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हिंदू धर्म में पूर्णिमा की तिथि बहुत पावन मानी गई है. हर माह में एक पूर्णिमा पड़ती है. अभी चैत्र का महीना चल रहा है. इस महीने की समाप्ति पूर्णिमा के दिन होगी. फिर अगले दिन से वैशाख का महीना शुरू हो जाएगा. चैत्र पूर्णिमा के दिन स्नान दान किया किया जाता है. चैत्र पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु गंगा समेत पावन नदियों में स्नान करते हैं. साथ ही दान-पुण्य करते हैं. चैत्र पूर्णिमा के दिन जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन होता है.

इस दिन पूजा के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को श्रीफल और चावल की खीर चढ़ानी चाहिए. चैत्र पूर्णिमा की तिथि पूजा-पाठ के साथ-साथ पितरों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. इस दिन पितरों का तर्पण और पिंंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है. पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि चैत्र पूर्णिमा के दिन किस विधि से पिंडदान करना चाहिए.

कब है चैत्र पूर्णिमा ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 12 अप्रैल को देर रात 3 बजकर 21 मिनट पर हो जाएगी. वहीं इस तिथि की समाप्ति 13 अप्रैल को सुबह सुबह 5 बजकर 51 मिनट पर हो जाएगी. हिंदू धर्म में उदया तिथि मानी जाती है. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 13 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा मनाई जाएगी.

पिंडदान की विधि
चैत्र अमावस्या के दिन सर्व प्रथम स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें. फिर एक वेदी बनाएं और उस पर पूर्वजों की तस्वीर रखें. फिर वेदी पर काले तिल, जौ, चावल और कुश रखें. इसके बाद गाय के गोबर, आटे, तिल और जौ से एक पिंड बना लें. फिर उस पिंड को पितरों को अर्पित को अर्पित करें. पितरों के मंत्रों का जाप करें. उनको जल अर्पित करें. ध्यान रखें कि पूर्वजों का पिंडदान हमेशा जानकार पुरोहित की उपस्थिति में ही करें. पिंडदान के बाद ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं और उनको दान भी दें.

पिंडदान के नियम
पूर्वजों का पिंडदान गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी के तट पर जाकर करें. पिंडदान हमेशा दोपहर के समय करें. पूर्वजों के पिंडदान के लिए दोपहर का समय सबसे अच्छा माना जाता है. पिंडदान करते समय, पितरों का ध्यान करें. उनसे आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें.

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