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मुंबई
शिवसेना नेता संजय निरुपम ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ बोर्ड से संबंधित सुनवाई पर शुक्रवार को अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर ट्रस्टों के समानांतर वक्फ बोर्ड को देखने की कोशिश की, जो "गलत" है। निरुपम ने मिडिया से बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सवाल किया कि क्या मंदिर ट्रस्टों में गैर-हिंदुओं को सदस्य बनाया जा सकता है। उनका कहना है कि मंदिर प्रबंधन समितियां और मस्जिद की इंतजामिया कमेटियां समान हैं। शिवसेना नेता ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट का यह दृष्टिकोण संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का गलत विश्लेषण करता है। मंदिर ट्रस्ट में गैर-हिंदुओं को शामिल करने का कोई कानून या परंपरा नहीं है। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड कोई धार्मिक संगठन नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वक्फ बोर्ड में नई नियुक्तियों और वक्फ संपत्तियों के डीनोटिफिकेशन पर 5 मई को होने वाली अगली सुनवाई तक रोक लगा दी थी।
निरुपम ने कहा कि कुछ लोग गलतफहमी फैला रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून पर पूरी तरह रोक लगा दी है, जो गलत है। जब कोई मामला कोर्ट में विचाराधीन होता है, तो सरकार उस पर कोई कदम नहीं उठाती। इसे "सब ज्यूडिस" यानी न्यायिक प्रक्रिया में होने वाला मामला कहते हैं। केंद्र सरकार को सात दिन के भीतर कोर्ट में जवाब देना है। निरुपम ने जोर देकर कहा कि वक्फ कानून बनाते समय संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं किया गया। बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार स्पष्ट है।
उन्होंने आरोप लगाया कि वक्फ के नाम पर कुछ लोग लूट मचा रहे हैं और इसका गलत फायदा उठा रहे हैं। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड का उद्देश्य गरीब मुस्लिम विधवाओं और बच्चों को लाभ पहुंचाना है, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा है। केंद्र सरकार अदालत में इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करेगी।
निरुपम ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की बजाय संवैधानिक दायरे में रहना चाहिए।"

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