क्या है न्यायसंगत गुजारा भत्ता? सुप्रीम कोर्ट ने तय किए नए पैमाने, पति-पत्नी दोनों के लिए राहत
नई दिल्ली ! यह बेहद दुखद है कि बेंगलुरू में 34 साल के अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी के साथ तलाक, गुजारा भत्ता और अन्य मामलों को लेकर चल रहे कानूनी विवाद के चलते अपनी जान दे दी. उन्होंने मरने से पहले अपनी पत्नी पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने, पैसे ऐंठने और प्रताड़ित करने के आरोप लगाए. अतुल सुभाष ने अपने 24 पेज के सुसाइड नोट और 81 मिनट के वीडियो में आरोप लगाया कि वह पत्नी निकिता सिंघानिया को 40 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता के तौर पर दे रहे थे. फिर भी, पत्नी और उसके परिवार वाले सभी केस खत्म करने के लिए 3 करोड़ रुपये की रकम मांग रहे थे. इतना ही नहीं, बच्चे से मिलने के लिए 30 लाख रुपये की डिमांड की जा रही थी. अतुल सुभाष की आत्महत्या ने यह दिखाया है कि तलाक-गुजारा भत्ता के मामलों में कानूनी प्रक्रिया कितनी मुश्किल और तनावपूर्ण हो सकती है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में गुजारा भत्ता को लेकर अहम फैसला सुनाया है. यह मामला दुबई के एक बैंकर, उनकी पत्नी और बच्चे के बीच कानूनी विवाद से जुड़ा था. इस मामले में कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करते समय 8 बातों का ध्यान रखने के लिए कहा है. अब भारत की अदालतें गुजारा भत्ता के मामलों में इसी फैसले को आधार मानकर काम करेंगी. यह मामला दुबई के एक बैंक के सीईओ का है जिनकी साल 1998 में शादी हुई और 2004 में उनका पत्नी से विवाद हो गया. इसके बाद शुरू हुई कानूनी लड़ाई, जिसमें 20 साल तक यह बैंकर पारिवारिक अदालत से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक घूमता रहा. 2004 में बैंकर ने क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक की अर्जी दायर की. इसके बाद पत्नी ने भी गुजारा भत्ता पाने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत याचिका दायर कर दी. यह केस 20 साल से अदालतों में घूम रहा है. परिवारिक अदालत से शुरू हुआ ये मामला पहले हाईकोर्ट में पहुंचा और फिर सुप्रीम कोर्ट. मुख्य सवाल यही है कि पत्नी को कितना गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. 2015 में बैंकर ने सभी अदालती फैसलों का पालन करते हुए खुद से गुजारा भत्ता बढ़ा दिया. हालांकि, जब उनकी पत्नी ने और भी ज्यादा गुजारा भत्ता मांगना शुरू किया, तो उन्होंने विरोध किया. पति को यह मंजूर नहीं था कि यह रकम बार-बार बढ़ती रहे, खासकर जब उसकी अपनी भी आर्थिक स्थिति ठीक न हो और उसे अपने बच्चों की जिम्मेदारी भी निभानी हो. बैंकर के वकीलों के अनुसार, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 एक वयस्क बच्चे को गुजारा भत्ता देने की अनुमति नहीं देती है. मगर, पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 को चुनौती दी और अदालत से अपने और अपने वयस्क बेटे को स्थायी गुजारा भत्ता देने का समाधान मांगा. पत्नी का कहना था कि इस कानून के हिसाब से बच्चों के बड़े होने पर ज्यादा पैसे मिलने चाहिए. उनके बेटा हाल ही में ग्रेजुएट हुआ है और अभी भी उन पर निर्भर है, इसलिए और उन्हें भी ज्यादा पैसे चाहिए. बैंकर को इस बात पर सबसे ज्यादा एतराज था कि उसकी पत्नी हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 26 का गलत इस्तेमाल करके ज्यादा पैसे मांग रही है. हालांकि वो पहले के फैसलों को मानता रहा था और गुजारा भत्ता बढ़ाने को भी तैयार था. यह पारिवारिक विवाद जब कानून का सवाल बन गया, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले ने केस के सभी तथ्यों को ध्यान से समझा. उन्होंने मौजूदा कानून को भी ध्यान में रखा. सुप्रीम कोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा (2021) और उसके बाद के फैसलों में दिए गए सिद्धांतों को दोहराया है. फिर कोर्ट ने कुछ बातें बताईं जिनके आधार पर यह तय किया जा सकता है कि गुजारा भत्ता देना जरूरी है या नहीं और अगर जरूरी है तो कितना. सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देश के अनुसार, गुजारा भत्ता तय करते समय पहले ये देखा जाना चाहिए कि पति-पत्नी दोनों का समाज में क्या स्थान है, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, उनके परिवार का क्या रुतबा है, ये सारी बातें शामिल हैं. कई बार सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण भी गुजारा भत्ता की राशि प्रभावित हो सकती है. साथ ही दोनों कितना कमाते हैं और उनकी कितनी संपत्ति है. अगर पति आर्थिक रूप से मजबूत होता है, तो उसे ज्यादा गुजारा भत्ता देने के लिए कहा जा सकता है. अगर पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं और उनकी आय लगभग बराबर है, तो गुजारा भत्ता की राशि कम हो सकती है या फिर शायद किसी को गुजारा भत्ता देने की जरूरत ही नहीं पड़े. लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह सिर्फ एक कारक है. गुजारा भत्ता तय करते समय अदालत बाकी 7 कारकों पर भी विचार करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करते समय पति-पत्नी के जीवन स्तर को भी एक अहम कारक बताया है. गुजारा भत्ता तय करते समय अदालत यह भी देखेगी कि पति-पत्नी का समाज में क्या रुतबा है और वे कैसा जीवन जीते थे. उनके पास कितने मकान और गाड़ियां हैं, उनकी कीमत क्या है? उनका घर कितना बड़ा है, उसमें कितने एसी और स्विमिंग पूल जैसी सुविधाएं हैं? उनके घर में कितने नौकर-चाकर काम करते हैं? वे कितनी बार छुट्टियां मनाने जाते थे, भारत में या विदेश में? अगर पति-पत्नी अमीर थे और ऐशो-आराम की जिंदगी जीते थे, तो पत्नी को ज्यादा गुजारा भत्ता मिल सकता है ताकि वो भी वैसी ही जिंदगी जी सके. अदालत यह भी देखेगी कि पत्नी की उम्र क्या है, उसने कितनी पढ़ाई की है और क्या वो खुद कमा सकती है. अगर वह बेरोजगार है, तो उसे ज्यादा गुजारा भत्ता मिल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुजारा भत्ता तय करते समय पत्नी और बच्चों की जरूरतों का ध्यान रखना जरूरी है. पत्नी को शादी के दौरान जैसा जीवन जी रही थी, वैसा ही जीवन जीने का हक है, लेकिन उसकी मांगें वाजिब होनी चाहिए. पत्नी और बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी होनी चाहिए, इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन अदालत यह भी देखेगी कि पत्नी की मांगें … Read more