परशुराम जयंती का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं और यह भगवान शिव के परम भक्त माने जाते है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल परशुराम जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को मनाई जाती है. भगवान परशुराम का जन्म माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि के घर प्रदोष काल में हुआ था उन्हें चिरंजीवी भी माना गया है. इसी दिन अक्षय तृतीया का त्योहार भी मनाया जाता है. इस बार परशुराम जयंती 30 अप्रैल को मनाई जाएगी.
परशुराम जयंती शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, परशुराम जयंती की तिथि 29 अप्रैल को शाम 5 बजकर 31 मिनट से शुरू होगी और तिथि का समापन 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट समाप्त होगी.
भगवान विष्णु के अवतार होने के बाद भी भगवान परशुराम की पूजा इतनी प्राचलित क्यों नहीं हैं? आइए इसके पीछे के कारण को जानते हैं.
1. क्षत्रिय विरोधी छवि होने के कारण भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु जैसे अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया था. जिसके कारण कुछ समुदाय उन्हें क्रोधी योद्धा मानते हैं. यह छवि उनकी भक्ति को सीमित करती है.
2. सन्यासी स्वरूप होने के कारण, परशुराम एक योद्धा-ऋषि थे, जिनका तप, शास्त्र और धर्म की रक्षा पर केंद्रित था. उनका कोई पारिवारिक या सामाजिक रूप नहीं था, जिसके कारण भक्तों का जुड़ाव कम रहा.
3. क्षेत्रीय भक्ति होने के कारण जैसे उनकी पूजा मुख्य रूप से दक्षिण भारत और कुछ ब्राह्मण समुदायों में होती है. अन्य क्षेत्रों में राम-कृष्ण की भक्ति अधिक लोकप्रिय है.
4. इसके पीछे की पौराणिक कथा यह है कि परशुराम अमर हैं और कलियुग के अंत में कल्कि अवतार को प्रशिक्षित करेंगे. इस कारण उनकी पूजा भविष्य-उन्मुख मानी जाती है.
परशुराम जयंती का महत्व
भगवान परशुराम धर्म, शास्त्र और शस्त्र की आराधना का महापर्व है. मान्यता है कि इस दिन पूजा व्रत करने से साहस, शक्ति और शांति प्राप्त होती है. नि:संतान दंपतियों के लिए यह व्रत संतान प्राप्ति में फलदायी माना जाता है. दान पुण्य का विशेष महत्व है, जो मोक्ष और समृद्धि का मार्ग खोलता है. यह दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का भी अवसर है.

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