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Parenting: Mobile addiction is harmful for children’s future, know the ways to get rid of it

क्या आपका बच्चा मोबाइल के बिना रह सकता है?
Mobile addiction for children future आज यह सवाल हर माता-पिता के मन में गूंज रहा है। तकनीक के इस दौर में मोबाइल बच्चों की जिंदगी का ऐसा हिस्सा बन चुका है, मानो उनका एक नया अंग हो। चाहे भोजन हो, पढ़ाई या आराम का समय हर क्षण मोबाइल उनके साथ है। यह डिजिटल डिवाइस केवल उनके शरीर को ही नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक विकास को भी गहराई से प्रभावित कर रहा है।

बच्चों पर मोबाइल का असर: सिर्फ आंखें नहीं, पूरी सोच पर असर Mobile addiction for children future

धैर्य में गिरावट:
स्क्रीन पर मिलने वाला त्वरित मनोरंजन बच्चों को अधीर बना रहा है। किसी भी असफलता या देरी पर वे गुस्से में आ जाते हैं। माता-पिता या शिक्षकों की मामूली बात भी उन्हें आहत कर देती है।

एकाग्रता में कमी:
लगातार आने वाले नोटिफिकेशन्स और ऑनलाइन एक्टिविटी बच्चों की एकाग्रता को कमजोर कर रही है। वे लंबे समय तक किसी एक काम पर ध्यान नहीं दे पाते।

संवादहीनता और सामाजिक दूरी:
मोबाइल की लत बच्चों को परिवार और दोस्तों से दूर कर रही है। अब वे भावनाओं को शब्दों में नहीं, इमोजी में बयां करते हैं। इसका असर उनके आत्मविश्वास, भाषा कौशल और सामाजिकता पर पड़ रहा है।

ऑनलाइन गेमिंग और मानसिक स्वास्थ्य:
गेमिंग ऐप्स बच्चों के लिए एक नशे की तरह बन चुके हैं। लेवल पार करने का जुनून, पैसे हारने का डर और त्वरित सफलता की उम्मीद उन्हें तनाव, एंग्ज़ायटी और यहां तक कि आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम तक ले जा रही है।

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नींद और शारीरिक समस्याएं:
देर रात तक स्क्रीन देखने से मेलाटोनिन हार्मोन का स्तर बिगड़ता है, जिससे नींद की गुणवत्ता घटती है। इससे चिड़चिड़ापन, मोटापा और आंखों की समस्याएं जैसे डिजिटल आई स्ट्रेन और दृष्टि दोष उत्पन्न होते हैं।

अभिभावकों की भूमिका: शुरुआत घर से ही होती है
आमतौर पर मोबाइल की लत के बीज माता-पिता ही बोते हैं—कभी बच्चे को चुप कराने के लिए, तो कभी उसे व्यस्त रखने के लिए। एक साल के बच्चे को मोबाइल पर राइम्स दिखाना आज सामान्य बात हो गई है। फिर जब वही बच्चा 12-13 साल में मोबाइल मांगता है, तो माता-पिता उसे रोक नहीं पाते।

समाधान: स्क्रीन से दूरी, जीवन से जुड़ाव

स्क्रीन टाइम तय करें:
परिवार में मोबाइल उपयोग का एक साझा नियम बनाएं। बच्चे को 15 साल की उम्र तक अपना व्यक्तिगत मोबाइल न दें।

मैदानी खेल और आउटडोर एक्टिविटी:
हर दिन कम से कम दो घंटे बच्चों को फिजिकल एक्टिविटी में व्यस्त रखें। फैमिली आउटिंग में मोबाइल ले जाना प्रतिबंधित करें।

बातचीत और समय:
बच्चों से बात करें, उनकी समस्याएं समझें। जब वो आपकी बात सुनते हैं, तो आप भी उनकी दुनिया से जुड़ पाते हैं।

तकनीक से नहीं, रिश्तों से जुड़ाव बढ़ाएं:
उन्हें यादें लिखने के लिए प्रेरित करें, न कि इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने के लिए।

मोबाइल कोई बुरा उपकरण नहीं है, लेकिन उसके गलत इस्तेमाल ने बच्चों को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से नुकसान पहुंचाया है। माता-पिता यदि आज सतर्क नहीं हुए, तो कल बहुत देर हो जाएगी। सही परवरिश तकनीक से नहीं, समय और समझ से होती है।

Tag: Parenting, Screen Addiction, Children Mental Health, Digital Detox

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