च को होगा। शाम को प्रदोष काल में चार वेद के ब्राह्मण चतुर्वेद पारायण से होलिका का पूजन करेंगे। रात्रि जागरण के उपरांत अगले दिन सुबह 5 बजे ब्रह्म मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाएगा।

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