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मुंबई
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 14 साल की एक रेप पीड़िता को मेडिकल बोर्ड के ओपीनियन के खिलाफ 29 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत दे दी है। जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने गर्भपात के खिलाफ अपने विचार रखे थे। जस्टिस सारंग कोटवाल और नीला गोखले की बेंच ने कहा, पीड़िता की सुरक्षा और इच्छा किसी अन्य चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

बता दें कि पीड़िता की प्रेग्नेंसी 24 सप्ताह की सीमा को पार कर चुकी थी। इसके बाद पीड़िता की मां ने हाई कोर्ट का रुख किया। पीड़िता के मां-बाप दिहाड़ी मजदूर हैं। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि एक जानने वाले शख्स ने ही जुलाई में उसके साथ रेप किया था। 1 अक्टूबर को भारतीय न्याय संहिता की संबंधित धारा और पॉक्सो के तहत केस दर्ज किया गया था। उस वर्क वह 27 हफ्ते की प्रेग्नेंट थी।

9 अक्टूबर को डॉक्टरों के बोर्ड ने पाया कि 19.1 हफ्ते के बाद भ्रूण में कोई समस्या नहीं थी। बोर्ड ने कहा कि अगर नाबालिग का गर्भपात किया जाता है तो उसके स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। ऐसे में फिजिकली और मेंटली फिट रहने के लिए गर्भपात करवाना सही नहीं है। वहीं पीड़िता की मां के वकील ने कोर्ट में कहा कि प्रेग्नेंसी पूरी होने में अभी 8 से 9 सप्ताह का वक्त है। ऐसे में संभव है कि बच्चा स्वस्थ और जीवित पैदा हो।

उन्होंने पैदा होने वाले बच्चे को लेकर भी चिंता जताई और कहा कि उसके स्वस्थ्य रहने की भी संभावना कम है। जजों ने इस बात पर गौर किया। कोर्ट ने कहा कि अगर प्रेग्नेंसी बनाए रखने से पीड़िता के स्वास्थ्य को खतरा है तो गर्भपात सही है। कोर्ट ने यह भी देखा कि पीड़िता गरीब परिवार से है और अभी बच्चे की परवरिश भी उसके लिए मुश्किल काम है। ऐसे में वह भी गर्भपात करवाने के ही पक्ष में है।

जजों ने कहा, पीड़िता की सुरक्षा सबसे बड़ा निर्णायक बिंदु है। कोर्ट ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिए हैं कि अगर बच्चा जिंदा पैदा होता है तो उसकी परवरिश का इंतजाम किया जाए और फिर किसी को गोद दे दिया जाए।

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