MY SECRET NEWS

लखनऊ

आगरा के एक कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश के हालात की मिसाल देते हुए लोगों को एक स्लोगन के जरिये आगाह करने की कोशिश की थी, 'बंटेंगे तो कटेंगे'.

और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उसी बात को महाराष्ट्र में अपने तरीके से पेश किया, 'अगर हम बंटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे' – और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भाषण में भी ऐसा ही भाव महसूस हुआ था.

अब तो संघ की तरफ से ये स्लोगन ऐसे एक्सप्लेन किया जा रहा है, जैसे यही आखिरी रास्ता बचा हो. इस नारे के पीछे राजनीतिक मकसद को चाहे जैसे भी समझा जाये, लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि ये लोगों की जबान पर भी चढ़ रहा है, और बीजेपी विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं की तरफ से विरोध भी जताया जाने लगा है.

धार्मिक एकता, या जातीय एकता पर जोर

देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ ने कोई नई बात नहीं कही है. एकता की अहमियत तो बरसों से समझाई जाती रही है. योगी आदित्यनाथ ने उसी बात को अपने अंदाज में पेश किया है, और मौका ऐसा है कि ये नया राजनीतिक नारा हो गया है.

खास बात ये है कि इस नारे का जय श्रीराम की तरह विरोध भी नहीं किया जा सकता, जैसा ममता बनर्जी करती रही हैं. ये ऐसा भी नारा नहीं है जिसकी वजह से योगी सीधे सीधे निशाने पर आ जायें, जैसे – '… गर्मी शांत कर देंगे.'

तभी ये स्लोगन लोगों की जबान पर भी चढ़ रहा है, और आगरा में तो पोस्टर भी लग चुके हैं. आगरा में  लगे पोस्टर पर योगी आदित्यनाथ की तस्वीर भी है, और ये स्लोगन भी लिखा है – और ये पोस्टर इलाके के लोगों को हैपी दिवाली बोलने के लिए लगाया गया है.

फर्ज कीजिये, ऐसे में जबकि लोग अपने वॉटर बॉटल पर 'बंटेंगे तो कटेंगे' लिखवाने लगे हों, तो मानकर चलना चाहिये कि सड़कों पर चल रही गाड़ियों के ग्लास पर भी ये स्लोगन पढ़ने को मिल सकता है.

अब सवाल है कि योगी आदित्यनाथ के इस नारे में धार्मिक एकता का संदेश है, या जातीय एकता का? परिभाषित इसे अलग अलग तरीके से जरूर किया जा रहा है, लेकिन ये तो हर मामले में फिट बैठता है.

योगी आदित्यनाथ के स्लोगन का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले कहते हैं, हिंदू समाज एकता में नहीं रहेगा तो आजकल की भाषा में 'बंटेंगे तो कटेंगे' हो सकता है.

हिंदू समाज के जातियों में बंटने की सबसे ज्यादा फिक्र संघ को ही रही है, और उसी बात को लेकर दत्तात्रेय होसबले समझाते हैं, समाज में अगड़ा-पिछड़ा, जाति-भाषा में भेद करेंगे तो हम कटेंगे… इसलिए एकता जरूरी है… हिंदू समाज की एकता लोक कल्याण के लिए है… हिंदुओं को तोड़ने के लिए शक्तियां काम कर रही हैं… आगाह करना जरूरी है.

उत्तर प्रदेश में हाल ही में पुलिस एनकाउंटर को लेकर भी जातीय राजनीति का बोलबाला देखने को मिला है. सुल्तानपुर डकैती के आरोपियों के एनकाउंटर से लेकर पुलिस हिरासत में होनेवाली मौतों को लेकर भी – और ऐसे में संघ और बीजेपी की तरफ से योगी आदित्यनाथ के स्लोगन को चुनावों में भुनाने की कोशिश चल रही है.

एक्शन, स्लोगन और ब्रांड योगी

1. एकता की जो बातें बहुत पहले से होती रही हैं. नैतिक शिक्षा में ऐसी तमाम नसीहतें दी जाती रही हैं. तमाम ऐसे किस्से पढ़ने को मिलते हैं – योगी आदित्यनाथ ने उसी बात को ठेठ देसी अंदाज में बोल कर वर्ड-ऑफ-माउथ बना दिया है.

और योगी की ये बात वैसे ही ली जा रही है, जैसे आमिर खान के मुंह से सुनने को मिला था, 'ठंडा मतलब कोका कोला.' जैसे, यूपी और बिहार में सड़कों पर रफ्तार भरते ट्रकों के पीछे लिखा होता है, 'सटला त गइला बेटा.' थोड़ा ध्यान देकर देखिये, सभी में ध्वनि एक जैसी ही है.

2. वैसे भी योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व की राजनीति में एक ब्रांड तो हैं ही. ब्रांड मोदी के बाद अगर उस मिजाज का कोई और ब्रांड है तो ब्रांड योगी ही है – और 'बंटेंगे तो कटेंगे' में भी बुलडोजर की ही छवि उभर कर आ रही है.

3. जैसे योगी के बुलडोजर को बीजेपी सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने हाथों हाथ लिया था, बंटेंगे तो कटेंगे को भी करीब करीब वैसे ही लिया जा रहा है – और खास बात ये है कि ये भाव मोदी से लेकर भागवत तक के भाषणों में भी प्रकट होने लगा है.

 

यूजफुल टूल्स
QR Code Generator

QR Code Generator

Age Calculator

Age Calculator

Word & Character Counter

Characters: 0

Words: 0

Paragraphs: 0