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वन्य जीवों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम के लिये उच्च न्यायालय ने किये निर्देश जारी

बाघ जैसे वन्यप्राणियों के विरूद्ध अपराध प्रकृति और वन के लिये खतरा

भोपाल

प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव वी. एन. अंबाडे ने उच्च न्यायालय द्वारा वन्य-जीवों से संबंधित अपराध में लिये गये निर्णयों के परिपालन में प्रदेश के वन परिक्षेत्र के सभी अधिकारियों को एडवायजरी जारी की है। एडवायजरी में उच्च न्यायालय के निर्णय “सुनील खंडाते एवं अन्य विरुद्ध मध्यप्रदेश’’ और “उत्कर्ष अग्रवाल विरुद्ध मध्यप्रदेश’’ में सुनवाई के दौरान निर्णय को भविष्य में समान प्रकृति के वन अपराधों में शासन हित में जमानत याचिकाओं के निरस्तीकरण के लिये उपयोग किया जा सकता है।

स्टेट टाईगर स्ट्राईक फोर्स (STSF) ने वन्यजीव से संबंधित संगठित अपराध गिरोह पर कार्रवाई की थी, जिसके बाद गिरफ्तार आरोपियों ने उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत याचिकाएँ दायर की थी। माननीय न्यायालय ने "बाघ जैसे वन्य प्राणियों के शिकार की घटना को सामान्य अपराधों के समान नहीं माना जा सकता, क्योकि ऐसा अपराध प्रकृति और वन के लिये खतरा है।" कहते हुएजमानत याचिकाओं को खारिज किया।

माननीय उच्च न्यायालय ने कहा कि वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत जमानत देने मानदण्ड भारतीय न्याय संहिता के तहत अन्य अपराधों की तुलना में अधिक कठोर है। यह नारकोटिक्स, ड्रग्स एवं साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 के प्रावधानों के सामान्तर है, जो जमानत के लिये सख्त शर्ते भी लगाता है। माननीय न्यायालय ने कहा कि वन्यजीव प्राणियों के अवैध व्यापार से सबंधित अपराधों की गंभीर प्रकृति के कारण ऐसे मामले जमानत के लिये आवश्यक आधारों को पूरा नहीं करते। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि आरोपियों के खिलाफ आरोपों की गंभीरता देखते हुए मामले की आगे की जांच के लिये हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने समस्त क्षेत्र संचालक टाइगर रिजर्व, मुख्य वन संरक्षक (क्षेत्रीय), संचालक राष्ट्रीय उद्यान, वनमण्डलाधिकारी (क्षेत्रीय/वन्यप्राणी), संभागीय प्रबंधक वन विकास निगम एवं प्रभारी अधिकारी स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स क्षेत्रीय इकाई को निर्देश जारी किये हैं।

 

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