असम
असम में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के कारण पहली बार किसी की मौत की खबर सामने आई है। 17 वर्षीय एक लड़की, जो कक्षा 12वीं की छात्रा थी, ने 10 दिन पहले इलाज के दौरान इस दुर्लभ बीमारी के कारण अपनी जान गंवा दी। लड़की की मौत से न केवल असम बल्कि पूरे देश में इस बीमारी को लेकर चिंता बढ़ गई है। जानिए इस बीमारी के बारे में, इसके लक्षण और इलाज से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
GBS क्या है?
गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) एक दुर्लभ तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो अचानक से शरीर के अंगों में कमजोरी और सुन्नपन का कारण बनती है। इसमें शरीर के तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचता है, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी, चलने-फिरने में समस्या और कभी-कभी श्वसन तंत्र भी प्रभावित हो सकता है। यह बीमारी एक सामान्य जीवाणु संक्रमण के बाद उत्पन्न होती है। हालांकि, यह गंभीर हो सकती है, लेकिन समय पर इलाज से अधिकांश लोग ठीक हो जाते हैं।
असम में GBS से पहली मौत
यह घटना असम के एक निजी अस्पताल की है, जहां 17 वर्षीय लड़की को 10 दिन पहले भर्ती किया गया था। लड़की की हालत काफी गंभीर थी और उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था। उसके बाद अस्पताल में इलाज चल रहा था, लेकिन जीबीएस के गंभीर रूप ने उसकी जान ले ली। अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार, यह इस मौसम में असम में जीबीएस से होने वाली पहली मौत है।
देशभर में GBS के मामले बढ़ रहे हैं
हाल ही में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में भी GBS के मामलों में वृद्धि देखी गई है। अब असम में भी इस बीमारी के मामले सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि यह बीमारी देश के विभिन्न हिस्सों में तेजी से फैल रही है, और आने वाले दिनों में और भी मामलों के सामने आने की संभावना है। जीबीएस एक आम जीवाणु रोग है, लेकिन इसके मामले बहुत कम होते हैं। पिछले छह महीनों में असम में इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया था, लेकिन अब इसकी स्थिति बदल रही है।
GBS के लक्षण क्या होते हैं?
GBS के सामान्य लक्षणों में शरीर के अंगों में कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द, श्वसन में परेशानी, और कभी-कभी दस्त की समस्या शामिल होती है। यह बीमारी अचानक शुरू होती है और तेजी से बढ़ती है। शुरुआत में हल्के लक्षण दिख सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह गंभीर रूप लेती है, व्यक्ति को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत भी पड़ सकती है।
क्या GBS से डरने की जरूरत है?
इस बारे में एक वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ ने बताया कि हर साल राज्य में GBS के कुछ मामले सामने आते हैं। हालांकि, यह बीमारी आमतौर पर गंभीर नहीं होती है। जीबीएस के बाद कई मरीज ठीक हो जाते हैं और अपने दैनिक काम आसानी से कर पाते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में मरीजों को लकवा भी हो सकता है, लेकिन समय पर इलाज से वे ठीक हो जाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी के बारे में घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन किसी भी संदिग्ध लक्षण पर डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
इलाज और बचाव
GBS का इलाज समय पर किया जा सकता है और यदि सही उपचार मिले तो अधिकांश लोग पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। इसके उपचार में इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी और प्लाज्मा एक्सचेंज शामिल होते हैं। यह उपचार तंत्रिका तंत्र को नुकसान से बचाने में मदद करता है। हालांकि, जैसे-जैसे इस बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं, डॉक्टरों का कहना है कि हमें इसके बारे में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, ताकि लोग इसके लक्षणों को पहचान सकें और समय पर इलाज करवाएं।

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