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खजुराहो
आदिवर्त जनजातीय संग्रहालय द्वारा प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को चित्र प्रदर्शनी और चित्रों की बिक्री के लिये सार्थक मंच उपलब्ध कराने की दृष्टि से प्रतिमाह 'लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा' में किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह विक्रय का संयोजन शलाका नाम से किया जाता है। इसी क्रम में 03 फरवरी, 2025 से गोंड समुदाय की युवा चित्रकार सुश्री सुशीला श्याम के चित्रों की प्रदर्शनी सह-विक्रय का संयोजन किया गया है। 23वीं शलाका चित्र प्रदर्शनी 28 फरवरी, 2025 (मंगलवार से रविवार) तक निरंतर रहेगी।
    32 वर्षीय गोण्ड जनजाति की युवा चित्रकार सुशीला श्याम का जन्म मध्यप्रदेश के जनजातीय बहुल डिण्डौरी जिले के ग्राम सोनपुरी (पाटनगढ़) में हुआ। आपके पिता श्री तुलाराम कृषि कार्य करते हैं। आपकी माता पार्वती श्याम भी गोण्ड चित्रकार थीं, जिनका कुछ वर्षों पूर्व देहावसान हो चुका है। चित्रकारी के प्रारंभिक संस्कार आपको अपनी माता से ही मिले हैं। पाँच भाई-बहनों में आप सबसे बड़ी हैं। आपका बचपन जंगल-पहाड़ों से घिरे वातावरण और प्रकृति के सान्निध्य में गुजरा और गाँव के निकट कस्बे से ही ग्यारहवीं तक की शिक्षा हासिल की है। वर्ष 2010 से आपने वरिष्ठ गोण्ड चित्रकार स्व. नर्मदाप्रसाद तेकाम के मार्गदर्शन और सान्निध्य में रहकर परम्परागत गोण्ड चित्रकला की बारीकी को सीखा-समझा और उनके चित्रकर्म में सहायक की तरह कार्य भी किया। वे रिश्ते में आपके मौसा भी लगते थे। आपका विवाह युवा गोंड चित्रकार शैलेन्द्र तेकाम से वर्ष 2016 में हुआ। आप दोनों ही वर्तमान में स्वतंत्र रूप से चित्रकला का कार्य करते हैं और समय-समय पर एक-दूसरे के चित्रकला कार्य में सहायता भी करते हैं।
    आपने दिल्ली, पूणे, विशाखापट्टनम सहित कुछ जगहों पर एकल एवं संयुक्त चित्रकला प्रदर्शनियों में भाग लिया है। आपने मानव संग्रहालय, जनजातीय संग्रहालय, ललित कला अकादमी आदि संस्थाओं द्वारा आयोजित वर्कशाप में भी सक्रिय भागीदारी की है। आप अपनी सफलता का श्रेय अपने कला-गुरु स्व. नर्मदाप्रसाद तेकाम को देती हैं, जिनकी सतत् प्रेरणा ने ही आपकी चित्रकला को सुघड़ बनाया। आपके चित्रों में प्रकृति, परिवेश के साथ ही देहातों का स्त्री जीवन प्रमुखता से प्रकट होता है।

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