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बच्चे क्यों करते हैं शिकायत

बच्चें अक्सर पेरेंट्स को आकर शिकायत करते है कि मम्मा! देखो यह मुझे डॉल से खेलने नहीं दे रहा, इसने मेरी बुक फाड़ दी, यह मुझे चिढ़ा रहा है। कुछ बच्चों को बेवजह हर बात पर बड़ों से शिकायत करने की आदत पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में यह समझना बहुत जरूरी है कि बच्चे को वास्तव में कोई परेशानी है या उसकी आदत ही ऐसी है। स्वाभाविक है यह दो-ढ़ाई साल की उम्र से ही बच्चों में ऐसी आदतें दिखने लगती हैं। यह उनके भावनात्मक विकास का जरूरी हिस्सा है। इस उम्र से ही बच्चों में अधिकार की भावना विकसित हो जाती है। वे किसी के साथ अपनी चीजें शेयर नहीं करना चाहते। इसी उम्र में खुद से उनका जुड़ाव होता है। जब भी उन्हें ऐसा लगता है कि कोई दूसरा उन्हें नुकसान पहुंचाने वाला है तो वे शोर मचा कर विरोध प्रदर्शित करते हैं। उनका ऐसा व्यवहार सुरक्षा की दृष्टिड्ढ से बेहद कारगर साबित होता है, लेकिन दिक्कत तब होती है जब बच्चे बेवजह छोटी बातों पर नाराज होकर शिकायत करते हैं या पांच साल की उम्र के बाद भी उनमें यही आदत बनी रहती है। क्या है असली वजह दरअसल छोटे बच्चे स्थितियों और व्यवहार से जुड़ी बारीिकयों को समझने में असमर्थ होते हैं। उनके लिए कोई भी बात पूरी तरह सही या गलत होती है। सही-गलत के काले-सफेद रंगों के बीच मौजूद ग्रे शेड को पहचानकर उसके अनुकूल व्यवहार करने की क्षमता इतनी छोटी उम्र में विकसित नहीं होती। भाई-बहनों और दोस्तों से छोटी-छोटी शिकायतें करते हुए ही बच्चे सही-गलत की पहचान करना सीखते हैं। इसी के साथ उनमें नैतिकता की भावना विकसित होती है। खेलकूद के दौरान होने वाले छोटे-छोटे झगड़ों से भी कई ऐसी बातें सीखने को मिलती हैं, जो ताउम्र उसके काम आती हैं। ऐसे में उसे आपके सहयोग की जरूरत होती है। आप उसे समझाएं कि छोटी-छोटी बातों के लिए मम्मी-पापा से शिकायत नहीं करनी चाहिए। अगर किसी दोस्त से तुम्हारा झगड़ा हो तो उसे खुद सुलझाने की कोशिश करो। हां, जब भी तुम्हें किसी से डर लगे या कोई खतरा महसूस हो तो हमें जरूर बताओ। कैसे निबटें शिकायतों से सबसे पहले बड़ों को यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या सचमुच उनके बच्चे को कोई परेशानी है? उसकी पूरी बात सुने बिना अपने आप यह मान लेना अनुचित है कि बच्चे तो ऐसा करते ही हैं। चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, दो मिनट रुक कर धैर्यपूर्वक उसकी पूरी बात जरूर सुनें। ऐसा करना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार बच्चे सचमुच बहुत परेशान होते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए बड़ों का बीच में बोलना जरूरी होता है। बच्चों में यह तय करने की क्षमता नहीं होती कि कौन सी स्थितियां उसकी सुरक्षा की दृष्टिड्ढ से नुकसानदेह साबित हो सकती हैं। ऐसे में जो व्यक्ति बच्चों के साथ होता है, उसकी यह जिम्मेदारी बनती है कि उन पर नजर रखते हुए वह समझने की कोशिश करे कि उनके बीच खिलौनों के लिए मामूली छीना-झपटी हो रही है या मारपीट। कुछ बच्चों का व्यवहार बेहद आक्रामक होता है। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप अपने बच्चे को समझाएं कि तुम किसी से झगड़ा मत करना, लेकिन तुम्हें जब भी कोई खतरा महसूस हो तो आसपास मौजूद अंकल या आंटी को जरूर बताना। समझदारी से बनेगी बात यह सच है कि बच्चों के बीच होने वाले छोटे-छोटे झगड़े उनकी नासमझी की वजह से होते हैं। ऐसे में उन्हें बड़ों के सहयोग की जरूरत होती है। अगर कोई दूसरा बच्चा आपके बेटे से उसका मनपसंद खिलौना छीन लेता है और वह रोता हुआ आपके पास शिकायत लेकर आता है तो ऐसी स्थिति में आप उन दोनों को बारी-बारी से खेलने सलाह दे सकती हैं। अगर वे फिर भी न मानें तो वह खिलौना वापस मांग कर अपने पास रख लें और उनसे कोई दूसरा गेम खेलने को कहें। जब भी आपके बच्चे का किसी से कोई झगड़ा हो तो हल के रूप में उसके सामने कम से कम दो-तीन विकल्प जरूर रखें। इससे वह आसानी से अपने विवाद सुलझाना सीख जाएगा। क्या है असली मंशा पेरेंट्स के लिए बच्चे की असली मंशा समझना बहुत जरूरी है। कुछ बच्चे आठ-दस साल की उम्र तक पहुंचने के बाद भी हर बात के लिए माता-पिता के पास पहुंच जाते हैं या अपनी छोटी सी परेशानी को भी बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। बच्चे की भलाई के लिए यह बेहद जरूरी है कि माता-पिता निष्पक्ष रूप से अपने उसकी खूबियों-खामियों का विश्लेषण करें। कुछ बच्चों को झूठी शिकायत करके अपने दोस्तों को डांट सुनवाने में मजा आता है तो कुछ बड़ों के सामने अच्छा इंप्रेशन बनाने के लिए भी भाई-बहनों की शिकायत करते हैं। कई बार वे दोस्तों पर रौब जमाने के लिए भी ऐसा करते हैं। जिन बच्चों में दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचने की आदत होती है, वे भी बेवजह चुगली करते हैं। अगर आपका बच्चा ऐसी वजहों से शिकायत करता है तो आप उसकी इस आदत को किसी भी हाल में बढ़ावा न दें। अगर आप पूरी बात जाने-समझे बिना उसकी हर शिकायत पर दूसरे बच्चों को डांटेंगी तो वह कभी भी अपनी समस्याएं सुलझाना सीख नहीं पाएगा। हां, अगर वह आपका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए ऐसा कर रहा हो तो उस वक्त आप भले ही उसकी बातों को नजरअंदाज कर दें, पर बाद में उसके साथ भरपूर क्वॉलिटी बिताएं और उसकी सारी बातें ध्यान से सुनें। ठीक नहीं है मनमानी केवल भाई-बहनों या दोस्तों के बीच मनमानी करने के लिए अगर वह आपसे शिकायत करता है तो उसकी ऐसी बातों को गंभीरता न लें। जब आपको ऐसा लगे कि सचमुच उसकी शिकायत जायज है तभी दूसरे बच्चे को टोकें। अगर आप अपने बच्चे की उम्र और मानसिक परिपक्वता को लेकर संतुष्टड्ढ हैं कि वह अपने झगड़े खुद सुलझा लेगा तो उसे और उसके साथ मौजूद दोस्तों को प्यार से समझा दें कि जब तक बहुत जरूरी न हो वे आपके पास कोई शिकायत लेकर न आएं। पेरेंटिंग के मामले में यह समझना बहुत जरूरी है कि दो बच्चों के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर मामूली विवाद होना स्वाभाविक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि सिर्फ एक … Read more

पश्चिम पूर्वी निमाड़ के वनों से वर्ष में 150 करोड़ की आय, 50 हजार महिला-पुरुषों को रोजगार मिला

भोपाल प्रदेश के पश्चिमी-पूर्वी निमाड़ के अंतर्गत खण्डवा, बुरहानपुर, खरगौन, बड़वाह, सेंधवा और बड़वानी वनमंडलों के वनों की वनोपज औषधि, सागौन की इमारती लकड़ी , तेंदूपत्ता, महुआ, बाँस जैसी उपजों से एक वर्ष में राज्य शासन को 150 करोड़ रूपये से अधिक की आय हुई है।इसमें वन विकास निगम से होने वाली आय भी शामिल है। निमाड़ वन क्षेत्र में तेंदूपत्ता संग्रहण के लिये ग्राम स्तर पर 33 प्राथमिक लघु वनोपज समितियाँ बनाई गई हैं। इनसे आदिवासी महिला-पुरुष संग्राहकों को 21 करोड़ रुपये का लाभ दिया गया है। खण्डवा जिले में आने वाले वन क्षेत्र में 38 हजार 902 पुरुष एवं 33 हजार 685 अनुसूचित जनजाति के संग्राहकों को रोजगार मिला है। इन वर्गों के लोगों का जीवन वन और वन से होने वाली आय पर निर्भर है। सीसीएफ खण्डवा रमेश गणावा ने बताया कि निमाड़ के खंडवा वन वृत के खण्डवा, बुरहानपुर, खरगौन, बड़वाह, सेंधवा और बड़वानी वनमंडलों के वनों से शासन को 150 करोड़ का राजस्व देकर अपनी अहम भूमिका निभा रही है। निमाड़ के वनों से स्थानीय 50 हजार पुरुष और महिलाओं को रोज़गार प्राप्त होता है। यहाँ के वनों से मिलने वाले तेंदूपत्ता, महुआ, सागौन, बाँस, धावड़ा और सलई गोंद देशभर में प्रसिद्ध है। निमाड़ के वनोपज और जड़ी-बूटियों की माँग देशभर में बढ़ रही है वनों में मौजूद औषधियाँ, पौधे मनुष्य की बीमारियों को दुरुस्त करने में मदद करते हैं। इनमें नीम की निम्बोली और तेल, कालमेघ, गिलोय, अर्जुन, हड़जोड़, निर्गुण्डी, आँवला, बहेड़ा, चिरायता, अश्वग़ँधा, सर्पगंधा, अपामार्ग, धावड़ा, गोंद, शहद सहित अन्य पेड़-पौधे औषधि के काम आते हैं। इन औषधियों से पौष्टिक खाद्य सामग्री, तपेदिक, बवासीर, कुष्ठ रोग, माइग्रेन और सर्पदंश जैसी बीमारियों को ठीक करने में मदद मिलती है। सीसीएफ गणावा ने बताया कि निमाड़ के वनों के औषधीय पौधों से 10 लाख रुपये प्रतिवर्ष आय वन समितियों के संग्राहको को होती है। इसके अलावा सागौन की बिक्री से काष्ठ लाभांश, वन विभाग द्वारा पूर्व में वितरित बाँस पौधों से प्राप्त बाँस, रोपण क्षेत्रों से घास, तेंदूपत्ता, महुआ फूल एवं महुआ गुल्ली, सिराडी से चटाई और ईको पर्यटन केन्द्र धारीकोटला, बोरियामाल, गूँज़ारी और बावनगजा से होने वाली आय 50 करोड़ के लगभग है। सीसीएफ खण्डवा गणावा ने बताया कि निमाड़ के बड़े तेंदूपत्ता की माँग देशभर में है। तेंदूपत्ता के लिये वन विभाग द्वारा लघु वनोपज संघ मुख्यालय भोपाल स्तर से टेण्डर जारी किये जाते हैं। इसमें मध्यप्रदेश के अलावा पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात राज्यों के व्यापारी टेण्डर में शामिल होते हैं। खंडवा के आशापुर डिपो के सागौन को प्रीमियर सागौन माना गया है।   Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 24

इस बार चुनाव आयोग ने कांग्रेस को शिकायतों के जवाब के साथ नसहीतें भी दीं, कहा महत्वपूर्ण दिनों में दुष्प्रचार करना पार्टी का शगल

नई दिल्ली कभी ईवीएम बदल दिया गया तो कभी ईवीएम हैक हो गया तो कभी ईवीएम खराब हो गया तो कभी मतगणना अधिकारी ने गड़बड़ी कर दी… कांग्रेस पार्टी हर चुनाव में कुछ ना कुछ शिकायत जरूर करती है। लेकिन जैसे ही जीत मिलती है, जश्न का माहौल हावी हो जाता है और शिकायतें कहीं पृष्ठभूमि में चली जाती हैं और हार मिल गई तो शिकायतों का सिलसिला जारी। चुनाव आयोग ने मंगलवार को लिखी चिट्ठी में कुछ इसी अंदाज में जवाब दिया है। हरियाणा की हार का ठीकरा भी ईवीएम पर कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार का ठीकरा कुछ अलग तरह से फोड़ा। पार्टी ने इस बार बड़ी अलबेली वजह बताकर ईवीएम में हेरफेर का आरोप मढ़ा। कांग्रेस ने कहा कि कई मतगणना केंद्रों पर ईवीएम की बैटरी बाकियों के मुकाबले ज्यादा चार्ज थी। पार्टी ने दावा किया जहां ईवीएम की बैटरी ज्यादा चार्ज थी, वहां उसे हार मिली है। पार्टी ने इसकी आधिकारिक शिकायत चुनाव आयोग से की थी जिसका जवाब आयोग ने मंगलवार को दिया। कांग्रेस को चुनाव आयोग की हिदायत चुनाव आयोग ने कांग्रेस के रवैये पर आपत्ति जाहिर की और उसे सावधान भी किया। आयोग ने 26 विधानसभा क्षेत्रों के रिटर्निंग ऑफिसर्स की री-वेरिफिकेशन रिपोर्ट का हवाला दिया। आयोग ने कहा कि पूरी जांच के बाद पाया गया कि चुनावी प्रक्रिया का हर चरण सही था और कांग्रेस उम्मीदवारों या एजेंटों की देखरेख में किया गया था। यह जानकारी 1,600 पेज की रिपोर्ट में है। चुनाव आयोग ने डीटेल में दिया जवाब आयोग ने कांग्रेस को दिए जवाब में कहा, 'रिटर्निंग ऑफिसर्स को चुनावी प्रक्रिया में किसी भी तरह की गड़बड़ी का कोई सबूत नहीं मिला है। जवाबों से पता चलता है कि कांग्रेस के उम्मीदवारों, प्रतिनिधियों और उनके एजेंट चुनाव की विभिन्न प्रक्रियाओं में शामिल थे, जिसमें ईवीएम प्रक्रियाएं भी शामिल हैं।' 8 अक्टूबर को मतगणना के दिन कांग्रेस ने चुनाव आयोग को एक ज्ञापन भेजा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सुबह 9-11 बजे के बीच आयोग की वेबसाइट पर हरियाणा के परिणामों को अपडेट करने में बेवजह सुस्ती देखी गई जिस कारण संदेह होने का मौका मिला। बाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस के जयराम रमेश और पवन खेड़ा ने भी ज्यादा चार्ज बैटरी वाले ईवीए में कांग्रेस के उम्मीदवारों को झटका लगने की बात कही थी। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 26

इस दिवाली चीन का निकला दिवाला, 1.25 लाख करोड़ का नुकसान… नहीं बिक रहा है चाइनीज सामान, ‘मेड इन इंडिया’ का जलवा

नई दिल्ली पिछले कुछ वर्षों से दिवाली और धनतेरस पर चाइनीज प्रोडक्ट्स की डिमांड भारतीय बाजारों में लगातार घटती जा रही है. खासकर डेकोरेटिंग आइटम्स की बिक्री पहले के मुकाबले काफी घटी है. डिमांड कम होने से आयात भी कम हो रहा है, जिससे घरेलू सामानों की बिक्री बढ़ रही है. दरअसल, देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' अभियान का असर अब दिखने लगा है. चाइनीज सामानों की बिक्री लगातार घट रही है. इस साल अधिकतर लोग दिवाली पर स्वदेशी सामान खरीदते हुए नजर आ रहे हैं. खासकर लोग इलेक्ट्रॉनिक्स सजावट के सामान 'मेड इन इंडिया' देखकर ही खरीद रहे हैं. चाइनीज प्रोडक्ट्स का विरोध    एक अनुमान के अनुसार दिवाली से जुड़े चीनी सामानों की बिक्री में तगड़ी गिरावट से चीन को करीब 1 लाख 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है. क्योंकि लगातार कई वर्षों से दिवाली पर चाइनीज प्रोडक्ट्स का बहिष्कार किया जा रहा है. कुम्हारों से मिट्टी के दीये और सजावट का सामान खरीदकर लोग 'वोकल फॉर लोकल' अभियान को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं. कैट ने देशभर के व्यापारिक संगठनों से आग्रह किया है कि वह अपने क्षेत्र की जो महिलाएं, कुम्हार, कारीगर सहित अन्य लोग दीपावली से संबंधित सामान बना रहे हैं, उनकी बिक्री में वृद्धि करने में सहायता करें. इससे लोगों में जागरुकता बढ़ी है, और अब वो घरेलू प्रोडक्ट्स को तरजीह दे रहे हैं. जिससे चीन को करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. कन्फ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) जो व्यापारियों का संगठन है, उसने व्यापारियों से अपील की है कि वो लोकल प्रोडक्ट्स को बढ़ावा दें. कैट के जनरल सेक्रेटरी और चांदनी चौक के सांसद प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि इस दिवाली पर 'वोकल फॉर लोकल' का दर्शन पूरी तरह बाजारों में दिख रहा है क्योंकि करीब सारी खरीदारी भारतीय सामानों की ही हो रही है. सोने-चांदी की खूब खरीदारी बता दें, भारतीय परंपरा में दिवाली और धनतेरस पर जमकर खरीदारी की जाती है. इस दिन खासतौर पर लोग सोने-चांदी के आभूषण और अन्य वस्तुएं, सभी प्रकार के बर्तन, रसोई का सामान, वाहन, कपड़े और रेडीमेड गारमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, बिजली का सामान एवं उपकरण, व्यापार करने के उपकरण जैसे कंप्यूटर एवं कंप्यूटर से जुड़े उपकरण, मोबाइल, बही खाते और फर्नीचर खरीदते हैं. कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के मुताबिक इस साल धनतेरस पर लगभग 60 हजार करोड़ रुपये के कारोबार होने का अनुमान लगाया गया है. जबकि दिवाली तक यह आंकड़ा 1 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा. इस दौरान सोने, चांदी के अलावा पीतल के बने बर्तन की जबरदस्त खरीद हुई है.  इस बार करीब 2500 करोड़ रुपये की चांदी खरीदी गई. जबकि एक दिन में 20 हजार करोड़ का सोना बिक गया है.   Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 31

मध्यप्रदेश के विकास की रोमांचक यात्रा

मध्यप्रदेश दिवस 1 नवम्बर पर विशेष मध्यप्रदेश के विकास की रोमांचक यात्रा भोपाल मध्यप्रदेश की रोमांचक विकास यात्रा के बारे में विस्तार से जानते हुए 1911 की जनगणना रिपोर्ट के पन्ने पलटना भी रोमांचक अनुभव से कम नहीं। यह रिपोर्ट आईसीएस जे.सी. मार्टिन ने तैयार की थी। वे सेंट्रल प्रोविंस एंड बेरार के सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ सेंसस ऑपरेशंस थे। वर्ष 1901 से 1910 के दशक में बेरार प्रोविंस को सेंट्रल प्रोविंस में शामिल किया गया। इस प्रकार सेंट्रल प्रोविंस के 8 ब्रिटिश जिले बेरार के चार जिले और 15 सामंती राज्यों को मिलाकर जनगणना होनी थी। यह पांचवीं जनगणना थी जो 10 मार्च 1911 में शुरू हुई। कुल 91,770 गणनाकार, 8,422 सुपरवाइजर और 675 चार्ज सुपरिंटेंडेंट मिलाकर एक लाख से ज्यादा का स्टाफ जनगणना के लिए था। यह क्षेत्र एक लाख 31 हजार वर्ग मील था। जनसंख्या 160 लाख थी। यह ब्रिटिश इंडिया के कुल क्षेत्रफल का 7.3% था, जो जापान के क्षेत्रफल से थोड़ा काम। आज का मध्यप्रदेश जो पहले मध्य भारत प्रांत था वह इसी सेंट्रल प्रोविंस एंड बेरार का भाग था। वर्ष 1911 की सेंसस रिपोर्ट के साक्षरता संबंधित 8वें चैप्टर में कुछ बेहद दिलचस्प आंकड़े मिलते हैं। इसमें अखबारों की संख्या और प्रसार संख्या के आंकड़े भी प्रकाशित किए गए। हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती दैनिक, मासिक, पाक्षिक और साप्ताहिक पत्रों की संख्या 27 थी और प्रसार संख्या 10,627 थी। इसी प्रकार संस्कृत मारवाड़ी, गुजराती, तमिल, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी की कुल 640 किताबें इस दौरान प्रकाशित हुई थी। सेकेंडरी स्कूलों की संख्या 444 थी, जिसमें 53,308 बच्चे पढ़ते थे। प्राथमिक स्कूल 3865 थे, जिसमें 2 लाख 77 हजार 620 बच्चे पढ़ते थे। प्रत्येक 30 व्यक्ति में से एक साक्षर था। अंग्रेजी साक्षरता का अलग से आकलन किया गया था। प्रत्येक 10 हजार की जनसंख्या में 55 पुरुष और 5 महिलाएं अंग्रेजी में साक्षर थीं। नागपुर, जबलपुर, सागर और अमरावती में अंग्रेजी पढ़ने-बोलने वाले ज्यादा थे क्योंकि इन्हीं जगहों पर अंग्रेजी अफसरों की पोस्टिंग होती थी और वे अंग्रेजी में लोगों से बात करते थे। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि 1901 से 1910 के बीच 562 मील रेलवे रूट था। रेलवे में सबसे ज्यादा 36 हजार 367 लोगों को रोजगार मिला था। दूसरे नंबर पर सिंचाई विभाग था, जिसमें 18 हजार 473 को नौकरियां मिली थी। मध्यप्रदेश का जन्म स्वतन्त्रता मिलने तक इस विशाल क्षेत्र का विकास आगे बढ़ता रहा। बाद में भाषा, सांस्कृतिक आधार पर और प्रशासनिक प्रबंधन की दृष्टि से अलग राज्य बनाने की मांग शुरू हुई। देश की एकता बनाए रखते हुए क्षेत्रीय संतुलन की बातें मुखर हुईं। परिणामस्वरुप 29 दिसंबर 1953 को राज्यों के पुनर्गठन आयोग बनाया गया। जस्टिस सैयद फैसल अली अध्यक्ष और हृदय नाथ कुंजूरू, कोवल्लम माधव पणिक्कर इसके सदस्य थे। आयोग ने 30 सितंबर 1955 को सिफारिशों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें मुख्य रूप से जिन बिंदुओं पर राज्यों का पुनर्गठन किया जाना था, उसमें परिवर्तन के परिणाम, भारत की एकता और सुरक्षा, भाषा और संस्कृति, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, राष्ट्रीय विकास की योजना, राज्यों के आकार जैसे बिंदुओं का ध्यान रखा गया था। आयोग की अनुशंसाओं को अमल में लाने के लिए संविधान में संशोधन अनिवार्य प्रक्रिया थी। फलस्वरूप लोकसभा में 18 अप्रैल 1956 को संविधान नवम संशोधन विधेयक पेश हुआ। इसे अक्टूबर में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 1 नवंबर 1956 को यह पूर्ण रूप से अधिनियम बना। साथ ही सेंट्रल प्रोविंस एंड बेरार में शामिल मराठी भाषी जिले महाराष्ट्र में शामिल हो गए और मध्यप्रदेश में 43 जिले बचे। बाद में दो जिलों का क्षेत्रफल के अनुसार विभाजन हुआ और 45 जिलों का मध्यप्रदेश बना। जनसंख्या वृद्धि, वैश्विक विकास के मानदंडों के साथ कदमताल करते हुए मध्यप्रदेश का विकास निरंतर होता रहा। वर्ष 2000 में जन-आकांक्षाओं के अनुरूप छत्तीसगढ़ राज्य बना। मानव संसाधन, परिसंपत्तियों और प्राकृतिक संसाधनों का स्वाभाविक रूप से बटवारा हुआ । विकास की गति रुकी नहीं। विकास का आकलन करने के परंपरागत तरीकों, मापदंडों के अलावा भी कई नए क्षेत्रों में मध्यप्रदेश नई उपलब्धियों और नए कीर्तिमान के साथ आगे बढ़ रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी जैसे नए क्षेत्रों में मध्यप्रदेश गतिशील है। अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ जिस प्रकार कदमताल कर रहा है वह सराहनीय है। प्रशासनिक नवाचारों और विकास प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी जनित नवाचारी हस्तक्षेप से आम नागरिकों का जीवन आसान हुआ है। रोमांचक यात्रा वर्ष 1956, वर्ष 2000 और वर्तमान समय के मध्यप्रदेश में बड़ा परिवर्तन साफ दिखता है। शहरों और गांवों के बुनियादी ढांचे में परिवर्तन हुआ है। सूचना क्रांति ने जीवन के हर आयाम को छुआ है। अधोसंरचनात्मक विकास से सामाजिक बदलाव आया है। जनसंख्या की निरंतर वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां बने रहने के बावजूद विकास की बाधाएं समाप्त हो रही हैं। प्रदेश के गठन के बाद 1961 की जनगणना 323.7 लाख थी। कुछ आधारपभूत आंकड़ों से मध्यप्रदेश की विकास यात्रा और ज्यादा रोमांचक हो जाती है। अर्थव्यवस्था तेजी से बढी है। वर्ष 2003 में जीडीपी 71,594 करोड़ थी जो अब बढ़कर 13,63,327 करोड़ हो गई है। प्रति व्यक्ति आय वर्ष 1956 में मात्र 261 रूपए, 2003 में 11,718 करोड़ और वर्तमान में 1,42,565 करोड़ है। कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव हुआ है। इसका कारण सिंचाई और बिजली की भरपूर उपलब्धता है। किसान-मित्र नीतियों से खेती आधारित अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत हुई। खेती से जुड़े अन्य क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा। अब सामान्य खेती से आगे बढ़कर कृषि उद्यमिता पर मध्यप्रदेश ने कदम रख रहा है। कृषि क्षेत्र में निर्यात बढ़ा है। मध्यप्रदेश का गेहूं, चावल, दालें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जा रही हैं। एक अन्य क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन हुआ है वह राजस्व संग्रह का क्षेत्र। सरकार और व्यापारिक समुदाय के परस्पर सहयोग एवं विश्वास के रिश्तों से स्वप्रेरित राजस्व अदा करने की संस्कृति को बढ़ावा मिला है। मध्यप्रदेश जीएसटी संग्रहण में देश में पहले पांच राज्यों में है। यह राजस्व सरप्लस राज्य बन गया है। बिजली संकट से जूझने के बाद मध्य प्रदेश पावर सरप्लस राज्य है। नवकरणीय ऊर्जा जैसे नए क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रदेश के विभिन्न भूभाग में समान रूप से औद्योगिक निवेश एवं विकास करने के उद्देश्य को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रीजनल इंडस्ट्री कांक्लेव की श्रृंखला की शुरुआत की। अब तक उज्जैन … Read more

बुलडोजर एक्शन के बाद अब योगी आदित्यनाथ का एक स्लोगन भी चल पड़ा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’

लखनऊ आगरा के एक कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश के हालात की मिसाल देते हुए लोगों को एक स्लोगन के जरिये आगाह करने की कोशिश की थी, 'बंटेंगे तो कटेंगे'. और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उसी बात को महाराष्ट्र में अपने तरीके से पेश किया, 'अगर हम बंटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे' – और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भाषण में भी ऐसा ही भाव महसूस हुआ था. अब तो संघ की तरफ से ये स्लोगन ऐसे एक्सप्लेन किया जा रहा है, जैसे यही आखिरी रास्ता बचा हो. इस नारे के पीछे राजनीतिक मकसद को चाहे जैसे भी समझा जाये, लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि ये लोगों की जबान पर भी चढ़ रहा है, और बीजेपी विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं की तरफ से विरोध भी जताया जाने लगा है. धार्मिक एकता, या जातीय एकता पर जोर देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ ने कोई नई बात नहीं कही है. एकता की अहमियत तो बरसों से समझाई जाती रही है. योगी आदित्यनाथ ने उसी बात को अपने अंदाज में पेश किया है, और मौका ऐसा है कि ये नया राजनीतिक नारा हो गया है. खास बात ये है कि इस नारे का जय श्रीराम की तरह विरोध भी नहीं किया जा सकता, जैसा ममता बनर्जी करती रही हैं. ये ऐसा भी नारा नहीं है जिसकी वजह से योगी सीधे सीधे निशाने पर आ जायें, जैसे – '… गर्मी शांत कर देंगे.' तभी ये स्लोगन लोगों की जबान पर भी चढ़ रहा है, और आगरा में तो पोस्टर भी लग चुके हैं. आगरा में  लगे पोस्टर पर योगी आदित्यनाथ की तस्वीर भी है, और ये स्लोगन भी लिखा है – और ये पोस्टर इलाके के लोगों को हैपी दिवाली बोलने के लिए लगाया गया है. फर्ज कीजिये, ऐसे में जबकि लोग अपने वॉटर बॉटल पर 'बंटेंगे तो कटेंगे' लिखवाने लगे हों, तो मानकर चलना चाहिये कि सड़कों पर चल रही गाड़ियों के ग्लास पर भी ये स्लोगन पढ़ने को मिल सकता है. अब सवाल है कि योगी आदित्यनाथ के इस नारे में धार्मिक एकता का संदेश है, या जातीय एकता का? परिभाषित इसे अलग अलग तरीके से जरूर किया जा रहा है, लेकिन ये तो हर मामले में फिट बैठता है. योगी आदित्यनाथ के स्लोगन का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले कहते हैं, हिंदू समाज एकता में नहीं रहेगा तो आजकल की भाषा में 'बंटेंगे तो कटेंगे' हो सकता है. हिंदू समाज के जातियों में बंटने की सबसे ज्यादा फिक्र संघ को ही रही है, और उसी बात को लेकर दत्तात्रेय होसबले समझाते हैं, समाज में अगड़ा-पिछड़ा, जाति-भाषा में भेद करेंगे तो हम कटेंगे… इसलिए एकता जरूरी है… हिंदू समाज की एकता लोक कल्याण के लिए है… हिंदुओं को तोड़ने के लिए शक्तियां काम कर रही हैं… आगाह करना जरूरी है. उत्तर प्रदेश में हाल ही में पुलिस एनकाउंटर को लेकर भी जातीय राजनीति का बोलबाला देखने को मिला है. सुल्तानपुर डकैती के आरोपियों के एनकाउंटर से लेकर पुलिस हिरासत में होनेवाली मौतों को लेकर भी – और ऐसे में संघ और बीजेपी की तरफ से योगी आदित्यनाथ के स्लोगन को चुनावों में भुनाने की कोशिश चल रही है. एक्शन, स्लोगन और ब्रांड योगी 1. एकता की जो बातें बहुत पहले से होती रही हैं. नैतिक शिक्षा में ऐसी तमाम नसीहतें दी जाती रही हैं. तमाम ऐसे किस्से पढ़ने को मिलते हैं – योगी आदित्यनाथ ने उसी बात को ठेठ देसी अंदाज में बोल कर वर्ड-ऑफ-माउथ बना दिया है. और योगी की ये बात वैसे ही ली जा रही है, जैसे आमिर खान के मुंह से सुनने को मिला था, 'ठंडा मतलब कोका कोला.' जैसे, यूपी और बिहार में सड़कों पर रफ्तार भरते ट्रकों के पीछे लिखा होता है, 'सटला त गइला बेटा.' थोड़ा ध्यान देकर देखिये, सभी में ध्वनि एक जैसी ही है. 2. वैसे भी योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व की राजनीति में एक ब्रांड तो हैं ही. ब्रांड मोदी के बाद अगर उस मिजाज का कोई और ब्रांड है तो ब्रांड योगी ही है – और 'बंटेंगे तो कटेंगे' में भी बुलडोजर की ही छवि उभर कर आ रही है. 3. जैसे योगी के बुलडोजर को बीजेपी सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने हाथों हाथ लिया था, बंटेंगे तो कटेंगे को भी करीब करीब वैसे ही लिया जा रहा है – और खास बात ये है कि ये भाव मोदी से लेकर भागवत तक के भाषणों में भी प्रकट होने लगा है.   Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 25

मोदी सरकार ने तमिलनाडु, बिहार, झारखंड और गुजरात से की कॉन्‍ट्रैक्‍ट फार्मिंग की शुरुआत

नई दिल्‍ली सरकार ने पहली बार किसानों के साथ 1,500 हेक्टेयर जमीन पर दालें (अरहर और मसूर) उगाने के लिए कॉन्‍ट्रैक्‍ट फार्मिंग यानी अनुबंध खेती सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं। ऐसा तमिलनाडु, बिहार, झारखंड और गुजरात जैसे राज्यों में किया गया है। यह पायलट डील ऐसे राज्यों में खेती का विस्तार करके दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की योजना का हिस्सा है जहां किसान परंपरागत रूप से दालें उगाने के इच्छुक नहीं हैं। यह सौदा किसानों और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (NCCF) के बीच हुआ है। इसके तहत किसान अपनी जमीन पर अरहर और मसूर उगाएंगे। एजेंसी सरकार के बफर स्टॉक के लिए उनकी उपज का एक हिस्सा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) या बाजार मूल्य पर खरीदेगी, जो भी अधिक हो। आगे क्‍या है योजना? एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खरीद की मात्रा इस साल बफर स्टॉक के हिसाब से ज्यादा नहीं होगी। लेकिन, उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में जब कॉन्‍ट्रैक्‍ट फार्मिंग के तहत अधिक क्षेत्र लाया जाएगा तो यह बढ़ेगा। फिलहाल, सरकार की ओर से रजिस्‍टर्ड दाल उत्पादकों की पूरी उपज खरीदने की प्रतिबद्धता के बावजूद सरकारी एजेंसियां खरीद लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। कारण है कि उत्पादन में गिरावट के कारण कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इससे निजी कंपनियां किसानों को अधिक दाम दे रही हैं। पिछले साल से दालों की महंगाई ऊंची बनी हुई है। अनियमित बारिश ने लगातार दो साल तक फसल के आकार को कम कर दिया है। इससे सरकार को घरेलू सप्‍लाई बढ़ाने के लिए आयात प्रतिबंधों को हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। सरकार ने किसानों से वादा किया है कि वे MSP या बाजार मूल्य पर अरहर, उड़द और मसूर की असीमित मात्रा में खरीद करेंगे, जो भी अधिक हो, बशर्ते वे इसके पोर्टल पर पंजीकरण कराएं। महंगाई पर न‍िशाना आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि जुलाई और अगस्त में 6% के निशान से नीचे रहने के बाद सितंबर में खाद्य महंगाई दर में 9.24% की बढ़ोतरी हुई है। इसके चलते खुदरा महंगाई दर सितंबर में नौ महीनों के ऊंचे स्तर 5.5% पर वापस आ गई है। हालांकि, अच्छी बुवाई और अधिक उपज की संभावना के कारण पिछले महीने दालों की कीमतों में गिरावट आई। 16 महीनों में पहली बार 10% से अधिक की मुद्रास्फीति की गति से घटकर 9.81% रह गई। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, सब्जियों और दालों की बढ़ती कीमतों के कारण सितंबर में घर पर पकाए जाने वाली शाकाहारी थाली की लागत में साल-दर-साल 11% की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दालों की कीमतें, जो शाकाहारी थाली की लागत का 9% हिस्सा हैं, 2023 में उत्पादन में गिरावट के कारण 14% बढ़ी हैं। इससे इस साल शुरुआती स्टॉक कम हुआ। इससे थाली की कीमतों में और बढ़ोतरी हुई है। पिछले कुछ वर्षों में दालों के उत्पादन में गिरावट आई है। वहीं, डिस्पोजेबल इनकम और अधिक जनसंख्या के कारण मांग में बढ़ोतरी हुई है। लगातार घट रहा है उत्‍पादन कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2021-22 में 27.3 मिलियन टन से दालों का उत्पादन वित्तीय वर्ष 2022-23 में घटकर 26 मिलियन टन और वित्तीय वर्ष 2023-24 में 24.5 मिलियन टन रह गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में दालों का आयात काफी बढ़ा है। यह वित्त वर्ष 2023-24 में 4.7 मिलियन टन हो गया। भारत में दालों की वर्तमान वार्षिक खपत लगभग 27 मिलियन टन अनुमानित है। भारत मोजाम्बिक, तंजानिया, मलावी और म्यांमार से अरहर और कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, रूस और तुर्की से मसूर का आयात करता है। Pushpendra“माय सीक्रेट न्यूज़” यह एक ऑनलाइन वेबसाइट है, जो आपको देश – दुनिया और आपके आसपास की हर छोटी-बड़ी खबरों को आप तक पहुंचाती है। इस वेबसाइट का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र जी कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता में BJC (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) और MJC (मास्टर ऑफ़ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री 2011 में हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर मप्र से हासिल की है। उन्होंने भोपाल के स्वदेश, राज एक्सप्रेस, राष्ट्रीय हिंदी मेल, सांध्य प्रकाश, नवदुनिया और हरिभूमि जैसे बड़े समाचार पत्र समूहों में काम किया है।  और पढ़ें इस वेबसाइट का संचालन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से हो रहा है, जहाँ से प्रदेश की राजनीति से लेकर विकास की योजनाएं तैयार होती हैं।दे श व प्रदेश जिले की ताजा अपडेट्स व राजनीतिक प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़ते रहिए हमारी वेबसाइट (my secret news. Com )👈 ✍️ पुष्पेन्द्र , (वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल, मप्र  mysecretnews.com recent visitors 63