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अयोध्या
राम मंदिर में विराजमान रामलला के गर्भगृह के सामने लगा पर्दा बदल दिया गया है। अब मैरून रंग की जगह बादामी रंग का कढ़ाईदार पर्दा लगाया गया है। पूरे दिन समय समय पर भोग के समय रामभक्तों को दिखाई देगा। इसके पहले तक मैरून रंग के मखमली पर्दे पर रामानुजीय उपासना परम्परा के प्रमुख चिह्न शंख व चक्र को सुनहरे तारों से अंकित किया गया था। नए पर्दे पर अब कोई चिह्न नहीं है।

अयोध्या में ब्रह्मचारियों के मस्तक पर धारण करने वाले त्रिपुंड व उर्ध्व पुंड तिलक पर इन दिनों एक बहस छिड़ी है। अयोध्या में संचालित वेद विद्यालय के बटुक ब्रह्मचारियों के मस्तक पर त्रिपुंड व उर्ध्व पुंड तिलक धारण कराया गया। लक्ष्मण किला में बटुक ब्रह्मचारियों के यज्ञोपवीत संस्कार के कार्यक्रम से इसे लेकर चर्चा तेज हो गई। अलग-अलग मंचों पर यह विषय सार्वजनिक बहस का मुद्दा बन गया।

बड़ा भक्तमाल के पीठाधीश्वर महंत अवधेश दास का कहना है कि उपासना परम्परा में वेशभूषा और तिलक-चंदन का भेद है। यही भेद सभी उपासकों को अलग-अलग पहचान भी देता है। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या वैष्णव नगरी है। यहां के वेद विद्यालयों में वैदिक शिक्षा के साथ रामोपासना में दीक्षित विद्यार्थी है। वेदाध्ययन के लिए यज्ञोपवीत कराना बाध्यता और अनिवार्यता दोनों है लेकिन त्रिपुंड धारण करने के कारण उनकी पहचान शैव की हो गई। इस बीच राम मंदिर के पर्दे से चिह्नों का गायब होना इस चर्चा को नया रूप दे गया।

 

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