बजट विशेष
नीरज मनजीत
इस बार के बजट में केन्द्र सरकार ने मिडिल क्लास को दिल खोलकर जैसा तोहफ़ा दिया है, वह अभूतपूर्व और ऐतिहासिक है। भारत का मिडिल क्लास हर साल उत्सव की तरह बजट की प्रतीक्षा करता है। उसकी पहली नज़र इनकम टैक्स के स्लैब पर लगी होती है, कि सरकार ने कितनी राहत दी है। कभी उसे निराशा हाथ लगती है, तो कभी 'ऊंट के मुंह में जीरा' जैसी छूट हासिल हो भी जाती है।
पिछले कुछ वर्षों से हम देख रहे हैं कि देश का मिडिल क्लास फ्रस्ट्रेशन का शिकार होता चला जा रहा है। वोट हासिल करने की होड़ में राजनीतिक पार्टियों को अनाप-शनाप रेवड़ियां बाँटते देखकर इस फ्रस्ट्रेशन में साल-दर-साल बढ़ोतरी हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों दिल्ली की एक जनसभा में इस बात के संकेत दिए थे कि देश के 50-60 करोड़ के विशाल मध्यवर्ग को राहत देना उनकी प्राथमिकता है। इसलिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के आख़िर में जैसे ही टैक्स छूट का ऐलान किया, सत्ता पक्ष के सांसद एक मिनट तक मेजें थपथपाकर स्वागत करते रहे।
वैसे नितांत तटस्थ भाव से समीक्षा की जाए, तो यह बड़ी राहत अगले वर्षों में काफी दूरदर्शी क़दम साबित हो सकती है। वित्तमंत्री सीतारमण का कहना है कि नए टैक्स स्लैब से सरकार को तक़रीबन एक लाख करोड़ रुपए का वित्तीय घाटा होगा, मगर भविष्य में इसके बहुत से फ़ायदे भी होंगे।
इस छूट का तार्किक विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि इससे मंझोले कारोबारियों और नौकरीपेशा लोगों की जेब में अतिरिक्त पैसा आएगा, उनकी क्रयशक्ति बढ़ेगी, पैसा बाज़ार में ख़र्च होगा, जिससे देश की अर्थव्यवस्था के पहिए को तेज गति मिलेगी। पिछले कुछ दशकों से देखा गया है कि मध्यवर्ग के लोग कमाई का एक बड़ा हिस्सा उपभोक्ता वस्तुओं की ख़रीद, सैर-सपाटे और तीज-त्योहारों में दिलेरी से ख़र्च करने लगे हैं। इसे फ़िजूलखर्ची नहीं बल्कि इनकम मैनेजमेंट कहा जाना चाहिए। थोड़ी बहुत बचत का भाव भी उनके अंदर रहता है। बचत का पैसा भी बैंकों अथवा शेयर मार्केट में आएगा। अंततः इसका फ़ायदा भी देश की इकोनॉमी को ही होगा।
जैसी कि परंपरा रही है, विपक्ष ने अपने-अपने तरीक़ों से इस बजट की आलोचना की है। अखिलेश यादव के नेतृत्व में विपक्ष के कुछ सांसदों ने तो बजट का ही बहिष्कार कर दिया। हालांकि बाद में कुछ सांसद अपनी सीटों पर लौट आए। अखिलेश चाहते थे कि पहले महाकुंभ के हादसे पर चर्चा होनी चाहिए। जैसे ही सीतारमण ने बजट भाषण शुरू किया, अखिलेश और कुछ विपक्षी संसद हंगामा करने लगे। अखिलेश के इस रवैये को क़तई ठीक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पीएम मोदी ने सत्र से पहले ही कह दिया था कि वे महाकुंभ हादसे पर संसद में चर्चा कराने के लिए तैयार हैं। बजट के पहले दिन तो यह संभव नहीं था। ऐसे में अखिलेश के बहिष्कार अगर कोई मतलब था तो सिर्फ़ यही के वे इस मुद्दे को सुर्ख़ियों में रखना चाहते थे। महाकुंभ के हादसे पर बेशक योगी सरकार से सवाल पूछे जाने चाहिए, मगर जिस तरह से एक तबका अफ़वाहें फ़ैलाने में लगा हुआ है, वह तो बहुत ही ख़तरनाक है। क्या ऐसे लोग चाहते हैं कि कोई बड़ा हादसा हो जाए?
बजट पर राहुल गांधी ने बड़ी ही रोचक टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बजट "बुलेट इंजरी पर बैंड-एड" यानी "गोली के जख़्म पर पट्टी" लगाने जैसा है। हालांकि राहुल का यह कथन एक रस्म अदायगी के अलावा और कुछ नहीं है, मगर यदि इसे सही मान भी लिया जाए, तो भाजपा और निर्मला सीतारमण ने कम-से-कम मिडिल क्लास के जख़्मों पर मरहम पट्टी लगाने की कोशिश तो की। 2014 से पहले कांग्रेस की सरकारें किस क़दर मध्यवर्ग की उपेक्षा करती थीं, यह भी हमने अच्छी तरह देखा है।
मिसाल के तौर पर हम यहाँ 2011, 2012 और 2013 के बजट के इनकम टैक्स के आंकड़े पेश कर रहे हैं। 2011 से पहले कांग्रेस सरकार में 1 लाख 60 हजार तक की इनकम टैक्स फ्री थी। इस वर्ष वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने इसमें 20 हजार की बढ़ोतरी करते हुए 1 लाख 80 हजार तक कर दिया था। 2012 में पी चिदंबरम ने इसे बढ़ाकर 2 लाख की इनकम टैक्स फ्री कर दी। 2013 में कांग्रेस सरकार ने कोई बढ़ोतरी नहीं की थी। अलबत्ता 2 से 5 लाख के स्लैब में 2 हजार रुपये की छूट दी गई थी। ज़ाहिर है कि मिडिल क्लास के घावों पर तरीक़े का फ़ाहा रखना भी कांग्रेस की प्राथमिकता में नहीं था।
2014 में भाजपा सरकार के आते ही वित्तमंत्री अरुण जेटली ने टैक्स फ्री इनकम में एकमुश्त 50 हजार की बढ़ोतरी करके ढाई लाख कर दी थी। इसके बाद तक़रीबन हर साल टैक्स स्लैब में मिडिल क्लास को कुछ-न ₹-कुछ राहत दी गई है। 2020 में तो एक बार फिर एकमुश्त छूट देते हुए 5 लाख तक की इनकम टैक्स फ्री कर दी गई। वित्तमंत्री थीं निर्मला सीतारमण। 2023 में और इस साल तो मोदी सरकार ने कमाल ही कर दिया। 2023 में 7 लाख की आय और इस बार सीधे 5 लाख की छलांग और 12 लाख की इनकम टैक्स फ्री कर दी गई। निःसंदेह इसका श्रेय पीएम मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को दिया जाएगा।
इस छलांग के अलावा भी इस बजट में बहुत कुछ है। सच तो यह है कि यह बजट गरीब, किसान, लोअर मिडिल क्लास, मंझोले व्यापारियों, बेरोजगार युवाओं, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों का भला चाहने वाली "सर्वे भवन्तु सुखिनः" के सिद्धांत पर चलने वाली सरकार का सर्वांगीण बजट है। बजट में युवाओं के स्टार्टअप और महिला उद्यमियों के लिए बड़ी रक़म रखी गई है। 'मेक इन इंडिया एंड मेक फ़ॉर वर्ल्ड' के विचार को आगे बढ़ाने के लिए व्यापारियों के लिए लोन गारंटी लिमिट 5 से 10 करोड़ की गई है। साथ में 72 लाख नौकरियां पैदा करने का संकल्प है।
भारतीय जनता पार्टी और पीएम मोदी पिछले दस वर्षों से भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का सपना साकार करने की कोशिश कर रहे हैं। इसीलिए हर युवा को वे संदेश देते हैं कि वे बजाए सरकारी नौकरियों के पीछे दौड़ने के, किसी स्टार्टअप का मालिक बनें और अपने साथ अपने गाँव के युवाओं को भी रोजगार देकर आगे बढ़ें। जरूरी नहीं है कि बड़ा स्टार्टअप ही शुरू किया जाए। छोटे और मध्यम स्टार्टअप से भी आगे बढ़ा जा सकता है। चीन ने हर इलाक़े में जो अभूतपूर्व तरक़्क़ी की है, उसके पीछे छोटे और मंझोले उद्यमियों का बड़ा हाथ रहा है। भारत के पास भी विशाल मैनपॉवर है। युवाओं में भी आगे बढ़ने की ख़्वाहिश है। जरूरत यही है कि हमारे युवा राजनीतिक पार्टियों के हाथों का औजार न बनें और सकारात्मक भाव से ख़ुद भी आगे बढ़ें और देश को भी आगे ले जाएँ।

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