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नई दिल्ली

दुनिया में 2024 में जलवायु परिवर्तन की वजह से भीषण गर्मी के दिनों में औसतन 41 दिन की वृद्धि हुई है।  एक नई रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के अनुसार, रिकॉर्ड के हिसाब से 2024 सबसे गर्म वर्ष बनने वाला है और यह पहला वर्ष है जिसमें वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा।

जलवायु वैज्ञानिकों के दो समूहों – वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) और क्लाइमेट सेंट्रल – की वार्षिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में 2024 में भीषण गर्मी के दिनों में औसतन 41 दिन की वृद्धि हुई।

छोटे द्वीपीय विकासशील देश सबसे अधिक प्रभावित हुए, जहां के लोगों को 130 से अधिक अतिरिक्त गर्म दिन का अनुभव करना पड़ा। वैज्ञानिकों ने 2024 में 219 मौसम संबंधी घटनाओं की पहचान की और उनमें से 29 का अध्ययन किया।

उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कम से कम 3,700 लोगों की मौत हुई और मौसम संबंधी 26 घटनाओं की वजह से लाखों लोग विस्थापित हुए।

अध्ययन के अनुसार सूडान, नाइजीरिया, नाइजर, कैमरून और चाड में बाढ़ सबसे घातक घटना थी, जिसमें कम से कम 2,000 लोग मारे गए।

अध्ययन में पता चला कि यदि ग्लोबल वार्मिंग दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो इन क्षेत्रों में हर साल इसी तरह की भारी वर्षा संबंधी घटनाएं हो सकती हैं। ग्लोबल वार्मिंग 2040 या 2050 के दशक की शुरुआत में दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है।

डब्ल्यूडब्ल्यूए के प्रमुख और इंपीरियल कॉलेज, लंदन में जलवायु विज्ञान के वरिष्ठ व्याख्याता फ्राइडेरिक ओटो ने कहा, ‘जीवाश्म ईंधन के गर्म होने के प्रभाव 2024 की तुलना में कभी भी इतने स्पष्ट या अधिक विनाशकारी नहीं रहे हैं। हम एक नए खतरनाक युग में रह रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि चीजों को बदतर होने से रोकने के लिए हमें क्या करने की जरूरत है – जीवाश्म ईंधन जलाना बंद करें। 2025 के लिए शीर्ष संकल्प जीवाश्म ईंधन से दूर जाना होगा, जो दुनिया को एक सुरक्षित व अधिक स्थिर स्थान बनाएगा।”

 

 

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