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जबलपुर

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महिला को 14 साल बाद आजादी दी है। हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में जेल में बंद महिला को बरी कर दिया और उसे झूठे मामले में फंसाने के लिए पांच गवाहों और तीन जांच अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि अगर अभियोजन पक्ष के गवाहों और जांच अधिकारियों को बिना ऐक्शन लिए छोड़ दिया जाता है, तो इससे बेईमान लोगों को निर्दोष लोगों को झूठे केस में फंसाने का बढ़ावा मिलेगा। जस्टिस जीएस अहलूवालिया और विशाल मिश्रा की पीठ ने निचली अदालत की भी खिंचाई की और कहा कि यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि निचली अदालत के जज ने मामले को बहुत ही लापरवाही से लिया और कानून की नजर से सबूतों का मूल्यांकन नहीं किया।
क्या है मामला

दरअसल, खंडवा जिले के पिपलोदा गांव की रहने वाली सुरजाबाई और उसकी बहन भूरीबाई (जो उस समय 20 वर्ष की थीं) को सितंबर 2008 में अपने बहनोई हरि उर्फ ​​भग्गू की जहर देकर और गला घोंटकर हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।अदालत ने मामले में खामियां पाईं जिसमें बताया गया था कि सुरजाबाई और भूरीबाई ने हरि की हत्या की और उसे नीम के पेड़ पर लटका कर इसे आत्महत्या का मामला दिखाने की कोशिश की।

सुरजाबाई ने बताया कि उसकी सास ने उसे आत्महत्या के बारे में बताया था। वह उसे (मृतक को) बैलगाड़ी से अस्पताल ले गई और बाद में पुलिस को सूचना दी। दिसंबर 2010 में खंडवा की एक ट्रायल कोर्ट ने दोनों महिलाओं को दोषी ठहराया था। भूरीबाई को जमानत मिल गई, लेकिन सुरजाबाई तब से जेल में है। उसने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपील की। अदालत को जांच में कई खामियां मिलीं।

अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि अपीलकर्ता सुरजाबाई से दुश्मनी के कारण अभियोजन पक्ष के गवाहों ने उसे झूठे केस में फंसाया है। अदालत ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ, इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित फैसले के आधार पर अदालत ने स्वयं ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड का अध्ययन किया और राज्य के वकील की बातें सुनीं।

16 अक्टूबर को कोर्ट ने आदेश में कहा, 'सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि भूरीबाई, जो सुरजाबाई की बहन है और गर्भवती थी, को भी बिना किसी आधार के इस मामले में फंसाया गया। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि मृतक को सुरजाबाई के घर में कोई जहरीला पदार्थ दिया गया था। इसके अलावा अभियोजन पक्ष यह साबित करने में भी विफल रहा है कि मृतक को अस्पताल ले जाने वाली सूरजबाई या भूरीबाई ही थी।'

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