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डिजिटल चुनौतियों से समूचे भारत में लाखों पेंशनभोगी प्रभावित

नई दिल्ली
 पेंशन परिषद और मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) ने कहा कि डिजिटल चुनौतियों से समूचे भारत में लाखों पेंशनभोगी प्रभावित हो रहे हैं।

एमकेएसएस ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘राजस्थान के पेंशनभोगियों को 500-750 रुपये मासिक पेंशन मिल रही थी, लेकिन पिछले दो वर्ष से उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है। यह ऐसे में और चिंताजनक है जब पेंशन की राशि बढ़ाकर 1,000 रुपये कर दी गई है।’’

बयान में कहा गया है कि, पेंशन परिषद ने प्रभावित पेंशनभोगियों की टिप्पणियां साझा कीं जिनमें बुजुर्ग, दिव्यांग और विधवाएं शामिल हैं। इन्हें विभिन्न प्रशासनिक और डिजिटल बाधाओं के कारण पेंशन नहीं मिल पा रही हैं।

इसमें कहा गया, ‘‘उल्लेखित मुद्दों में मृत्यु संबंधी गलत घोषणा, बेमेल डेटा, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण विफलताएं और आधार आईडी हासिल करने में चुनौतियां शामिल हैं।’’

पेंशन परिषद एवं एमकेएसएस के निखिल डे ने पेंशनभोगियों के सामने उनकी आयु, विकलांगता या अन्य संवेदनशीलताओं के कारण उनकी बढ़ती हुई उपेक्षा को रेखांकित किया और सरकार के दृष्टिकोण को असंवेदनशील तथा उपेक्षापूर्ण करार दिया।

डे ने बयान में कहा, ‘‘सरकार ने दावा किया है कि आधार अनिवार्य नहीं होगा, लेकिन उसने इसे प्रभावी रूप से अनिवार्य बना दिया है। इससे प्रणालीगत विफलताएं उत्पन्न हो रही हैं जिससे वे लोग अलग-थलग पड़ रहे हैं, जिन्हें सहायता की सबसे अधिक आवश्यकता है।’’

कानूनी विद्वान ऊषा रामनाथन ने बताया कि आधार की बायोमेट्रिक निर्भरता से संबंधित समस्याएं 2010 में यूआईडीएआई आने के बाद से ही स्पष्ट हैं।

एमकेएसएस के शंकर सिंह ने कहा, ‘‘राजस्थान में सरकार ने जीवितों को मृत घोषित कर दिया है।’’ उन्होंने आधार सत्यापन पर राज्य की निर्भरता की आलोचना की तथा इसकी तुलना ऑक्सीजन से की (जो आवश्यक है, लेकिन इसमें हेरफेर की गई है)। उन्होंने मांग की कि पेंशन को उसी उत्साह के साथ वितरित किया जाना चाहिए जिससे राजनीतिक अभियान चलाए जाते जाते हैं।

 

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