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जबलपुर

 मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान (पूर्व में संस्कृत बोर्ड) के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसमें यह शर्त जोड़ी गई थी कि केवल उन्हीं छात्रों को कक्षा 10वीं और 12वीं में प्रवेश मिलेगा जिन्होंने कक्षा 9वीं अथवा 11वीं संस्कृत बोर्ड से सम्बद्ध विद्यालयों से उत्तीर्ण की हो। आदेश के विरुद्ध आधा दर्जन स्कूलों द्वारा याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि इस संशोधित प्रवेश नीति के कारण मध्य प्रदेश बोर्ड या सीबीएसई से अध्ययनरत छात्रों के परीक्षा फार्म अस्वीकार किए जा रहे हैं, जिससे वे कक्षा 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं से वंचित हो रहे हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अमृत रूपराह ने दलील दी कि यह निर्णय न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है, बल्कि समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है। याचिका में यह भी कहा गया कि मप्र बोर्ड, सीबीएसई और संस्कृत बोर्ड सभी सरकारी संस्थाएं हैं, इसलिए उनके बीच इस प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक और मनमाना है।

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने छात्रों को राहत देते हुए संस्कृत बोर्ड के संशोधित आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी और बोर्ड को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता छात्रों के परीक्षा फॉर्म स्वीकार किए जाएं और उन्हें आगामी परीक्षाओं में सम्मिलित किया जाए।

कोर्ट ने अनावेदकों को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने को कहा है। याचिका की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की गई है। यह आदेश उन सैकड़ों छात्रों के लिए राहत लेकर आया है, जो नियमों में अचानक किए गए बदलाव से परीक्षा देने से वंचित हो रहे थे।

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