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गाजा
गाजा से इजरायली सेना द्वारा बचाई गई एक यजीदी महिला ने अपनी खौफनाक आपबीती सुनाई है। दो सप्ताह पहले बचाई गई यजीदी महिला फौजिया अमीन सिदो ने ISIS के कब्जे में रहने के दौरान अपने साथ हुए खौफनाक अत्याचारों को याद किया। सिदो ने बताया कि उन्हें उनके भाईयों के साथ नौ साल की उम्र में ISIS के लड़ाकों ने कैद कर लिया गया था। कुछ दिनों बाद मेरे साथ बंधक बनाए गए हजारों लोगों के साथ मुझे सिंजर से ताल अफार तक के बीच पैदल चलने के लिए मजबूर किया गया। तीन दिन तक लगातार भूखा रखने के बाद आतंकियों ने हमें मांस और चावल खाने को दिया गया, हम सभी को मांस का स्वाद अजीब सा लगा, लेकिन तीन दिन से भूखे होने के कारण हम सभी ने वह चावल और मांस खा लिया।

यरुशलम पोस्ट को दिए अपने इंटरव्यू में सिदो ने बताया कि जब हम सभी ने वह चावल और मांस खा लिया, तो कुछ लोगों के पेट में दर्द होना शुरू हो गया। आईएसआईएस के लोगों ने हमें बाद में बताया कि उन्होंने हमें खाने के लिए जो मांस दिया था, वह यजीदी बच्चों का था। अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने हमें सर कटे हुए मासूम बच्चों की तस्वीरें भी दिखाईं और कहा कि यह वही बच्चे हैं जिन्हें तुम लोगों ने अभी खाया है।

धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक बंधकों को खिलाते थे इंसानी मांस
ISIS के लड़ाकों द्वारा अपने यजीदी बंधकों को मानव मांस खिलाने की यह घटना अकेली नहीं है। 2017 में यजीदी सांसद वियान दाखिल ने भी आतंकी संगठन द्वारा शुरू की गई इस प्रथा को सामने लाया था। सिदो ने बताया कि जब आतंकी समूह के लड़ाकों ने हमें बताया कि उन्होंने हमें मानव मांस खिला दिया है तो वहां पर मौजूद कई लोगों को इसका इतना सदमा लगा कि उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। उनकी यातना यहीं पर खत्म नहीं हुई। मुझे 200 अन्य यजीदी लड़कियों के साथ एक तहखाने वाली जेल में कई महीनों तक रखा गया। वहां की हालात इतने खराब थे कि कई लड़कियों की मौत तो गंदा खाना खाने और पानी पीने से ही हो गई।

5 लड़ाकों के हाथों बेचा गया
सिदो ने बताया कि जब भूमिगत जेल से निकाले जाने के बाद उन्हें 5 बार बेचा गया। उनमें से एक लड़ाके अबू अमर अल-मकदिसी के साथ उनके दो बच्चे भी हुए। सालों तक कैद में रहने के बाद कुछ दिनों पहले इजरायली सेना के नेतृत्व में जब सैन्य अभियान में उन्हें गाजा से बचाया गया तब जाकर वह अपने परिवार के पास इराक लौट सकीं। हालांकि, उनके बच्चे अभी भी बंधक के पास गाजा में ही है, जहां उनका पालन-पोषण अरब मुसलमानों के रूप में किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि जब तक मैं उनकी कैद में रही तब तक मैं ‘सबाया’ ही रही। यहां गाजा में भी मेरी हालत में कोई ज्यादा सुधार नहीं था। जब मैं अपने घर इराक पहुंची तब एक इंसान के रूप में खुल के सांस ले सकी। सबाया एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब यौन शोषण के लिए बंधक बना कर रखी गई महिला।

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