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Saffronization of universities: Ignoring the rules, the government made people from BJP and Sangh as vice chancellors.

  • सागर जिले के नए शासकीय रानी अवंतीबाई लोधी विश्वविद्यालय में भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष विनोद मिश्रा को कुलपति नियुक्त किया
  • एनएसयूआई ने लगाया आरोप, सरकार ने उपकृत करने अपनों को पद पर बैठाया

भोपाल। भारतीय राष्ट्रीय संगठन छात्र (एनएसयूआई) के प्रदेश अध्यक्ष आशुतोष चौकसे ने मध्यप्रदेश के शासकीय विश्वविद्यालयों में कुलगुरुओं की नियुक्तियों में गंभीर अनियमितता और धांधली करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि नियमों का उल्लंघन कर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को उपकृत करने के लिए तमाम सरकारी और गैर सरकारी विश्वविद्यालयों में कुलपित के तौर पर नियुक्त किया जा रहा है। सरकार के शिक्षा का भगवाकरण करने का सीधा असर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ा है।

शिक्षा व्यवस्था में राजनीतिकरण से योग्यता बोनी

भोपाल में संवाददाताओं से चर्चा करते हुए चौकसे ने कहा कि हाल में मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग ने राज्य के 53 निजी विश्वविद्यालयों में से 32 विश्वविद्यालयों के कुलगुरुओं की नियुक्तियों को अवैध ठहराते हुए निरस्त कर दिया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानकों के विपरीत इन नियुक्तियों के कारण यह निर्णय लिया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उच्च शिक्षा में मानकों और योग्यताओं की अवहेलना की जा रही है। मध्यप्रदेश के नए शासकीय विश्वविद्यालय रानी अवंतीबाई लोधी विश्वविद्यालय सागर के पद पर भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष विनोद मिश्रा को नियुक्त किया गया है। शिक्षा व्यवस्था का राजनीतिकरण करने और इस तरह की नियुक्तियों के कारण राष्ट्रीय संस्थागत रैकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में मध्यप्रदेश का केवल एक शासकीय विश्वविद्यालय स्थान पा सका है। बाकी सभी शासकीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग अत्यंत निम्न स्तर की है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा होता है। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति प्रो. राजेश कुमार वर्मा की नियुक्ति में गंभीर अनियमितताएं पाई गई हैं।

कुलपति बनने पीएचडी होने के 10 साल का अनुभव जरुरी

प्रो. राजेश कुमार वर्मा ने पीएचडी की उपाधि 25 नवंबर 2008 को प्राप्त की थी, जबकि 19 जनवरी 2009 को मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने प्राध्यापक पद के लिए विज्ञापन जारी किया। इस पद के लिए न्यूनतम योग्यता में पीएचडी उपाधि के बाद 10 सालों का अध्यापन अनुभव अनिवार्य था, जो वर्मा के पास नहीं था। उनकी नियुक्ति भी सीधे प्राध्यापक के पद पर की गई है। चौकसे ने कहा कि मध्यप्रदेश के समस्त शासकीय विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों की जांच की जाए। नियमों के उल्लंघन में दोषी पाए जाने पर प्रो. वर्मा सहित अन्य को पद से हटाया जाए और शिक्षा में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।

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