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‘हनुमान’ शब्द में दो शब्दों का मेल है। एक है ‘हनु’ और दूसरा है ‘मान’ अर्थात ऐसा व्यक्तित्व जिसके मान (अभिमान-अहंकार) के भाव का पूर्णत: हनन हो चुका है। जिसे मान-सम्मान की कोई इच्छा नहीं हो, वही हनुमान है। साधक, भक्त को अहं ही ऊंचा नहीं उठने देता है। अभिमान ही सबसे प्रबल शत्रु है व्यक्ति का। श्री हनुमान जी का जीवन स्वयं में एक आदर्श जीवन है। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि श्री हनुमान जी के समान दूसरा बड़भागी नहीं है और न कोई दूसरा इनसे बढ़कर श्री राम चरण का अनुरागी ही है। सुंदर कांड वास्तव में हनुमान जी का कांड है। हनुमान जी का एक नाम सुंदर भी है। सुंदर कांड के लिए कहा गया है-

सुंदरे सुंदरो राम: सुंदरे सुंदरीकथा। सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किम् न सुंदरम्।।

सुंदरकांड में मुख्य मूर्ति श्री हनुमान जी की ही रखी जानी चाहिए। इतना अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि हनुमान जी सेवक रूप में भक्ति के प्रतीक हैं, अत: उनकी अर्चना करने से पहले भगवान राम का स्मरण और पूजन करने से शीघ्र फल मिलता है। कोई व्यक्ति खो गया हो अथवा पति-पत्नी, साझेदारों के संबंध बिगड़ गए हों और उनको सुधारने की आवश्यकता अनुभव हो रही हो तो सुंदर कांड शीघ्र फल देने वाला होता है।

भगवान राम का चरित्र बल भी और शब्द बल भी चरित्र को शक्ति सम्पन्न बनाता है। राम के कर्म ने और वाल्मीकि ने उसको शब्द शक्ति दी। भगवान राम के पावन चरित्र का श्रवण-मनन करने से व्यक्ति को आत्मज्ञान होता है पर सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी पाठ में किन्हीं पद्यों का सम्पुट लगाया जाता है।

सम्पुट का अर्थ होता है एक बार सम्पुट के रूप में प्रयोग किया जाने वाला पद्य, फिर पाठ का पद्य फिर वह सम्पुट का पद्य। वाल्मीकि कृत रामायण में सात कांड हैं। संतान प्राप्ति के लिए बालकांड, धन प्राप्ति के लिए अयोध्या कांड, अनुसंधान में सफलता के प्राप्त करने के लिए अरण्य, राज्यादि की प्राप्ति के लिए किष्किंधा, सम्पूर्ण कार्य सिद्ध के लिए सुंदर और धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए उत्तरकांड का प्रयोग किया जाता है।

 

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