हमीरपुर
तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू में मिलावट को लेकर विवाद के बाद अब कई मंदिरों के प्रसाद पर भक्तों की नजर टिकी हुई है। देश के प्रसिद्ध मंदिरों की संस्थाएं और ट्रस्ट इस मामले में अब सावधानी बरत रही हैं। इस सबके बीच हिमाचल के हमीरपुर के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ दियोटसिद्ध में स्थित बाबा बालक नाथ मंदिर के प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर अब सवाल उठ रहा है।
दरअसल हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ दियोटसिद्ध में स्थित बाबा बालक नाथ मंदिर में चढ़ाए जाने वाले रोट (प्रसाद) की गुणवत्ता पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि कंडाघाट लैब ने इसको लेकर अपनी रिपोर्ट जारी की है। लैब द्वारा जांचे गए रोट(प्रसाद) के सैंपल के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। जांच रिपोर्ट में रोट की गुणवत्ता स्वास्थ्य मानकों पर खरी नहीं उतरी है और इसे खाने के लिए सुरक्षित नहीं माना गया है।
इससे पहले, सितंबर में तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद (लड्डू) में हुई गड़बड़ी को लेकर उठे विवादों के बाद, लोगों ने अन्य मंदिरों में दिए जाने वाले प्रसाद की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए थे। इसके मद्देनजर, अक्टूबर में फूड एंड सेफ्टी विभाग की टीम ने मंदिर की कैंटीन और अन्य दुकानों में निरीक्षण कर रोट के सैंपल इकट्ठे किए थे। जांच रिपोर्ट में रोट के सैंपल फेल पाए गए हैं, जिससे मंदिर प्रशासन के लिए चुनौती पैदा हो गई है।
खाद्य सुरक्षा विभाग के सहायक आयुक्त अनिल शर्मा ने कहा कि पिछले दिनों तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद (लड्डू) में मिलावट का मामला सामने आया था। उसी की तर्ज पर हमने कुछ मंदिरों से जांच के लिए सैंपल इकट्ठे कराए थे। दियोटसिद्ध में स्थित मंदिर से हमने रोट (प्रसाद) की गुणवत्ता के लिए सैंपल भरवाए थे। रोट (प्रसाद) की रिपोर्ट चौंकाने वाली आई है और यह स्वास्थ्य मानकों पर फेल हुई है। उसमें बासीपन रेंसिडिटी का मामला सामने आया है। इसमें आगे की कार्रवाई करेंगे। मंदिर में अन्य लोग जो रोट बनाते हैं, हम उनसे गुजारिश करेंगे वो इस पर ध्यान दें। विभाग इस पर कार्रवाई करेगा।
बता दें कि सितंबर में आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में जो प्रसाद भक्तों को लड्डू के रूप में दिया जाता है, उसमें जानवरों की चर्बी और मछली तेल से बनाई जाने वाली घी का उपयोग करने की बात सामने आई थी। मिलावटी घी से बने प्रसाद के खुलासे ने पूरे देश के करोड़ों भक्तों की आस्था पर गहरी चोट पहुंचाई थी। इस बात के सामने आने के बाद से देशभर के साधु-संतों ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की मांग शुरू की थी।

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