कई बच्चे छोटी उम्र से ही खुद में रहना पसंद करते हैं। अकेले बैठ कर म्यूजिक सुनना या कुछ पढ़ते रहना। बच्चों की इस आदत को अकसर अभिभावक समझ ही नहीं पाते हैं और दूसरे लोगों के साथ न घुलना-मिलने के कारण टेंशन में आ जाते हैं, लेकिन जरूरी नहीं ये बच्चे पूरी जिंदगी इंट्रोवर्ट ही रहें। बढ़ती उम्र के साथ बच्चे एक्सट्रोवर्ट यानी दूसरों के साथ बातचीत करने लगते हैं। अगर आपका बच्चा दूसरों से बातचीत करने की बजाय खुद में रहना पसंद करता है तो परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। इन कुछ बातों पर ध्यान दें-
पहला, इसे स्वीकार करिए…
इंट्रोवर्ट बच्चों के पेरेंट्स को लगता है कि उनके बच्चों में एक्स-फैक्टर नहीं है। इंट्रोवर्ट नेचर के लिए बच्चों को डांटिए मत। उन्हें बताइए कि आप बाकी बच्चों से अलग हो, लेकिन जैसे हो अच्छे हो। पेरेंट्स द्वारा ऐसा कहने से बच्चों को अच्छा महसूस होगा और वे अपनी ताकत को पहचानने लगेंगे। इससे बच्चे को किसी को कॉपी करने या उस जैसा बनने की एक्टिंग करने की भी जरूरत नहीं रहेगी।
दूसरा, बैलेंस करना सीखिए…
इंट्रोवर्ट बच्चे खुद के कंफर्ट जोन में ही रहना चाहते हैं। ऐसे में बच्चे को थोड़ा एडवेंचरस बनना सिखाइए। बच्चों से लगातार बात करिए। उन्हें बताइए कि दूसरों से बातचीत करना, उनके साथ मिलना-जुलना एक लाइफ स्किल है, जो समाज में रहने के लिए बहुत जरूरी है। बहुत सारे कार्य एक साथ ही करने को मत करिए। उन्हें हर हफ्ते के लिए एक प्रोजेक्ट या असाइनमेंट दें, जिनसे बच्चे का सोशल कॉन्फिडेंस बढ़ने लगे। इसमें बर्थडे पार्टी का हिस्सा बनना, स्कूल असेंबली में बोलना या फैमिली फंक्शन में परफॉर्म करना शामिल होगा।
तीसरा, सेलिब्रेट करिए…
एक्सट्रोवर्ट लोगों को पसंद किया जाता है, लेकिन इंट्रोवर्ट लोग ग्रेट थींकर बनते हैं। क्योंकि एक कोने में शांत बैठकर वे खुद के भीतर झांकते रहते हैं। वे दुनिया को एक्सट्रोवर्ट लोगों की अपेक्षा बेहतर तरीके से समझते हैं। इसलिए बच्चों की नेचर जैसी भी हो, उनके साथ सेलिब्रेट करिए। इंट्रोवर्ट बच्चे भी इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करने के सक्षम होता है, जिसका कारण उनकी विशेषताएं होती हैं।

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