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नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में 'मन की बात' कार्यक्रम में बढ़ते मोटापे पर चिंता जताई थी। मोटापा सिर्फ सेहत के लिए ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरे की घंटी है। ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी के अनुसार 2019 में भारत में मोटापे का आर्थिक बोझ लगभग 28.95 अरब डॉलर था जो देश की GDP का 1% है। अगर यही हाल रहा तो इस साल इसके 81.53 अरब डॉलर होने की आशंका है जो GDP का 1.57% होगा। माना जा रहा है कि साल 2060 तक मोटापे से देश की इकॉनमी को 838.6 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। यह देश की GDP का करीब 2.5% है।

पिछले साल जुलाई में जारी हुए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में चेतावनी दी गई थी कि अगर भारतीय फिट नहीं रहेंगे तो देश को डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी युवा आबादी का पूरा फायदा नहीं मिलेगा। यानी हमारी आबादी स्वस्थ नहीं होगी तो इसका असर देश के विकास पर पड़ेगा। सर्वे के मुताबिक अगर भारत को अपने डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठाना है, तो इसके लिए यह जरूरी है कि उसके लोगों के स्वास्थ्य मानकों में संतुलित और विविध आहार की ओर बदलाव हो। सर्वे में मोटापे को एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती बताया गया था।

सर्वे के मुताबिक भारत की वयस्क आबादी में मोटापा एक गंभीर चिंता का विषय बन रहा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के अनुसार 18-69 आयु वर्ग के पुरुषों में मोटापे का प्रतिशत 22.9% हो गया है जो पिछले सर्वे में 18.9% था। महिलाओं में मोटापा 20.6% से बढ़कर 24.0% हो गया है। कम शारीरिक गतिविधि इसका एक बड़ा कारण हो सकता है। साथ ही लोगों की खानपान की आदत में भी बदलाव आया है। पैकेट बंद और प्रोसेस्ड खाना खाने से मोटापा बढ़ता है।

आपकी थाली में क्या है?

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड पर चिंता जताई है। इसमें चीनी, नमक और अनहेल्दी फैट पर सख्त नियम बनाने की बात कही गई है। इसमें खाने के पैकेट पर चेतावनी लेबल लगाने और जंक फूड के विज्ञापन पर, खासकर बच्चों के लिए, रोक लगाने का सुझाव दिया गया है। स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक जगहों पर ऐसे खाने को हटाने और मिलेट्स, फल और सब्जियों जैसे स्वास्थ्यवर्धक खाने को सस्ता करने की बात भी कही गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध परिषद (ICRIER) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य क्षेत्र में 2011 से 2021 तक खुदरा बिक्री मूल्य में सालाना 13.37% की तेजी रही है। घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23 के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण परिवार अपने खाद्य बजट का लगभग 9.6% प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर खर्च करते हैं जबकि शहरी परिवार लगभग 10.64% खर्च करते हैं।

नेशनल वेट-लॉस प्लान?

इन सब चेतावनियों के बावजूद भारत में मोटापे से निपटने के लिए कोई ठोस राष्ट्रीय रणनीति नहीं है। हालांकि बच्चों और कमजोर वर्गों के पोषण के लिए नीतियां हैं लेकिन सभी आयु वर्ग के लोगों में मोटापे से निपटने के लिए कोई व्यापक योजना नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जल्द ही कदम नहीं उठाए गए तो आर्थिक बोझ बहुत बढ़ जाएगा।

राष्ट्रीय पोषण संस्थान में काम कर चुके वैज्ञानिक ए लक्ष्मैया ने बताया कि मोटापे का आर्थिक प्रभाव सिर्फ इलाज की लागत तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने कहा, 'रोजगार का नुकसान, अवसरों की कमी और सोशल सपोर्ट की कमी के कारण भावनात्मक तनाव भी इस आर्थिक बोझ में काफी योगदान करते हैं।'

आगे का रास्ता

मोटापा सिर्फ व्यक्तिगत स्वास्थ्य का मामला नहीं है, यह राष्ट्रीय समृद्धि से भी जुड़ा है। अगर भारत अपने डेमोग्राफिक डिविडेंड का पूरा फायदा उठाना चाहता है, तो उसके पास एक स्वस्थ और उत्पादक वर्कफोर्स होना बहुत जरूरी है। आर्थिक सर्वेक्षण साफ कहता है कि अगर हमने अभी मोटापे पर नियंत्रण नहीं किया तो हम अपनी आर्थिक क्षमता का पूरा लाभ नहीं उठा पाएंगे। तो अगली बार जब आप चिप्स का एक और पैकेट खाने के लिए हाथ बढ़ाएं या व्यायाम छोड़ने का फैसला करें, तो याद रखें कि यह सिर्फ आपके स्वास्थ्य का ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का भी सवाल है।

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