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नई दिल्ली
 केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ पर बहस के दौरान एक अहम बात कही। सरकार ने कहा कि वक्फ, जो कि एक इस्लामिक अवधारणा है, इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे संविधान के तहत मौलिक अधिकार के तौर पर नहीं माना जा सकता। सरकार वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में यह बात कह रही है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि वक्फ इस्लाम का जरूरी हिस्सा है, तब तक बाकी तर्क बेकार हैं।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वक्फ को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि वक्फ इस्लाम का एक जरूरी हिस्सा है, तब तक इस पर कोई दावा नहीं किया जा सकता। लाइव लॉ के अनुसार, मेहता ने कहा, 'वक्फ एक इस्लामिक अवधारणा है, इस पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन जब तक यह नहीं दिखाया जाता कि वक्फ इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा है, तब तक बाकी सभी तर्क बेकार हैं।'

मेहता ने अधिनियम का बचाव करते हुए अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को सरकारी जमीन पर दावा करने का अधिकार नहीं है। भले ही उसे 'वक्फ बाय यूजर' सिद्धांत के तहत वक्फ के रूप में कैटगराइज किया गया हो। 'वक्फ बाय यूजर' का मतलब है कि अगर कोई जमीन लंबे समय से धार्मिक या दान के काम के लिए इस्तेमाल हो रही है, तो उसे वक्फ घोषित कर दिया जाता है। मेहता ने साफ कहा, 'किसी को भी सरकारी जमीन पर अधिकार नहीं है।'

उन्होंने एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई संपत्ति सरकार की है और उसे वक्फ घोषित कर दिया गया है, तो सरकार उसे बचा सकती है। सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा, 'वक्फ बाय यूजर मौलिक अधिकार नहीं है, इसे कानून द्वारा मान्यता दी गई थी। फैसले में कहा गया है कि अगर कोई अधिकार विधायी नीति के रूप में दिया गया है, तो उस अधिकार को हमेशा वापस लिया जा सकता है।'

मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने दलीलें दीं. आज केंद्र का पक्ष रखने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने एसजी तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की उस आपत्ति पर जवाब दिया, जिसमें कहा गया कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार एसजी तुषार मेहता ने कहा, 'जब तक मैंने रिसर्च नहीं की थी तब तक मुझे इस्लाम धर्म के इस हिस्से के बारे में नहीं पता था कि वक्फ इस्लामिक अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है.' उन्होंने कहा कि चैरिटी का कॉन्सेप्ट हर धर्म में मौजूद है. ईसाई धर्म में भी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कहता है कि किसी के लिए भी यह जरूरी नहीं है. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि हिंदुओं में भी दान देने जैसी चीजें हैं और सिख धर्म में भी ऐसा ही है, लेकिन किसी भी धर्म में इसे जरूरी नहीं बताया गया है.

एसजी मेहता ने कहा कि अगर मान लें कि मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर लोगों की फाइनेंशियल स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है और वह वक्फ नहीं कर पाते हैं, तो क्या वह मुस्लिम नहीं होंगे. यह सुप्रीम कोर्ट की ओर से किया गया एक परीक्षण है, ये निर्धारित करने के लिए कि कोई प्रथा आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं. उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म में चैरिटी करना जरूरी नहीं है, इसी तरह इस्लाम में वक्फ है.

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ बाय यूजर मौलिक अधिकार नहीं है. इसे 1954 में कानून द्वारा मान्यता दी गई थी और उससे पहले बंगाल एक्ट में. उन्होंने एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कोई अधिकार विधायी नीति के रूप में कानून द्वारा प्रदान किया गया है, तो उसे राज्य द्वारा हमेशा के लिए छीना जा सकता है.

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