Challan: Camera challan system under the guise of traffic rules, a government scheme to fleece public!
संपादकीय टीम
government scheme to fleece public देशभर में ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के नाम पर आज जिस तरह चालान प्रणाली को डिजिटल और कैमरा आधारित किया गया है, वह सुधार से ज्यादा व्यापार नजर आता है। सरकारें दावा करती हैं कि उनका उद्देश्य सड़क सुरक्षा और नियमों का पालन सुनिश्चित करना है। लेकिन असल तस्वीर कुछ और ही है।
चालान या शोषण? ट्रैफिक नियमों की आड़ में जनता की जेब पर हमला
हर चौराहे पर कैमरे, हर राज्य में करोड़ों का चालान government scheme to fleece public
आजकल हर राज्य और हर जिले में CCTV कैमरे लगाए जा रहे हैं। इन कैमरों के ज़रिए लाखों गाड़ियों के चालान रोज़ काटे जाते हैं – वो भी बिना किसी चेतावनी, सुधार या विकल्प के। ना सड़कों की हालत सुधरी, ना ट्रैफिक लाइट्स की स्थिति। कहीं लाइट काम नहीं करती, तो कहीं संकेत पूरी तरह अदृश्य होते हैं। बावजूद इसके, चालान तय है – जुर्माना तय है!
नियम टूटते हैं, लेकिन वजह कौन समझे?
कई बार ट्रैफिक सिग्नल काम नहीं करते। सड़कें गड्ढों में बसी होती हैं। दिशा सूचक बोर्ड गायब होते हैं। ऐसी स्थिति में नियमों का पालन असंभव हो जाता है, लेकिन जुर्माना फिर भी भुगतना पड़ता है – क्योंकि कैमरा देखता है, व्यवस्था नहीं।
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क्या चालान अब राजस्व का नया स्रोत बन गया है?
सवाल यह है – क्या चालान वाकई सुधार का जरिया है, या सिर्फ़ जनता की जेब से कमाई का साधन बन गया है? सरकारें तो जानती हैं कि लोग सुधरेंगे नहीं, इसीलिए तकनीक का इस्तेमाल जनता की नज़रों से नहीं, उसकी जेब से जोड़ने के लिए किया जा रहा है।
जनता अभी भी चुप है – लेकिन कब तक? government scheme to fleece public
हैरानी की बात है कि जनता अभी तक इस खेल को समझ नहीं पा रही है। या शायद समझकर भी चुप है। लेकिन यदि जनता एक दिन जाग गई, तो सवाल करेगी कि ट्रैफिक नियमों की आड़ में वसूली कब तक चलेगी?
चालान एक जरिया होना चाहिए था व्यवस्था सुधार का। लेकिन आज यह सरकारी खजाना भरने का आसान और एकतरफा तरीका बन गया है। सुधार सड़क पर नहीं दिखते, लेकिन जुर्माने की पर्ची हर घर पहुंचती है। सवाल यही है – क्या ये चालान व्यवस्था के लिए हैं, या व्यवस्था की विफलता को ढकने का तरीका?

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