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नई दिल्ली/ प्रयागराज
सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में 2021 में हुई बुलडोजर कार्रवाई पर मंगलवार (1 अप्रैल) को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी को आदेश दिया कि वह 5 याचिकाकर्ताओं को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दे। यह मुआवजा 6 सप्ताह के भीतर दिया जाना अनिवार्य होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्रवाई को अवैध ठहराते हुए कहा कि नोटिस मिलने के मात्र 24 घंटे के भीतर मकान गिराना कानून के खिलाफ है। न्यायालय ने यह भी कहा कि भविष्य में सरकारों को इस प्रकार की गलत कार्रवाइयों से बचना चाहिए और उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

बच्ची का वीडियो बना मुद्दा

23 मार्च को उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में हुई एक अन्य बुलडोजर कार्रवाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इस वीडियो में एक बच्ची अपनी झोपड़ी के गिराए जाने के दौरान भागती हुई दिख रही थी, जो अपनी किताबें बचाने के लिए दौड़ रही थी। इस भावनात्मक वीडियो का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेताया कि ऐसे मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट की पहले भी चेतावनी

 7 मार्च को भी सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को बुलडोजर कार्रवाई के लिए फटकार लगाई थी। पीड़ितों ने दावा किया कि राज्य सरकार ने गलती से उनकी ज़मीन को गैंगस्टर अतीक अहमद की संपत्ति मान लिया, जिसके कारण प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के घर ध्वस्त कर दिए गए।

इसी मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्जल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर में 24 मार्च को हुई घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान एक तरफ झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था तो दूसरी तरफ 8 साल की एक बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी. इस तस्वीर ने सबको हैरान कर दिया, ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, जहां अवैध रूप से तोड़फोड़ की जा रही है और इसमें शामिल लोगों के पास निर्माण कार्य करने तक की क्षमता नहीं है.

नोटिस के 24 घंटे बाद चला बुलडोजर

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनको एक्शन से पहले कोई नोटिस नहीं मिला. यहां तक कि नोटिस भेजने के 24 घंटे के भीतर ही बुलडोजर चला दिया गया. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक साल 2021 में पहले एक मार्च को उन्हें नोटिस जारी किया गया था, उन्हें 6 मार्च को नोटिस मिला. फिर अगले ही दिन 7 मार्च को मकानों पर बुलडोजर एक्शन लिया गया.

अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य लोगों की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की जिनके मकान ध्वस्त कर दिए गए थे. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि प्रशासन और शासन को ये लगा कि ये संपत्ति गैंगस्टर और राजनीतिक पार्टी के नेता अतीक अहमद की है. इन सभी लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में फरियाद की थी. लेकिन हाईकोर्ट ने घर गिराए जाने की कार्रवाई को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जिन घरों को गलती से गिराया गया है, उन्हें राज्य सरकार अपने खर्च पर फिर से बनाएगी। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य सरकार इस फैसले को चुनौती देना चाहती है, तो उसे कानूनी प्रक्रिया के तहत हलफनामा दाखिल करना होगा।

सरकार को कड़ी चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि बिना उचित प्रक्रिया के किसी की संपत्ति को नष्ट करना कानून का उल्लंघन है। यह फैसला भविष्य में सरकारों को मनमानी कार्रवाई करने से रोकने का एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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