शहरों की सिमटती हरियाली और बढ़ता जलवायु संकट: 2040 तक दुनियाभर में 200 करोड़ लोग बढ़ती गर्मी से जूझेंगे

शहरों की सिमटती हरियाली और बढ़ता जलवायु संकट: 2040 तक दुनियाभर में 200 करोड़ लोग बढ़ती गर्मी से जूझेंगे

Shrinking greenery of cities and increasing climate crisis: By 2040, 2 billion people around the world will face increasing heat

शहरों की हरियाली तेजी से सिमट रही है, और उनकी जगह कंक्रीट के जंगल पनप रहे हैं। इसकी वजह से भी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। दुनिया के शहरों में हरे भरे क्षेत्रों की हिस्सेदारी 1990 में औसतन 19.5 फीसदी थी जो 2020 तक घटकर सिर्फ 13.9 फीसदी रह गई है।

कमलेश ✍️ 

भोपाल। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण शहरों को गंभीर चुनौतियों से जूझना होगा। दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा शहर पैदा कर रहे हैं। बगैर योजनाबद्ध तरीके से तेजी से विकसित होते शहरों और उनका उचित प्रबंधन न किए जाने का खामियाजा हरे-भरे क्षेत्रों को भुगतना पड़ रहा है।

शहरों की हरियाली तेजी से सिमट रही है, और उनकी जगह कंक्रीट के जंगल पनप रहे हैं। इसकी वजह से भी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। दुनिया के शहरों में हरे भरे क्षेत्रों की हिस्सेदारी 1990 में औसतन 19.5 फीसदी थी जो 2020 तक घटकर सिर्फ 13.9 फीसदी रह गई है। अनुमान के मुताबिक 2040 तक शहरों में रह रहे 200 करोड़ से ज्यादा लोगों को तापमान में कम से कम 0.5 डिग्री सेल्सियस की अतिरिक्त वृद्धि का सामना करना पड़ेगा। यह चेतावनी संयुक्त राष्ट्र संगठन यूएन-हैबिटेट ने अपनी नई रिपोर्ट में दी है। वर्ल्ड सिटीज रिपोर्ट 2024 वर्ल्ड अर्बन फोरम के दौरान जारी की गई है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के कई बड़े शहर लाखों लोगों को आवास प्रदान कर रहे हैं, लेकिन उन पर साल दर साल कई तरह के खतरे बढ़ते जा रहे हैं। जैसे जैसे शहर बढ़ते हैं वे जलवायु से जुड़ी आपदाओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते जाते हैं।

समस्याएं बढ़ रहीं, शहर उसके लिए तैयार नहीं

जलवायु परिवर्तन से जो समस्याएं पैदा हुई हैं उसके अनुरूप शहर तैयार नहीं हैं। शहरों में बेघरों की संख्या और झुग्गी बस्तियों की तादाद बढ़ती जा रही है। झुग्गी बस्तियां आमतौर पर ऐसे इलाकों में होती हैं जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील होते हैं। इन क्षेत्रों में आपदाओं से बचाव के लिए बुनियादी ढांचा बेहद लचर है। ऐसे में अक्सर जलवायु सम्बन्धी आपदाओं या चरम घटनाओं का खामियाजा यहां रहें वाले आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए बजट कम

रिपोर्ट में शहरों के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए मौजूदा समय में उपलब्ध राशि और वित्तीय आवश्यकतों के बीच की गहरी खाई को भी उजागर किया गया है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि शहरों को सालाना साढ़े चार से 5.4 लाख करोड़ डॉलर की दरकार है, ताकि जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिए व्यवस्था को दुरुस्त किया जा सके। जबकि शहरों को अभी सिर्फ 83,100 करोड़ डॉलर मिल रहे हैं।

कारगर योजनाओं से सुधर सकती है स्थिति

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा है कि मजबूत निवेश और स्मार्ट योजना से शहरों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करके उन्हें जलवायु  परिवर्तन के अनुरूप ढाला जा सकता है। इसके लिए साहसिक निवेश, कारगर योजनाओं और डिजाइन की दरकार होगी।  इस संबंध में यूएन-हैबिटेट की कार्यकारी निदेशक एनाक्लॉडिया रॉसबाख का कहना है कि अगले कुछ वर्षों में करोड़ों लोगों को न केवल बढ़ते तापमान बल्कि बाढ़, लू, सूखा और जल संकट जैसी कई समस्याओं से जूझना होगा।

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