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कनाडा
कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि उन्होंने अपनी कुर्सी बचाने के लिए राष्ट्रवाद और संप्रभुता जैसे मुद्दों को उठाकर जनता का ध्यान अपनी नाकामियों से हटाने की कोशिश की है। ट्रूडो पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी असफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए भारत जैसे देशों पर आरोप लगाए हैं, और अब राष्ट्रवाद का सहारा ले रहे हैं।

राजनीतिक अस्थिरता और गिरती लोकप्रियता से पस्त ट्रूडो
2024 में कनाडा के कई प्रांतों में चुनाव होने वाले हैं, जिनमें नोवा स्कोटिया, ब्रिटिश कोलंबिया, न्यू ब्रंसविक और सस्केचेवान शामिल हैं। साथ ही, 2025 में देश के आम चुनाव होने हैं। ऐसे में, ट्रूडो की लिबरल पार्टी की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। उनकी लोकप्रियता ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है, और उनके सहयोगी दल एनडीपी ने भी उनसे समर्थन वापस ले लिया है। सभी राजनीतिक विश्लेषण यह संकेत देते हैं कि आगामी चुनावों में ट्रूडो की पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है।

उनकी सरकार की कई नीतियां जनता के बीच अलोकप्रिय साबित हो रही हैं, विशेषकर आर्थिक मंदी, महंगाई, और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर उनकी सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा, ट्रूडो की पार्टी के भीतर भी असंतोष बढ़ता जा रहा है। पार्टी में आंतरिक तख्तापलट की चर्चा हो रही है, जो ट्रूडो के राजनीतिक करियर के लिए खतरा साबित हो सकता है। इस स्थिति में, ट्रूडो ने जनता का ध्यान अपनी असफलताओं से हटाने के लिए राष्ट्रवाद और संप्रभुता के मुद्दों को उठाया है, ताकि वे अपने खिलाफ उठ रहे विरोध को कम कर सकें।

भारत पर आरोप सिर्फ राजनीति का हिस्सा नहीं
सितंबर 2023 में, जी20 शिखर सम्मेलन के बाद, ट्रूडो ने अचानक भारत पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ था। यह मामला काफी सुर्खियों में रहा, और ट्रूडो ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता का मुद्दा बना दिया।कनाडा का दावा है कि भारतीय गृह मंत्रालय इस हत्या में शामिल था, जबकि कनाडाई पुलिस लॉरेंस बिश्नोई गैंग को इसके लिए जिम्मेदार मानती है। ट्रूडो ने दावा किया कि भारत के राजदूत और अन्य उच्च स्तरीय अधिकारी भी इस मामले में शामिल थे। लेकिन अब तक उन्होंने कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए हैं, और एक साल बाद भी मामला केवल आरोपों तक ही सीमित है। ट्रूडो की यह रणनीति उनके घरेलू राजनीतिक संकट से निकलने का एक तरीका है।

उन्होंने राष्ट्रवाद और कनाडा की संप्रभुता का मुद्दा उठाकर खुद को एक ऐसा नेता दिखाने की कोशिश की है, जो अपने देश की सुरक्षा के लिए खड़ा है। इससे उन्हें चुनावी फायदे की उम्मीद है, क्योंकि यह कदम उन मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता के प्रति संवेदनशील हैं।  हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि ट्रूडो का यह कदम सिर्फ घरेलू राजनीति तक सीमित नहीं है। उनके इस निर्णय का अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी प्रभाव पड़ रहा है, खासकर भारत-कनाडा संबंधों में। भारत के साथ बढ़ते तनाव ने दोनों देशों के कूटनीतिक और आर्थिक रिश्तों पर नकारात्मक असर डाला है।

ट्रूडो को चीन और विदेशी ताकतों का स्पोर्ट
यह भी चर्चा  है कि ट्रूडो को चीन और अन्य विदेशी संस्थाओं से वित्तीय और राजनीतिक समर्थन मिल रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन ने ट्रूडो और उनकी लिबरल पार्टी में भारी निवेश किया है। इसके साथ ही, क्लॉस श्वाब के वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन और जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन ने भी ट्रूडो को समर्थन दिया है। इस समर्थन के चलते ट्रूडो की राजनीतिक पेंशन और सेवानिवृत्ति निधि सुरक्षित मानी जा रही है, जिससे वे खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्हें यकीन है कि भले ही उनकी सरकार चुनाव हार जाए, उनकी राजनीतिक स्थिति पर इसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
 

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