The equations are getting worse…conditions for a tough contest between BJP and Congress in the capital
- कायस्थ, मुस्लिम, दलित बने कांग्रेस की ताकत
- भाजपा के पक्ष में ब्राह्मणों के साथ अन्य समाज
- मुद्दों के साथ प्रचार में भाजपा ने बना ली बढ़त
भोपाल। भोपाल का गढ़ बन चुकी भोपाल लोकसभा सीट में मुकाबला इस बार रोचक होता दिख रहा है। अब जबकि प्रचार में एक दिन का ही समय शेष है तब भाजपा के आलोक शर्मा और कांग्रेस के अरुण श्रीवास्तव के बीच कड़े मुकाबले के आसार बन गए हैं। वजह है जातीय और दलीय आधार पर मतदाताओं का लामबंद हो जाना। कांग्रेस के अरुण प्रारंभ में मुकाबले से बाहर दिख रहे थे लेकिन कायस्थ और मुस्लिम समाज के एकजुट हो जाने के कारण वे मुकाबले में आ गए।
दलितों का बड़ा वर्ग भी कांग्रेस के अरुण के साथ नजर आ रहा है। दूसरी तरफ भाजपा भोपाल में बड़ी ताकत है ही। वह पिछले दो चुनाव साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीती है। ऐसे में उसकी पराजय के बारे में कोई कल्पना ही नहीं कर रहा था। भाजपा के पक्ष में ब्राह्मण वर्ग के साथ पिछड़े वर्ग की तमाम जातियां एकजुट दख रही हैं। स्पष्ट है कि माहौल भाजपा में पक्ष में भले हो, लेकिन मुकाबला एकतरफा नहीं है।
अरुण का फोकस गांवों में, आलोक हर जगह
चुनाव प्रचार पर नजर डालने से पता चलता है कि कांग्रेस के अरुण का ज्यादा संपर्क ग्रामीण क्षेत्रों में है। यहां उन्हें व्यक्ितगत तौर पर लोग जानते हैं और अच्छा इंसान मानते हैं। हालांकि शहर के कांग्रेस विधायक आतिफ अकील और आरिफ मसूद उनके लिए काम कर रहे हैं। नरेला के विधानसभा प्रत्याशी रहे मनोज शुक्ला ने माेर्चा संभाल रखा है। उनके प्रयास से प्रभावी रोड शो हो चुका है। दूसरी तरफ भाजपा के आलोक का प्रचार हर जगह दिखता है।
उत्तर भोपाल और भोपाल मध्य को छाेड़कर भाजपा का शेष 6 विधानसभा सीटों में कब्जा है। कांग्रेस की तुलना में भाजपा का संगठन भी हर गांव और बूथ तक मजबूत है। इसका लाभ आलोक शर्मा को मिल रहा है। नेताओं-कार्यकर्ताओं की फौज के कारण भाजपा प्रचार में आगे दिखती है। मुद्दों के मसले पर भी वह कांग्रेस पर भारी है। जातिगत समीकरण ही ऐसे हैं, जिनकी बदौलत कांग्रेस के अरुण मुकाबले में हैं।
दो-दो विधानसभा सीटों में भाजपा
- कांग्रेस को उम्मीदभाेपाल लोकसभा क्षेत्र की 8 में से 6 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का कब्जा है जबकि कांग्रेस दो विधानसभा क्षेत्रों तक सीमित है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को रामेश्वर शर्मा की हुजूर और कृष्णा गौर की गोविंदपुरा विधानसभा सीट से ज्यादा उम्मीद है। भाजपा हुजूर में लगभग 98 हजार और गोविंदपुरा में 1 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीती है। इनके अलावा भाजपा नरेला में 24 हजार से ज्यादा, भोपाल दक्षिण-पश्चिम में 15 हजार से ज्यादा और सीहोर सीट 37 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीती है। कांग्रेस ने दो सीटें भोपाल उत्तर लगभग 27 हजार और भोपाल मध्य लगभग 16 हजार वाेटों के अंतर से जीती है। स्पष्ट है कि भाजपा को हुजूर और गोविंदपुरा से बड़ी लीड मिल सकती है और कांग्रेस को भोपाल उत्तर और भोपाल मध्य से।
एक अदद जीत के लिए तरस रही कांग्रेस
भोपाल लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस एक अदद जीत के लिए लंबे समय से तरस रही है। कांग्रेस हर तरह के प्रत्याशियों को आजमा चुकी लेकिन हर बार असफलता हाथ लगी है। भोपाल में पहले स्व सुशील चंद्र वर्मा जीतते थे और उनकी जीत का अंतर कभी 1 लाख से कम नहीं रहा। उनके बाद उमा भारती और स्व कैलाश जोशी भी बड़े अंतर से जीते। जोशी दूसरा चुनाव 2009 में लगभग 56 हजार वोटों के अंतर से जीते थे। यह भाजपा की सबसे छोटी जीत थी। पिछले दो चुनाव तो भाजपा ने साढ़े 3 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते। जबकि कांग्रेस की ओर से मैदान में क्रमश: भोपाल के स्थानीय लोकप्रिय नेता पीसी शर्मा और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह थे।
कांग्रेस ने लंबे समय बाद किसी कायस्थ पर दांव लगाया है। इस समाज के मतदाताओं की संख्या ढाई से तीन लाख बताई जाती है। भोपाल में आमतौर पर कायस्थ प्रत्याशी हारता नहीं है। इसलिए भी पार्टी इस बार जीत की उम्मीद कर रही है। हालांकि यह आसान नहीं है।