बेटी भी अपनी, बेटा भी अपना: भेदभाव से बचे, संतुलित समाज की ओर बढ़ें,,,

Both your daughter and your son should avoid excesses.

✍️प्रमोद कुमार व्दिवेदी एड्वोकेट

आजकल समाज में दिखावा ज्यादा ही चल रहा बेटीयों के लिए, ऐसे ऐसे विडियों डाले जाते है मानो बेटे नालायक ही होते हैं,बेटा होना गुनाह है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना चल रही अच्छा है,बेटी है तो कल है और अच्छा पर क्या बेटा होना,,,, अपराध है,सजा है। समाज की सोच सकारात्मक हो चली बेटी को बोझ अब नहीं समझा जाता,, पर क्या बेटे बोझ है,बेटे कल नहीं।

हमे बेटे बेटी में भेदभाव नहीं करना चाहिए,बेटे को पिता को मारते बेटी को बचाते दिखा रहे,बेटी पिता का रास्ता देख रही,,, तो क्या बेटे नहीं देखते। समझने की आवश्यकता है कि यह विडियो, स्लोगन आदि बच्चों में क्या प्रभाव डाल रहे।

Both your daughter and your son should avoid excesses.

बेटी हमेशा पिता से ज्यादा लगाव रखती है,बेटा मां से और यह  स्थापित सच्चाई है। पुत्र मां को जन्म से लेकर मृत्यु तक मुंह पर रखता है नाम, दुनिया के सारे स्वाद स्वादिष्ट कहेगा पर कहेगा मेरी मां के हाथ से बने,,,,खाने का स्वाद ही अलग,,,वह दादा परदादा भी बन जाए अपनी मां के सामने बेटा ही,

ठीक ऐसे ही पिता बेटी को दिल में रखता है, क्योंकि बेटी में उसे अपनी मां की छवि नजर आती है, बेटी भी ध्यान रखने में मां समान रखती है।

  • कृपया करके हम बच्चों में हीनभावना ना भरे, सरकारी योजनाओं पर मैं कुछ नहीं कहता,

पंरतु हमें समाजिक स्तर पर, पारिवारिक जीवन में, ध्यान रखना चाहिए और 

जैसी सकारात्मक सोच रखे, बेटी भी पढे बेटा भी, बेटी भी शान बेटा भी शान ,,,मेरा परिवार महान,,,।

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बेटा-बेटी दोनों परिवार की शान हैं। हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों में आपसी समानता और सम्मान का भाव जगाएँ। सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हमारे बच्चे किसी प्रकार की हीनभावना का शिकार न हों। हमारे लिए बेटा-बेटी एक समान हैं और यह सोच ही एक मजबूत और आत्मनिर्भर समाज की नींव रखेगी।

“बेटी भी अपनी, बेटा भी अपनी शान। दोनों से है परिवार महान।”

3 thoughts on “बेटी भी अपनी, बेटा भी अपना: भेदभाव से बचे, संतुलित समाज की ओर बढ़ें,,,”

  1. Suddenly, on the basis of Internet analytics, conclusions are gaining popularity among certain segments of the population, which means that they must be devoted to a socio-democratic anathema. In our desire to improve user experience, we miss that the actions of opposition representatives are gaining popularity among certain segments of the population, which means that they must be turned into a laughing stock, although their very existence brings undoubted benefit to society.

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