Politics of simplicity or new mathematics of politics? — A milestone in the name of Hemant Khandelwal
भोपाल ! BJP President Hemant Khandelwal मध्य प्रदेश की राजनीति में कभी-कभी ऐसे चेहरे सामने आते हैं, जिनकी चमक न तो पोस्टरों से आती है और न ही बड़ी-बड़ी रैलियों की भीड़ से। हेमंत खंडेलवाल ऐसा ही एक नाम हैं—जो बिना ढोल-नगाड़े, बिना सत्ता का शोर मचाए आज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुँच गए। सवाल यह है कि क्या यह सफर केवल सादगी और संघर्ष का है, या फिर संगठन की राजनीतिक गणित का भी खेल?
हेमंत खंडेलवाल सिर्फ भाजपा के अध्यक्ष नहीं, बल्कि संघर्ष, सादगी और संगठन के उस दर्शन का चेहरा हैं जो राजनीति को जनसेवा का सच्चा माध्यम बनाता है।
BJP President Hemant Khandelwal 3 सितंबर 1964 को मथुरा में जन्मे हेमंत खंडेलवाल ने बैतूल में पढ़ाई की और धीरे-धीरे राजनीति में कदम रखा। पिता विजय कुमार खंडेलवाल चार बार सांसद रहे, इसलिए राजनीतिक माहौल घर में मौजूद था। लेकिन यहाँ भी दिलचस्प मोड़ यह है कि हेमंत ने विरासत की मलाई खाने के बजाय खुद को संघर्ष के रास्ते में झोंक दिया। वरना आजकल तो नेता जी का बेटा सीधे ‘उत्तराधिकारी’ घोषित हो जाता है। 2008 में पिता के निधन के बाद बैतूल उपचुनाव से सांसद बने। यही वह पल था जब उन्हें राष्ट्रीय राजनीति की रोशनी मिली। लेकिन उनके साथ विडंबना यह रही कि वे लंबे समय तक सत्ता की गाड़ी के इंजन से दूर रहे—कभी विधायक, कभी जिला अध्यक्ष, कभी कोषाध्यक्ष, और कभी प्रवासी प्रभारी। कहते हैं, उन्होंने राजनीति को ‘करियर’ नहीं, बल्कि ‘धैर्य की परीक्षा’ मान लिया था।
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BJP President Hemant Khandelwal की सबसे बड़ी पूंजी उनकी सादगी है। सुना है, कार्यकर्ताओं को शर्ट तक दे दी और कभी स्कूटर तक। अब सोचिए, जिस दौर में नेता जी चुनाव में नोटों की बारिश कर रहे हों, उसमें कोई नेता अपनी शर्ट उतारकर कार्यकर्ता को दे दे—ये दृश्य राजनीति की किताब में दुर्लभ ही है। लेकिन राजनीति केवल सादगी से नहीं चलती। 2020 की सत्ता पलट की पटकथा में उनकी भूमिका किसी पर्दे के पीछे के निर्देशक जैसी रही। कमलनाथ सरकार जब गिर रही थी, तब खंडेलवाल ने सिंधिया खेमे और भाजपा के बीच पुल का काम किया। और कहते हैं, यही पुल उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक ले आया। राजनीति में ऐसे मौके हर किसी को नहीं मिलते—यह किस्मत और कौशल का संगम है।
अब वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं। सवाल यह है कि क्या वे भाजपा को बूथ स्तर तक और मजबूत बना पाएंगे, या फिर संगठनात्मक जोड़-तोड़ में ही उलझ जाएंगे? याद रखिए, प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी केवल शोभा की वस्तु नहीं है; यह वह कुर्सी है जिस पर बैठकर पार्टी का भविष्य तय होता है। एक और दिलचस्प पहलू यह है कि 31 साल बाद वैश्य समाज से किसी नेता को यह जिम्मेदारी मिली है। तो क्या यह केवल जातीय संतुलन साधने की कोशिश है, या फिर सचमुच संगठन के ‘सच्चे सेवक’ को उसकी मेहनत का इनाम? जनता तो यही देख रही है कि सियासी समीकरणों में जनता का हिस्सा कितना है।
BJP President Hemant Khandelwal के पास अब मौका है कि वे यह साबित करें कि राजनीति सिर्फ ‘सत्ता का गणित’ नहीं, बल्कि सेवा और संघर्ष का भी नाम है। क्योंकि अगर वे भी बाकी नेताओं की तरह महंगे काफिलों और बेतहाशा पोस्टरों में उलझ गए, तो जनता उन्हें भी उसी भीड़ में गुम कर देगी, जहाँ नेता बदलते रहते हैं, लेकिन जनता की उम्मीदें वही की वही रहती हैं।
हेमंत खंडेलवाल का नया अध्याय केवल भाजपा के संगठन का नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश की राजनीति का भी इम्तिहान है। देखना दिलचस्प होगा कि वे अपनी सादगी और संघर्ष को कायम रखते हैं या फिर सत्ता के गलियारों की चकाचौंध उन्हें भी उसी रंग में रंग देती है, जिसमें बाकी नेता डूब चुके हैं।

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