नई दिल्ली/ मास्को
भारत और रूस की राजनयिक दोस्ती के 78 साल पूरे हो गए हैं। शीत युद्ध से लेकर पाकिस्तान युद्ध तक रूस ने भारत के साथ दोस्ती निभाई है। अब एक बार फिर से रूस ने भारत की वर्षों से चली आ रही मांग का खुलकर समर्थन किया है। रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता देने की मांग को फिर से दोहराया है। साथ ही रूस ने भारत के साथ आने वाले वर्षों में भी अच्छे रिश्ते बरकरार रखने की उम्मीद जताई है। रूस के विदेश मंत्रालय ने अपने संदेश में दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते स्थापित होने के 78 साल पूरे होने की बधाई दी। इस बीच स्लोवाकिया ने भी भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है।
टेलिग्राम पर दिए अपने संदेश में रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम भारत के साथ रणनीतिक भागीदारी को और मजबूत करना चाहते हैं। रूसी मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक संवाद मजबूत बना रहेगा और दोनों देशों के नेताओं के बीच मुलाकातों का दौर जारी रहेगा। साल 2024 में पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच दो शिखर सम्मेलन हुए थे। इस साल भी पुतिन भारत आने वाले हैं। रूस ने विक्ट्री डे परेड में पीएम मोदी को न्योता दिया था। इसमें हिस्सा लेने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर जा रहे हैं।
भारत और रूस बढ़ाएं दोस्ती
रूसी विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार लगातार तेजी से बढ़ रहा है और यह 60 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसके अलावा दोनों देश परमाणु ऊर्जा पर भी सहयोग कर रहे हैं और तमिलनाडु के कुंडनकुलम में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाया जा रहा है। रूस ने कहा कि दोनों देशों को रक्षा, स्पेस, तकनीक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को जारी रखना चाहिए ताकि एक बहुध्रुवीय दुनिया को बनाया जा सके। यह वैश्विक प्रशासन में ग्लोबल साऊथ की भागीदारी को बढ़ाएगा।
सुरक्षा परिषद की दावेदारी में कहां फंसा पेंच?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए कई साल से भारत मांग कर रहा है। यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली निकाय है लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत इसका स्थायी सदस्य नहीं है। साल 1945 में बनाए गए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 15 सदस्य हैं और इसमें केवल 5 ही स्थायी सदस्य हैं। ये देश हैं- अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन। 10 गैर अस्थायी सदस्य होते हैं जिन्हें दो साल के लिए चुना जाता है। स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर होता है लेकिन अस्थायी सदस्यों के पास यह ताकत नहीं होती है। भारत को रूस, अमेरिका, फ्रांस समेत दुनिया के कई ताकतवर देशों का समर्थन हासिल है लेकिन नई दिल्ली की राह में सबसे बड़ी बाधा चीन बना हुआ है। चीन नहीं चाहता है कि एशिया में उसके एकाधिकार को भारत चुनौती दे। इसी वजह से चीन सुरक्षा परिषद में एशिया से अकेले प्रतिनिधित्व करना चाहता है।

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