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इम्फाल
माह की शुरुआत में, भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक मणिपुर के तामेंगलोंग जिले में अमूर फाल्कन पक्षियों को सैटेलाइट ट्रांसमीटर से टैग करेंगे, ताकि इन प्रवासी पक्षियों के रास्तों का अध्ययन किया जा सके। यह जानकारी वन अधिकारियों ने दी है।

यह खूबसूरत पक्षी, जिन्हें मणिपुर में ‘अखुआइपुइना’ और नागालैंड में ‘मोलुलम’ के नाम से जाना जाता है, सालाना करीब 22,000 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। ये पूर्वी एशिया से दक्षिण अफ्रीका तक की यात्रा करते हैं और फिर शरद ऋतु में वापस लौटते हैं।

फाल्कन परिवार से संबंधित ये छोटे पक्षी, जो आकार में कबूतर से थोड़े छोटे होते हैं, तामेंगलोंग के घने जंगलों वाले इलाके में बड़ी संख्या में पहुंचे हैं प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए मणिपुर के नोनी और तामेंगलोंग जिलों ने किसी भी तरह के शिकार, पकड़ने, मारने और बेचने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।

ये जिले असम और नागालैंड से लगे हुए हैं, जो इन पक्षियों की आगे की यात्रा से पहले एक छोटा ठहराव स्थल भी होता है। तामेंगलोंग के वन अधिकारी हिटलर सिंह ने बताया कि देहरादून स्थित डब्ल्यूआईई के वैज्ञानिक, डॉ सुरेश कुमार यूके से मंगवाए गए ट्रांसमीटर के साथ नवंबर के पहले सप्ताह में तामेंगलोंग पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक पहले कुछ अमूर फाल्कन चुनकर उनकी सेहत का निरीक्षण करेंगे और फिर सबसे स्वस्थ दो पक्षियों को ट्रांसमीटर से टैग करेंगे।

सिंह ने बताया कि जैसे ही टैग किए गए पक्षी उड़ान भरेंगे, उनके यात्रा मार्ग और उड़ान पैटर्न का अध्ययन किया जा सकेगा। ट्रांसमीटर एक साल तक काम करता है, जिससे इन पक्षियों की पूरी सालभर की यात्रा का रिकॉर्ड मिल सकेगा।

एक मादा बाज को 2018 में तमेंगलोंग में ट्रांसमीटर से टैग किया गया था। उसने लगातार पांच दिन और आठ घंटे उड़ान भरने के बाद 5,700 किलोमीटर की दूरी तय करके सोमालिया में लैंड किया था। इस बीच, जिले के अधिकारियों और जानवर प्रेमियों के समूहों ने इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं।

वन अधिकारी हिटलर सिंह ने बताया, स्थानीय लोगों को प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए वन विभाग, स्थानीय क्लबों और पशु प्रेमियों के समूहों के समर्थन से, पहले की तरह नवंबर के पहले और दूसरे सप्ताह में “अमूर फाल्कन महोत्सव” का आयोजन करेगा।

तामेंगलोंग के पशु प्रेमियों का कहना है कि वन अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा अमूर फाल्कन की सुरक्षा के लिए बढ़ाई गई जागरूकता और सुरक्षा के प्रयासों के कारण उनके शिकार की घटनाओं में काफी कमी आई है।

एक पशु प्रेमी ने कहा, “हमने अपने जिले में अमूर फाल्कन का स्वागत किया है। हमने देखा है कि कई बाज हमारे जिले में आजादी से उड़ रहे हैं।”

राज्य में अमूर फाल्कन की जनसंख्या का पहला सर्वेक्षण पिछले वर्ष तामेंगलोंग के चुलुआन बांस के जंगल में किया गया था, जहां बराक नदी के किनारे 1,41,274 बाज पाए गए थे।

नागालैंड में, एक वन अधिकारी ने बताया कि ये राज्य भी इन पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहां ये पक्षी शीतकाल में तीन से चार सप्ताह के लिए विश्राम और फिर से तरोताजा होने के लिए रुकते हैं। इन पक्षियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति का पर्यावरणीय महत्व है, क्योंकि ये प्राकृतिक रूप से कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं।

अमूर बाज को 1972 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत कानूनी संरक्षण दिया गया है। नागालैंड के अधिकारी ने कहा कि इन पक्षियों का शिकार करना या उनके मांस का कब्जा करना गंभीर अपराध है, जिसके चलने तीन साल तक की सजा भी हो सकती है।

अमूर फाल्कन और अन्य प्रवासी पक्षियों के संरक्षण से नागालैंड में पर्यटन को बढ़ावा मिला है।

 

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