कांग्रेस में कन्हैया के एक्टिव होने से क्या लालू-तेजस्वी नाराज!: क्योंकि राहुल गांधी ने टाली बिहार की रिव्यू मीटिंग, क्या अकेले लड़ेगी कांग्रेस

कांग्रेस में कन्हैया के एक्टिव होने से क्या लालू-तेजस्वी नाराज!: क्योंकि राहुल गांधी ने टाली बिहार की रिव्यू मीटिंग, क्या अकेले लड़ेगी कांग्रेस

Are Lalu-Tejaswi angry with Kanhaiya becoming active in Congress?: Because Rahul Gandhi postponed the review meeting of Bihar, will Congress fight alone?

पटना। कांग्रेस को हराने की ताकत किसी भी विपक्षी दल में नहीं है, लेकिन अगर कांग्रेस नेता खुद अंदरूनी कलह में उलझे रहे तो, यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’

तारीख- 1 मार्च 2025

‘कांग्रेस इस बार जनता की A टीम बनकर चुनाव लड़ना चाहती है, किसी की B टीम नहीं। हमारा मकसद मजबूती से चुनाव लड़ना है और पार्टी को मजबूत करना है।’

कांग्रेस के बिहार प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के इस दो बयान ने पटना से दिल्ली तक हलचल बढ़ा दी है। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी के भरोसेमंद अल्लावरु पार्टी में लालू के भरोसेमंद प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह की छुट्‌टी कर सकते हैं। उनकी जगह किसी दलित नेता को प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है। हालांकि, अभी गहन मंथन जारी है।

खास बात है कि बिहार की कमान संभालने के बाद अभी तक अल्लावरु ने न ही लालू के दरबार में हाजिरी लगाई है और न ही गठबंधन दल के नेता तेजस्वी यादव से मुलाकात की है।

इस बीच अब उन्होंने अपना तुरुप का इक्का चल दिया है। लालू और तेजस्वी विरोध के कारण अपने फायरब्रांड नेता कन्हैया कुमार को बिहार से दूर रख रही कांग्रेस 6 साल बाद उनकी वापसी करा रही है। 16 मार्च यानी आज से कन्हैया ‘पलायन रोको नौकरी दो’ यात्रा निकालकर बिहार की सियासत में अपना पांव जमाएंगे।

प्रभारी के इस बयान और पार्टी की गतिविधि से बिहार की राजनीतिक फिजा में 4 सवाल उठ रहे हैं।

  • अल्लावरु और कन्हैया को बिहार भेजकर कांग्रेस क्या हासिल करना चाहती है?
  • क्या कांग्रेस लालू को नाराज कर बिहार में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है?
  • क्या 2025 के बहाने अभी से 2029 की तैयारी में कांग्रेस जुट गई है?
  • चुनाव से 6 महीने पहले आक्रामक हुई कांग्रेस के एक्शन का क्या असर होगा?

कांग्रेस की राजनीति पर नजर रखने वाले सीनियर जर्नलिस्ट आदेश रावल बताते हैं, ‘राहुल गांधी बिहार में अपना बार्गेन पावर बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मूव से कांग्रेस बिहार में अपन खोया हुआ वोट बैंक हासिल करना चाहती है। कन्हैया किसी के पॉकेट में रहने वाले नेता नहीं है। अल्लावरू राहुल गांधी के भरोसेमंद हैं। बिहार में एक तबका ऐसा है, जो ना लालू के साथ जाना चाहता और ना NDA के साथ। उन लोगों को ये मैसेज देना है कि अब कांग्रेस अपनी खुद की राजनीति करेगी, किसी के इशारे पर नहीं करेगी।’

रावल बताते हैं, ‘यादव और मुस्लिम पहले से ही RJD के साथ इंटैक्ट हैं। ऐसे में राहुल गांधी राज्य के लगभग 20 फीसदी दलित वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने की मुहिम में जुटे हैं। यही कारण है कि वे लगातार संविधान और दलितों के मुद्दों पर बात कर रहे हैं। फॉरवर्ड हमेशा से कांग्रेस का वोटर रहा है, जो पिछले एक दशक में लगातार छिटका है। अब राहुल गांधी की कोशिश एक बार फिर से अपने खोए जनाधार को वापस हासिल करने की है।’

क्या कांग्रेस बिहार में RJD से अपना गठबंधन तोड़ सकती है?

बिहार में लगातार एक के बाद एक जिस तरीके से कांग्रेस फैसले ले रही है, इसका असर गठबंधन पर भी पड़ सकता है। लालू कभी भी कन्हैया को बिहार की सियासत में देखना पसंद नहीं करते हैं। कन्हैया हो या पप्पू यादव, लालू हमेशा इन्हें तेजस्वी के लिए चुनौती मानते हैं। अब कांग्रेस दोनों को बिहार में एक्टिव कर रही है।

इस सवाल पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई बताते हैं, ’राहुल गांधी को ये इनपुट मिल रही है कि ऐसे राज्य जहां कांग्रेस कमजोर है या गठबंधन में है, वहां का नेतृत्व बड़े घटक दल से प्रभावित होता है। वे उनके इशारे पर काम करते हैं। राहुल गांधी इस प्रथा को बदलना चाहते हैं। लेकिन अब वे इसमें देर कर चुके हैं। अगले 6 महीने में चुनाव है। इसे कम से कम डेढ़-दो साल पहले शुरू करना चाहिए था। चुनाव के समय घटक दल पर दबाव डालने की रणनीति नुकसानदेह और घातक होती है।’

जबकि, सीनियर जर्नलिस्ट आदेश रावल बताते हैं, ’कांग्रेस बिहार में लालू के साथ मिलकर ही विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। कन्हैया को आगे कर वो अपना बार्गेन पावर बढ़ा रही है। आखिर में कांग्रेस तेजस्वी की नाराजगी झेल नहीं पाएगी। बिहार जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस RJD जैसे अपने पुराने सहयोगियों को नाराज करने की गलती नहीं करेगी।’

क्या 2025 के बहाने अभी से 2029 की तैयारी में कांग्रेस जुट गई है?

महाराष्ट्र और दिल्ली में हार के बाद कांग्रेस ने अचानक अपनी नीतियों में बदलाव किया है। पहले तो दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ी। यहां पार्टी हारी, लेकिन वोट शेयर बढ़ा। इसके बाद राहुल गांधी ने गुजरात जाकर कहा कि कांग्रेस के भीतर कई नेता बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं, उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।

ऐसे में अब इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्या कांग्रेस अभी से ही 2029 की तैयारी में जुट गई है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई बताते हैं, ’कांग्रेस फिलहाल सत्ता में आने और विधानसभा में सीटें जीतने के बजाय अपनी जमीन बनाने की कोशिश कर रही है। पार्टी को लग रहा है कि यहां विधानसभा की सीटें जीतने के बजाय पार्टी को मजबूत करना और लालू की पॉकेट की पार्टी की छवि से बाहर आना ज्यादा जरूरी है।

राशिद किदवई आगे बताते हैं, ‘अभी तक ये मैसेज गया है कि कांग्रेस के सारे बड़े नेता बिहार में RJD की जेब में है। कांग्रेस के उम्मीदवार और सीटें भी अघोषित रूप से लालू तय कर रहे थे। अब राहुल गांधी को ये समझाया गया है कि हमें सीटों से ज्यादा अपनी पार्टी को खड़ा करना है। ताकि लोकसभा में इसका फायदा मिल सके। राहुल को ये समझाया गया है कि विधानसभा में कितनी सीटें जीतते हैं इसका कांग्रेस पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसका सीधा असर तेजस्वी यादव पर पड़ेगा।’

चुनाव से 6 महीने पहले आक्रामक हुई कांग्रेस के एक्शन का क्या असर होगा?

गठबंधन में पड़ सकती है दरार, तेजस्वी नाराज

राहुल गांधी की नई नीतियों का सीधा असर बिहार में गठबंधन पर पड़ सकता है। पिछले लगभग 25-30 सालों से कांग्रेस यहां लालू के कंधे पर ही राजनीति कर रही है। गठबंधन में वही होते आया है जो लालू चाहते हैं।

कांग्रेस के बिहार में एक्टिव होने के बाद तेजस्वी यादव ने कांग्रेस नेतृत्व से अपनी नाराजगी जाहिर की है। सूत्रों की मानें तो उनकी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से सीधी बात हुई है। इसके बाद 12 मार्च को राहुल गांधी ने बिहार कांग्रेस की समीक्षा बैठक को भी टाल दिया है।

कांग्रेस के भीतर बढ़ सकती है गुटबाजी

कांग्रेस की सेंट्रल लीडरशीप का बिहार में दखल का सीधा असर पार्टी के इंटरनल कलह को बढ़ा सकता है। इसके रुझान भी दिखने लगे हैं। अल्लावरू के एक्टिव होते ही प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह शांत हो गए हैं।

अखिलेश सिंह अगर ऐसे मौके पर पार्टी एक्टिविटी से किनारे होते हैं तो पार्टी को दो नुकसान होगा।

पहला- बिहार कांग्रेस के पास फिलहाल इस कद का कोई नेता नहीं है, जो लालू से सीधा डील कर सके। अखिलेश को लालू का करीबी और भरोसेमंद माना जाता हैै।

दूसरा- अखिलेश सिंह भले ग्राउंड लेवल पर पार्टी को मजबूत नहीं कर सके हो, लेकिन आर्थिक तौर पर पार्टी को सपोर्ट करने में उनकी बडी़ भूमिका है। बिहार में कांग्रेस की जो भी एक्टिविटी हुई है, उसमें उनका बड़ा रोल माना जा रहा है।

बिहार में आज कांग्रेस की स्थिति यह है कि पिछले 2 साल में पार्टी के 2 प्रदेश प्रभारी बदल गए, लेकिन अध्यक्ष अपनी कमेटी का गठन नहीं कर पाए। अभी प्रदेश अध्यक्ष के अलावा मीडिया प्रभारी और कोषाध्यक्ष के अलावा कोई भी पद फंक्शनल नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह की बार-बार कोशिश करने के बाद भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है।

यहां सांसद, विधायक और विधानसभा में नेता विधायक दल सबकी अपनी-अपनी राय है। इस बीच पप्पू यादव कांग्रेस में अपना एक अलग धड़ा बना चुके हैं।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की कुर्सी को लेकर इन दिनों कयासबाजी तेज है।

गठबंधन में कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें दिला पाना मुश्किल

2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी, जिसमें से 19 सीटों पर जीत मिली। विधानसभा चुनाव के बाद RJD के अंदर से आवाज आई थी कि कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं दी गई होती तो महागठबंधन का प्रदर्शन बेहतर होता और तेजस्वी मुख्यमंत्री बनने से नहीं चूकते।

2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी, जिसमें से 19 सीटों पर जीत मिली। विधानसभा चुनाव के बाद RJD के अंदर से आवाज आई थी कि कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं दी गई होती तो महागठबंधन का प्रदर्शन बेहतर होता और तेजस्वी मुख्यमंत्री बनने से नहीं चूकते।

विधानसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनावों में इसी वजह से कई बार कांग्रेस-RJD के बीच आर-पार जैसी लड़ाई दिखी। अब कांग्रेस कम से कम इस चुनाव में अपनी पुरानी 70 सीटें हर हाल में हासिल करना चाहती हैं।

हालांकि, कांग्रेस के इंटरनल सर्वे में ये जानकारी निकलकर सामने आ रही है कि पार्टी 50 सीटों पर मजबूत स्थिति में है। इसके लिए कांग्रेस आलाकमान गठबंधन के सहयोगियों के साथ कई सीटों की अदला-बदली भी कर सकती है।

कांग्रेस की नई रणनीति पर RJD केवल नजर बनाए हुए है। न लालू यादव इस पर कुछ बोल रहे हैं और न ही तेजस्वी। लोकसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन की सीट शेयरिंग का फॉर्मूला से लेकर कैंडिडेट सिलेक्शन तक में लालू का दबदबा रहा था।

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