Dictatorship of Tehsildar Anjali Gupta in Kannaud: Brutality with farmers and women, questions raised on the government
कन्नौद से आई यह खबर न सिर्फ दिल को झकझोरती है, बल्कि यह प्रशासनिक संवेदनशीलता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है। मामूली तहसीलदार अंजलि गुप्ता द्वारा किसानों और महिलाओं के साथ की गई बदसलूकी, धक्का-मुक्की और थाने तक भिजवाने जैसी घटनाएं कहीं से भी एक लोकसेवक के आचरण को उचित नहीं ठहरातीं। यह मामला न केवल कन्नौद की स्थानीय राजनीति का विषय है, बल्कि यह पूरे प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह है।
किसान: व्यवस्था के शिकार
रेलवे जमीन अधिग्रहण के नाम पर किसानों को जिस तरह से डराया और धमकाया जा रहा है, वह लोकतंत्र में अक्षम्य है। किसान, जो इस देश की रीढ़ माने जाते हैं, अगर उन्हीं को सरकारी व्यवस्था अपमानित करने लगे तो यह लोकतंत्र की बुनियाद को हिला देने वाला कदम है। अंजलि गुप्ता की कार्यशैली यह बताने के लिए काफी है कि प्रशासन में बैठे कुछ अफसर आज भी खुद को राजा समझते हैं और जनता को रियाया।
महिला विरोधी रवैया, कानून की अवहेलना
तहसीलदार द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और हाथापाई की खबरें बेहद चिंताजनक हैं। ऐसे समय में जब सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, महिला सशक्तिकरण जैसे अभियानों को आगे बढ़ा रही है, तब एक महिला अफसर द्वारा महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार पूरे अभियान की भावना को झुठलाता है। पुलिस वैन में महिलाओं को भरकर थाने भेजना, उनके सम्मान को ठेस पहुंचाना — यह सब सत्ता की अमानवीयता को दर्शाता है।
यह कोई पहली बार नहीं
सोनकच्छ में भी पहले अंजलि गुप्ता पर किसानों से अभद्रता का आरोप लग चुका है, और वहां भी जनदबाव में सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था। पर क्या एक बार चेतावनी देकर अफसरों को छोड़ देना ही समाधान है? क्या यह न्याय है कि जनता बार-बार अपमानित हो और अफसर बच निकलें?
मुख्यमंत्री से अपील: तुरंत सख्त कदम उठाएं
प्रदेश के मुखिया के तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अपेक्षा की जाती है कि वे इस घटनाक्रम पर त्वरित संज्ञान लें और अंजलि गुप्ता को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर निष्पक्ष जांच के आदेश दें। यदि इस प्रकार की तानाशाही और दमनकारी प्रवृत्ति पर लगाम नहीं लगाई गई, तो यह जनता का प्रशासन से विश्वास उठने जैसा होगा।
जनता का आक्रोश, सरकार के लिए खतरा
जनता के मन में गुस्सा और आक्रोश दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। किसान आंदोलन की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं, और यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह मामला सरकार की छवि पर गहरे दाग छोड़ सकता है। यह लोकतंत्र है, न कि तानाशाही का अड्डा।
कन्नौद की घटना सिर्फ एक तहसीलदार की गलती नहीं है, यह एक व्यवस्था के असंवेदनशील होने का प्रमाण है। अब वक्त है कि सरकार केवल घोषणाएं न करे, बल्कि जमीन पर उतरकर ऐसे अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई करके एक मिसाल पेश करे। प्रशासन अगर जनता की सेवा नहीं कर सकता, तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं।

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