मध्यप्रदेश दिवस ख़ास: आखिर कैसे अस्तित्व में आया मध्यप्रदेश? 

Madhya Pradesh Day Special: How did Madhya Pradesh come into existence? 

इंदौर और ग्वालियर जैसे धनी शहरों वाला मध्यप्रांत कैसे मध्यप्रदेश में शामिल हुआ? नेता और अफसर जबलपुर को राजधानी मान जमीन खरीदते रहे लेकिन नेहरू और पटेल ने बाजी क्यों पलट दी?

भोपाल (कमलेश)। राजधानी के लिए कैसे भोपाल का चुनाव हुआ? जब नया प्रदेश बना तो चार राज्यों के अफसर-कर्मचारियों के बीच कई तरह के विवाद हुए। यहां तक कि पोहे को लेकर भी अफसर-कर्मचारियों में झगड़ा होता था।

Madhya Pradesh Day Special

आइए चलते हैं यादों के खट्‌टे-मीठे सफर पर…

मध्य प्रांत, मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल को मिलाकर मध्य प्रदेश बना।

आखिर नए राज्य की जरूरत क्यों पड़ी

मध्यप्रदेश का जन्म एक विचित्र संयोग था। यहां के रहने वालों ने कभी किसी ऐसे प्रदेश की मांग नहीं की थी, लेकिन जब दिसंबर 1952 में श्रीरामुलु नाम का एक व्यक्ति तेलुगू भाषी राज्य की मांग को लेकर भूख हड़ताल करते हुए मर गया और आंध्र प्रदेश का गठन हुआ, तब देश के बाकी इलाके भी भाषायी आधार पर राज्य की मांग करने लगे।

तब सुप्रीम कोर्ट के जज सैयद फजल अली की अध्यक्षता में कवालम माधव पाणिक्कर और डॉ. हृदयनारायण कुंजरु की सदस्यता में 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया।

मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बना, जिसकी कोई भाषायी पहचान नहीं थी। गुना से हिन्दू महासभा के सांसद विष्णु घनश्याम देशपाण्डे ने संसद में नए राज्य का विरोध किया। पुनर्गठन की बहस में बोलते हुए उन्होंने कहा-

अगर कोई प्रांत है, जिसका अपना जीवन नहीं है… लाइफ ऑफ इट्स ओन नहीं है, तो वह मध्यप्रदेश है।

विधायकों की संयुक्त बैठक नागपुर के विधानसभा भवन में हुई

चार राज्यों में सबसे छोटा भोपाल राज्य था। ये अपने शासक नवाब हमीदुल्लाह के बगावती तेवरों के कारण सबसे चर्चित था। आजादी के डेढ़ साल तक नवाब ने भोपाल रियासत का भारत संघ में विलय नहीं किया था। सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद भोपाल में 30 सदस्यीय विधानसभा का निर्माण हुआ और डॉ. शंकरदयाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया।

मध्य प्रांत सबसे बड़ा राज्य था। इसमें नागपुर, विदर्भ के 8 जिलों सहित पूरा छत्तीसगढ़ भी शामिल था। राज्यों के विलीनीकरण के दौरान अंग्रेजों की प्रशासकीय इकाई सेंट्रल प्रॉविन्स और बरार को 1950 में मध्यप्रदेश बना दिया गया था। ये सबसे व्यवस्थित राज्य इसलिए भी था क्योंकि यह अंग्रेजों के समय से एक प्रशासनिक इकाई था।

1956 में जब नया राज्य बनना तय हो गया तो अक्टूबर में चारों राज्यों के सभी कांग्रेसी विधायकों की संयुक्त बैठक नागपुर के विधानसभा भवन में की गई। बैठक में सर्वसम्मति से रविशंकर शुक्ल को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया।

राज्य बना तो राजधानी को लेकर उठापटक शुरू हो गई

1 नवंबर 1956 को राज्यों के पुनर्गठन के बाद जब नया मध्यप्रदेश बना, तब राजधानी को लेकर काफी जद्दोजहद हुई। जहां ग्वालियर और इंदौर मध्यभारत के बड़े शहर थे, वहीं रायपुर रविशंकर शुक्ल का गृहनगर था। इसके बाद जबलपुर का भी दावा मजबूत था। पुनर्गठन आयोग ने अपनी सिफारिश में जबलपुर का नाम राजधानी के लिए प्रस्तावित किया था। कहा जाता है कि सेठ गोविंददास ने जबलपुर को राजधानी बनवाने के लिए सबसे ज्यादा कोशिश की थी। उन्हीं दिनों विनोबा भावे ने जबलपुर को संस्कारधानी की उपमा भी दी थी।

जबलपुर के राजधानी न बन पाने का एक कारण ये भी माना गया कि वहां के समाचार पत्रों में खबर प्रकाशित हुई कि सेठ गोविंददास के परिवार ने जबलपुर-नागपुर रोड पर सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद ली है। अखबारों में छपा कि सेठ परिवार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि जब जबलपुर राजधानी बनेगी तो वहां जमीनों का अच्छा मुआवजा मिलेगा। ये बात जब प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता चली तो भोपाल का पक्ष और मजबूत हो गया।

भोपाल को राजधानी बनाने का एक कारण और था- विंध्य प्रदेश में समाजवादी आंदोलन को कमजोर करना। जबलपुर राजधानी बनता तो महाकौशल के साथ विंध्य भी राजनीतिक सरगर्मी का केंद्र रहता। जबलपुर को राजधानी न बनाने का एक तर्क और दिया गया कि वहां सरकारी कर्मचारी और कार्यालयों के लिए उपयुक्त इमारतें नहीं हैं।

इधर, डॉ. शर्मा प्रधानमंत्री पं. नेहरू को यह समझाने में सफल रहे कि भोपाल में बहुत सारी सरकारी इमारतें और जमीन खाली हैं। यहां जमीन खरीदने की जरूरत नहीं होगी।

1958 में नेहरू ने रखी वल्लभ भवन की नींव

राज्य बनने के साथ ही नई राजधानी बनाने का काम भी शुरू हुआ। दूसरे मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू ने दक्षिण की तरफ एक सुनसान जगह को मंत्रालय के लिए चुना। इस इलाके का नाम लक्ष्मीनारायण गिरी रखा गया। 1958 में नेहरु ने वल्लभ भवन की आधारशिला रखी। वल्लभ भवन को बनने में 7 साल का समय लगा। सचिवालय का नाम वल्लभ भवन तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के कहने पर रखा गया। मिश्र वल्लभ भाई पटेल से बहुत प्रभावित थे।

उस जमाने में भोपाल का सबसे आखिरी छोर रोशनपुरा चौराहा हुआ करता था। जब भोपाल राजधानी बना तो कर्मचाारियों के लिए नाॅर्थ टीटीनगर और साउथ टीटी नगर बना। उसके बाद भोपाल में एक नंबर, दो नंबर से लेकर ग्यारह नंबर स्टॉप तक बिल्डिंगें बनती रहीं।

भोपाल राजधानी बना तो बाकी शहरों को संतुष्ट करने की कोशिश हुई। जबलपुर को हाईकोर्ट, ग्वालियर को रेवेन्यू बोर्ड और इंदौर को लोक सेवा आयोग दिया गया।

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