भोपाल
प्रदेश में जिस तरह महापौर सीधे जनता से चुने जाते हैं, वही व्यवस्था जिला और जनपद पंचायत अध्यक्ष के लिए भी बनाने की तैयारी है। अभी जिला और जनपद पंचायत के अध्यक्ष निर्वाचित सदस्यों के माध्यम से चुने जाते हैं।
अध्यक्षों के चुनाव में प्रलोभन की शिकायत
पंचायत चुनाव वैसे तो गैरदलीय आधार पर होते हैं लेकिन इसमें राजनीतिक दलों का पूरा दखल रहता है। जिस दल की सदस्य संख्या अधिक होती है, उसका समर्थित व्यक्ति अध्यक्ष बन जाता है। जिन निकायों में एक दल के समर्थकों का बहुमत नहीं होता है, वहां सदस्यों को प्रलोभन दिए जाने के साथ धमकाने की शिकायतें भी सामने आती हैं। इसे देखते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने पंचायतराज अधिनियम में संशोधन की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए पंचायतराज संचालनालय ने अन्य राज्यों के प्रविधानों की जानकारी मंगाई है ताकि उनका अध्ययन करके अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित किया जा सके।
सदस्य करते हैं अध्यक्ष का चुनाव
प्रदेश में 52 जिला और 313 जनपद पंचायतें हैं। प्रत्येक जिला पंचायत में औसत 15 तक सदस्य होते हैं। वर्तमान व्यवस्था में सदस्यों का चुनाव होता है। निर्वाचन उपरांत सदस्यों का सम्मेलन बुलाया जाता है, जिसमें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव होता है।
हॉर्स ट्रेडिंग की शिकायत
कई बार मुकाबला बराबरी या नजदीकी होने के कारण सदस्यों को प्रलोभन देकर या डरा-धमकाकर उनका समर्थन प्राप्त कर अपना अध्यक्ष बनवा लिया जाता है। इससे चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल उठते हैं। यही कारण है कि नगरीय निकायों में महापौर और अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराने का प्रविधान किया गया था लेकिन शिवराज सरकार ने नगर पालिका और परिषद के अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता के स्थान पर पार्षदों के माध्यम कराने की व्यवस्था कर दी।
इससे निकाय में जिस दल का बहुमत हुआ, उसका अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बन गया। जहां बहुमत की स्थिति नहीं बनीं, वहां ठीक वैसा ही हुआ, जैसा जिला और जनपद पंचायत के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चुनाव में होता है। फिलहाल सरकार नगरीय निकाय तो नहीं पर पंचायत चुनाव की व्यवस्था में परिवर्तन करने पर विचार कर रही है। मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर पंचायतराज संचालनालय ने इसकी तैयारी भी प्रारंभ कर दी है। इसके लिए अन्य राज्यों के प्रविधानों की जानकारी मंगाई गई है ताकि उनका अध्ययन करके अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित किया जा सके। हालांकि, विधानसभा के 16 दिसंबर से प्रारंभ होने वाले शीतकालीन सत्र में संशोधन प्रस्ताव प्रस्तुत होने की संभावना कम ही है।

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