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भोपाल

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के चार प्रमुख संगठनों ने शनिवार को एक पत्रकार वार्ता में सर्वोच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका की जानकारी दी। यह याचिका कैंसर और घातक किडनी रोगों से ग्रस्त पीड़ितों को अपर्याप्त मुआवजा मिलने के खिलाफ है। संगठनों ने पीड़ितों के स्वास्थ्य क्षति के गलत वर्गीकरण को अस्थायी से स्थायी श्रेणी में बदलने और अतिरिक्त मुआवजे की मांग की है।

गैस पीड़ितों के साथ हुआ अन्याय

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संगठन की अध्यक्ष रशीदा बी ने बताया कि सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, कैंसर से पीड़ित 11,278 व्यक्तियों में से 90% और घातक किडनी रोगों से पीड़ित 1,855 व्यक्तियों में से 91% को केवल 25,000 रुपये का मुआवजा दिया गया। उन्होंने इसे अत्यंत अन्यायपूर्ण बताया।  

भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि ओडिशा के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ. एस. मुरलीधर ने हमारे मामले को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया। उन्होंने पहले भी हमारे लिए स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करवाई हैं।

स्थायी क्षति के बावजूद अस्थायी वर्गीकरण

भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने यूनियन कार्बाइड के दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि मिथाइल आइसोसाइनेट से स्वास्थ्य को स्थायी क्षति होती है। इसके बावजूद 93% दावेदारों को "अस्थायी" तौर पर प्रभावित माना गया, जिसके कारण उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिला। उन्होंने कहा कि गैस पीड़ितों को अपर्याप्त मुआवजा मिलने के पीछे यही मुख्य कारण है।   भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने सुप्रीम कोर्ट के 1991 और 2023 के आदेशों का जिक्र करते हुए कहा कि पीड़ितों को मुआवजे की कमी की भरपाई सरकार को करनी होगी। उन्होंने कैंसर और किडनी रोगों से पीड़ित पीड़ितों के लिए न्यूनतम 5 लाख रुपये के अतिरिक्त मुआवजे की मांग की।

 

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