नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर आपत्ति जताए जाने वाले उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान पर वरिष्ठ वकील व राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने नाराजगी जाहिर की है। सिब्बल ने शुक्रवार को उपराष्ट्रपति पर निशाना साधते हुए कहा कि उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति और राज्यपाल के बारे में पता होना चाहिए, जिन्हें मंत्रियों की सहायता और सलाह पर काम करना होता है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को रोकना वास्तव में विधानमंडल की सर्वोच्चता में दखलंदाजी है। यह धनखड़ जी (उपराष्ट्रपति) को पता होना चाहिए, वे पूछते हैं कि राष्ट्रपति की शक्तियों को कैसे कम किया जा सकता है, लेकिन शक्तियों को कौन कम कर रहा है?
कपिल सिब्बल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ''आज सुबह कई अखबारों में जब मैंने धनखड़ साहब का भाषण पढ़ा तो दुख और आश्चर्य हुआ, क्योंकि ज्यूडिशियल इंस्टीट्यूशन फिर चाहे सुप्रीम कोर्ट हो या हाई कोर्ट हो, इन पर ही विश्वास है। मुझे लगता है कि जब सरकार के लोगों को ज्यूडिशियरी के फैसले पसंद नहीं आते हैं तो वे आरोप लगाना शुरू कर देते हैं कि ये हद से बाहर हैं। जब पसंद आते हैं तो विपक्ष को कहते हैं कि यह तो सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था। फिर चाहे 370 हो या राम मंदिर का फैसला हो, इस पर कहते हैं कि यह तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला था। जो आपको जजमेंट सही नहीं लगे, सोच के हिसाब से नहीं हो वह गलत है और जो सोच के हिसाब से है, वह ठीक है।''
उन्होंने आगे कहा, ''मैं उनका बड़ा आदर करता हूं, लेकिन आपने कह दिया कि आर्टिकल 142 न्यूक्लियर मिसाइल है, यह कैसे कह सकते हैं? आपको पता है कि आर्टिकल-142 द्वारा सुप्रीम कोर्ट को संविधान ने हक दिया है ना कि किसी सरकार ने, ताकि न्याय हो। जब राष्ट्रपति अपना फैसला करती हैं तो वह कैबिनेट के सुझाव से करती हैं। इसी तरह जब कोई विधेयक पारित होता है तो राज्यपाल के पास जाता है। संविधान ने हक दिया है कि राज्यपाल कमेंट करके विधेयक को वापस भेज सकता है। जब दोबारा विधानसभा पारित कर दे तो राज्यपाल को साइन करना पड़ता है। यह संविधान कहता है। राज्यपाल यह भी कर सकता है कि वह किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। राष्ट्रपति व्यक्तिगत तौर पर कुछ नहीं करतीं, वह केंद्र सरकार के कैबिनेट पर जाती हैं और वो एडवाइस करते हैं कि क्या करना है। धनखड़ जी को यह पता होना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की पावर को कम कैसे कर सकते हैं, आखिर कौन कम कर रहा है उनकी ताकत कम।''
साइन करने से मना नहीं कर सकते राष्ट्रपति
राज्यसभा सांसद ने आगे कहा कि संसद अगर बिल पास करे तो क्या राष्ट्रपति उसे लेकर बैठ सकते हैं कि हम साइन नहीं करेंगे और यदि ऐसा नहीं करें तो किसी को अधिकार है या नहीं कि यह अहम बिल है। वह यह नहीं कह सकते कि वह साइन नहीं करेंगे। वह कमेंट करके वापस भेज सकते हैं, फिर दोबारा पास हो। यह संविधान की परंपरा है। अदालतों ने फैसला पहले ही कर दिया है। मुझे इस बात का आश्चर्य है कि कभी मेघवाल जी कहते हैं कि हद में रहना चाहिए। कभी रिजिजू कहते हैं कि यह क्या हो रहा है? वहीं, धनखड़ जी कहते हैं कि पुराने समय में जब सुप्रीम कोर्ट में आठ जज थे तो पांच जज फैसला करते थे, अब तो इतने जज हो गए हैं। दो ही जज फैसला करेंगे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट बेंच पर ही बैठेगा। ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट फैसला करता है।
सुपर संसद की तरह काम कर रहे जज: धनखड़
धनखड़ ने 17 अप्रैल को एक कार्यक्रम के दौरान राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की थी। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बना रहे हैं, कार्यकारी कार्य कर रहे हैं और सुपर संसद के रूप में काम कर रहे हैं। धनखड़ ने अपने संबोधन के दौरान कहा, "राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है, और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह कानून बन जाता है। इसलिए हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो सुपर संसद के रूप में काम करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।" धनखड़ ने कहा, "हाल ही में आए एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए। यह सवाल नहीं है कि कोई समीक्षा दायर करता है या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी उम्मीद नहीं की थी।"

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