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Rain in Kuno has increased the difficulties of cheetahs, there is a danger of them getting trapped in water filled pits and marshy land

  • चीतों की सुरक्षा पर मानसून की मार: कूनो में फिर मंडराया संकट Rain in Kuno has increased

ग्वालियर। Rain in Kuno has increased मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों के पुनर्वास की महत्वाकांक्षी परियोजना एक बार फिर प्रकृति की चुनौती से जूझ रही है। लगातार हो रही भारी बारिश ने पार्क को दलदल में बदल दिया है, जिससे न सिर्फ ट्रैकिंग बाधित हो रही है बल्कि चीतों की जान पर भी खतरा मंडराने लगा है।

सबसे चिंताजनक स्थिति उस वक्त उत्पन्न हुई जब मादा चीता ‘आशा’ अपने तीन शावकों के साथ पार्क की सीमा लांघकर बागचा क्षेत्र की ओर निकल गई। जिन इलाकों में वे पहुंचे हैं, वहां हर ओर जलभराव और कीचड़ है — और यहीं से चिंता गहराती है।

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जंगल के बाहर, खतरे के भीतर
चीतों का पार्क की सीमा से बाहर जाना कोई मामूली बात नहीं। बीते वर्ष ‘पवन’ नामक चीते की दर्दनाक मौत एक पानी से भरे गड्ढे में गिरकर हो गई थी, और अब ‘आशा’ व उसके नन्हे शावक उसी रास्ते पर हैं। बरसात के इस भीगे मौसम में, नहरें और गड्ढे जानलेवा जाल बन गए हैं।

तकनीक भी बेबस
हालांकि सभी चीतों के गले में ट्रैकिंग के लिए कालर ID लगे हैं, फिर भी भारी वर्षा और दलदली रास्तों ने ट्रैकर्स की पहुंच को सीमित कर दिया है। न गाड़ियाँ चल पा रही हैं और न ही पैदल ट्रैकिंग संभव है। ऐसे में निगरानी टीमें हर पल तनाव में हैं कि कहीं फिर कोई अनहोनी न घटे।

प्राकृतिक चुनौती के सामने सुझाव
वन रक्षकों ने सुझाव दिया है कि मानसून समाप्त होने तक चीतों को सुरक्षित बाड़ों में शिफ्ट किया जाए, ताकि उनकी जान की हिफाज़त सुनिश्चित हो सके। हालांकि यह कदम उनके प्राकृतिक व्यवहार के अनुकूल नहीं होगा, परंतु वर्तमान हालात में यह सुरक्षा का बेहतर विकल्प बन सकता है।

शावकों की नाजुक स्थिति
शावकों के लिए यह मौसम और भी अधिक जोखिम भरा है। दलदली ज़मीन पर उनका संतुलन बनाना मुश्किल है और अगर वे गड्ढों या पानी में फंस गए तो बचाना बेहद कठिन हो सकता है। यही कारण है कि हर पल की निगरानी अब जरूरी बन गई है।

सावधानी और सतर्कता
कूनो के डीएफओ थिरूकुरल आर के अनुसार, सभी चीतों को संक्रमण से बचाने के लिए दवाएं दी जा चुकी हैं, और निगरानी लगातार जारी है। लेकिन निगरानी से ज्यादा अब ज़रूरत संरक्षण की रणनीति पर दोबारा विचार करने की है।

चीतों को भारत की धरती पर फिर से बसाने का सपना, सिर्फ वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं, पूरे देश का सपना है। लेकिन यह सपना तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक हम प्रकृति के सामने झुककर नहीं, बल्कि उसकी चुनौतियों का समाधान खोजकर खड़े नहीं होते। कूनो में हो रही यह संघर्ष की कहानी एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर करती है — क्या हम सच में तैयार हैं ‘प्रोजेक्ट चीता’ को सफल बनाने के लिए?

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